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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 4, 2013

गूणी -बांदर -सुंगर उवाच

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथकवादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

  पता नि यी गढ़वाळि-कुमाउंनी प्रवास , पलायन से  इथगा  परेशान किलै छन ? 
हम गूणी -बांदर मैदान बिटेन इख पाख पख्यडुं मा पलायन नि करदा त हमर त जाति खतम ह्वे जान्दि I पलायनौ वजै से हम गूणी बांदर बच्यां छंवाँ 
अब एक बात बथावदि यि गढ़वळि-कुम्मया पलायन नि करदा त हम गूणी -बांदर -सुंगर इथगा मौज मस्ती कौर सकदा छा क्या ?
गढ़वळि-कुमाउंनी गाऊं से भैर ह्वेन अर गाऊं पर हमर कब्जा ह्वे I उन कुछ जगा नेपाऴयूं अर बिहार्युं कब्जा बि हूण मिसे गे I   
सुख कु नि चांदो हम बि सुख की खोज मा रौंदा अर भलो ह्वाइ गढ़वळि-कुमाउंनी भैर जोग ह्वेन त अब हम बि बरखा -ह्यूं मौसम मा तिबार्युं अर छ्न्युं तौळ मजा से रौंदा I अजकाल हम गूणी -बांदर रात डाऴयूं मा  नि रोंदा बलकणम खंद्वार हुयाँ कूड़ ही असली बसेरा ह्वे गेन I   
           पैल  बेडु -तिमल -खडिक -भ्यूँळअ  बान हमम अर मनिखों मा प्रतिद्वंदिता होंद छे अब गांव वाळ बजार बिटेन लयां फलूं पर गीजि गेन त बेडु -तिमल -खडिक -भ्यूँळअ कमि नि रै गे पण अब हम बि अळगसि ह्वे गेवां। जब गां मा लोंगु भितर राशन मीलि जांद त  डाळुम चढ़णै मेनत किलै करवाँ हम ? अरे जब पादिक काम चलि जांद तो हगणै जरूरत क्या च ?   
                      अब हम गूणी -बांदरूं अर सुंगरूं  तै जंगळ  जाणम  डौर लगद अर जंगळुम भौत मेनत करण पोड़द जब कि गाँ मा सब कुछ मीलि जांद I हम तैं जब  कूड़ो मुंडळम डाळो मजा आवो तो डाळम किलै चढ़े जावो भै ?     
                  ठीक च यी तिबारी -डंड्यळि अब टूटीं अवस्था  मा छन  पण  हमकुण त राजमहल ही छन . द्याख नि तुमन अब यूँ टुट्याँ कूड़ों - सन्युं मा हमर बच्चा कथगा मजा से खिलणा रौंदन  अर जब मर्जी ह्वे ग्याइ त गाँ  मा द्वी चार लोग जो बि बच्यां छन ऊंक घौर जाँदा अर भातौ फुळि उठैक लै उंदा। अब त हमर बच्चा बि घी लगायुं रुटि अर चाओ माओ खाण गीजि गेन I  जब क्वी प्रवासी घौर  आवो अर हम वैका लयां चणा लूठी लौंदा त  हमर बच्चा चणा पर हाथ नि लगांदन अर राड़ घाळि दीदन बल प्रवासी आयुं च त चौकलेट  चखावो I 

                   प्रवासी आवो या कखि जीमण ह्वावो तो अचकाल दारु सारु पार्टी बि होंदी त हम त ना पण  हमारी जवान पीढ़ी कै बि हिसाब से दारु बोतल चुरैक लयांदी I शराब की लत हम गूणी -बांदरूं बच्चों पर बि लग ग्यायि I जख हम कैक भितर कंटरूं पर धर्याँ ग्यूं -चौंळ खुज्यांदा त हमर बच्चा दारु बोतल खुज्यांदन I हम अपण बच्चौं तैं अड़ान्दा बल दारू -सारु -शराब बुरी चीज च त जवान लौड़ हम तै डांटदन बल जब मनिखों बारा सालौ नौन दारु पे सकद त हम बांदर किलै ना ? कुज्याण क्या ह्वाल  हमारी ईं नई पीढ़ी को ?  आर्थिक स्थिति   अर नई पीढ़ीक सुख सुविधा बान   हम गूणी बांदर अर सुंगर अब मनिखों भौति करीब ह्वे गेवां तो सुख अर सुविधा बान थ्वड़ा भौत परेशानी सहन  करण ही पोड़द कि ना ? 
 जख तलक हम गूणी बांदरूं खेल अर मनोरंजन को सवाल च अब हम आपस माँ खेल नि खिलदवां अब मनुष्य हे हमर खेल साधन छन I  हम गूणी -बांदर मनिखों दगड़ छौंपा दौड़, लूका छुपी , टच मी नौट , पकड़ा -पकड़ी ; छीना झपटी , का कथगा ही खेल खिलदां I  फिर अब हम तैं मनिखों तैं चिरड़ाण मा बड़ो मजा आंद I दिन मा आठ दस दै हम कै ना कै मनिख तै चिरड़ान्द ही छंवाँ ये खेल तैं हम मनुष्य तै तंग कारो बि बुलदवाँ I मनिखों तीज त्यौहार ही हमर तीज त्यौहार छन जन कि वेलेंटाइन डे , क्रिसमस , न्यू ईयर आदि I     

हाँ हम गूणी -बांदर भविष्य की चिंता से भौति परेशान छंवाँ बल अब जब गढवाली -कुमाउंनी गाँ मनुष्य विहीन हूणा छन तो हम कखन बजारक ग्युं -चौंळ -दाळ -भुजि -फल खौंला ? मनुष्य विहीन गांवुं सोचिक ही हमर पुटुकुंद च्याळ पोडि जान्दन बल फिर हमर क्या ह्वालो ? 

Copyright @ Bhishma Kukreti  3/8/2013  

 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]  

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