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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, August 19, 2013

उत्तराखंड में चकबंदी की आवश्यकता , तरीके और लाभ .

प्रस्तावक डा. बलबीर सिंह रावत  

१.चकबंदी की आवश्यकता :-

 पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए जो सीढी नुमा खेत, हमारे पूर्वजों ने कड़ी मेहनत से खाली हाथों और एक सब्बल, कुदाल की मदद से बनाए , वे गाँवों के चारो ओर, हर दिशा में और नदी घाटियों  से  पर्वत के शिखर तक बनाए। खेती करते करते पता चला की हर ढाल, हर दूरी और यहाँ तक की हा खेत का उपजाऊपन एक सा नहीं है . तो जब पिटा के खेत बेटों में बंटे तो मुख्य  आधार यही उपजाऊ पन रखा गया और , सारी, डंडे के नदी किनारे के स्यारों के खेतों को बराबर बांटा गया ,इसका असर यह हुआ की आज के दिन हर परिवार के पास छोटे छोटे खेत, दूर दूर तक फैले हुए हैं और वाहान खेती करने के लिए आने जाने में अधिक समय लगता है, बजाय खेतोंमे काम करने के । इस कारण चकबंदी अगर हो जाय तो फिर से बड़े आकार के खेत एक ही जगह पर हो सकते है. लेकिन यह प्रबंध एक दूसरी समस्या को जन्म देगा, वोह है की  कुछ परिवारों को तो गाँव के बिलकुल नजदीक के चक मिल जायेंगे और कुछ को बहुत दूर के चक. जिनको दूर के मिलेंगे वे आज की समस्या से अधिक जटिल समस्या से घिर जायेंगे, की अपना घर भी वही बना लें या रोज आने जाने में ही समय और मेहनत गंवान देन. वहाँ मकान बना कर पानी बिजली, सड़क, रास्तों और सुरक्षा  का क्या प्रबंध होगा ?

इस नई समस्या का  सर्वमान्य समाधान ढूढे बिना यह विकल्प सर्व हिताय नहीं हो सकता। और यह  विकल्प बहुत महँगा होगा, जो दूर के खेत पायेंगे वे स्वेच्छा से नहीं मानेगे जब तक उन्हें वे सारी सुविधाए, बिना कॆअम्त के नहीं मिलतीं जो अपने घर के सबसे नजदीक वाले चक को पायेंगे . तो यह निर्णय कैसे लिया जाएगा की कौन सा चक किसे दिया जाय . 

२ चकबंदी का उद्देश्य:- 
हर परिवार के सारे खेत एक स्थान पर हों ताकि खेती करना आसान हो , आधुनिक टेक्नोलोजी को अपनाना आसान हो, फसल संरक्षण , निराई गुडाई, लवाई कटाई, मंडाई के खलिहान एक जगह पर हों , ताकि उपज की प्रति कुन्तल लागत कम हो, और लाभ अधिक।

 लेकिन क्या  पहाड़ों में इन चकों का आकार इतना बड़ा हो सकेगा की हर परिवार इनमे अपनी मन पसंद के जिंसों की व्यावसायिक खेती कर सके? उत्तर है: लगभग नहीं .  
 
इस दोराहे पर प्रदेश की कृषि नीति में यह स्पष्ट होना चाहिए की क्या पर्वतीय खेती को व्यावसाईक स्तर देना है या उसे वही पुराने , परिवार के भरण पोषण के स्तर पर ही रखना है? समय की मांग और राज्य स्थापना के उद्देश्य के अनुसार तो खेती को, परिवार की समृद्धि का कारक बनाने से ही राज्य का मुख्य उद्देश्य, (पलायन रोकना), संभव हो सकता है. यहाँ पर जरूरत है राज्य स्थापना के और चकबंदी के उद्देश्यों को एक साथ जोड़ना

यह उद्देश्य होगा: पर्वतीय कृषि को, स्थान विशेष की उपज विशिष्ठताओं के अनुरूप, व्यावसायिक स्वरुप देना।

     ( उदाहरण  के लिए : कही सेव नाशपाती,  संतरे, माल्टा कीनो ,कही अदरख हल्दी , कही आलू अरबी , कही उरड़  , तोर और अन्य  दालें , कही तिलहन तो कहीं जख्या , भंग्जीरा , कहीं जडी बूटी और अन्य फसल/उपज पट्टीया, जहा उत्पादन, संकलन, भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन की सुविधाये भी  उपलंब्ध हों ). 

३. चकबंदी के तरीके (विकल्प ):-

    क .  सरकार के कायदे कानूनों के अनुसार ,  अनुपस्थित और उपस्थित खेत मालिकों की सलाह लिए, बगैर,

    ख .  स्वेच्छिक , जिसके अंतर्गत सारे गाँव के सभी खेत मालिक , अपनी सुविधा के अनुसार अपने अपने खेतों की अदला बदली करके अपने नये चकों की रजिस्ट्री (निशुल्क ) करा लें . इसमें अनुपस्थित भू स्वामियों को एक निश्चित समय , अखबारों में विज्ञापन द्वारा , दे कर, उनको या उनके प्रतिनिधि को, शामिल होने का प्रावधान हो. 

   ग .  ठेके पर खेती : अगर कोइ संस्था/कम्पनी किसी इलाके में अपनी पसंद की उपज उगाने के लिए कई कई गाँव के कृषकों को टेक्नीकल,वित्तीय सहायता दे कर , उपज की मात्रा और खरीद कीमत पर,  दीर्घ कालीन, ठेका करती हो तो यह सुविधा भी विधिवत होनी चाहिए । 

   घ .  उत्पादकों की अपनी कम्पनियां . कृषि क्षेत्र में यह एक नया कंपनी नियम बना है भाग lX A . यह सहकारिता और कम्पनी के गुणों का मिला जुला स्वरूप है, कोइ भी, कम से कम, दस कृषक मिल कर ऐसी कंपनी स्थापित का सकते हैं , कितनी भी भूमि को एक्त्त्रित कर्के. सब का माय हर व्यक्ति एक होगा और लाभ वितरण, सदस्य के कम्पनी के साथ व्यापार के आधार पर होगा न की शेयरो के.

  च.   दीर्घ काल के लिए भू स्वामियों से जमीने किराए/बटिया( प्राचीन तिहाड़ प्रणाली का नया स्वरूप्प) पर ले कर, व्यावसायिक स्तर के फ़ार्म बनाने की विधिक सुविधा भी होनी चाहिए .      
  छ .  साथ लगी जमीनों को खरीद कर बड़े चक बनाना भी संभव होना चाहिए .
    
उपरोक्त सारे विकल्पों को भी खुला रखना, पर्वतीय भू स्वामियों के हित में होगा , और शान्ति पूर्वक चक बंदी का उद्द्येश्य भी पूरा हो जाएगा। जिस भी इलाके के/ गाँव के लोगों को जो भी विकल्प सुविधाजनक लगे, उन्हें उसके अनुसार बड़े चक स्थापित करने की सुविधा लोकतंत्र की भावना के अनुरूप होगा।

अनिवार्य चकबंदी को अंतिम विकल्प मान कर चलना हित कर होगा . उदाहरण के लिए, अगर उपरोक्त ६ विकल्पों के द्वारा भी अगर  किन्ही गाँव/क्षेत्रों में, चकबन्दी , मान लीजिये की एक निश्चित अवधी  ( ८-१० सालों ) में भी नहीं हुई तो वाहा अनिवार्य तह, सरकार चकबंदी कराने का हक़ रखेगी .   

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