राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-9
भीष्म कुकरेती
( ननदी = नणद, वीरा = भाई ,थाने =-तुम्हें, सीमा =सिलवा, हंसुली = गले का जेवर )
इस राजस्थानी लोक गीत में प्रमाणित भी होता है कि प्रत्येक प्राणी अपने आकर्षण विन्दु-चिन्ह भी विकरणित करता जाता है ।
गढ़वाली-कुमाउंनी में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण
Copyright@ Bhishma Kukreti 25/8/2013
सौन्दर्य नारी का प्रदत्त गुण है । सुंदर नारी में सौन्दर्य प्रति सजकता एक स्वाभाविक गुण है । सौन्दर्य वाले साधन आभूषण व वस्त्र प्रति आकर्षण लाजमी है । यही कारण है कि गढ़वाली -कुमाउंनी और राजस्थानी लोक गीतों में सौन्दर्य प्रसाधन माध्यमों की मांग के गीत मिलते हैं । आभूषण अपने व दुसरे के मन मोहित करते हैं । आभूषणो को अंग-भाग ही मान कर चला जाता है अत: लोक में आभूषणो के प्रति आकर्षण गीत स्वाभाविक हैं ।
राजस्थानी लोकगीतों में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण
राजस्थानी लोकगीतों में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण
निम्न रास्थानी लोक गीत में पति से एक नवविवाहिता सौन्दर्य साधनों की मांग करती है और बदले में समपर्ण देने की सौगंध भी खाती है ।
म्हाने , चूंदण मंगा दे ओ, ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ घूंघट पै राखूँगी , ओ ननदी के वीरा
म्हाने बोर लो घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ माथे पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने हंसूली घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ छाती पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने चूड़लो पहरा देओ , ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ हाथां पै राखूंगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने घाघरो सीमा दे ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ, थाने यूँ थाने यूँ
चाली पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा
( ननदी = नणद, वीरा = भाई ,थाने =-तुम्हें, सीमा =सिलवा, हंसुली = गले का जेवर )
इस राजस्थानी लोक गीत में प्रमाणित भी होता है कि प्रत्येक प्राणी अपने आकर्षण विन्दु-चिन्ह भी विकरणित करता जाता है ।
गढ़वाली-कुमाउंनी में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण
कुमाउंनी-गढ़वाली लोक गीतों ,इ आभूषण -वस्त्र आकर्षण संबंधी कई प्राचीन गीत आज भी प्रचलित हैं ।
----------------- चल बिंदा साइ मेरी पधानि ---------------
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै नाक की नथुली ।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै आंग की अंगिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै कान मुनाड़ा । तब भिना मै तेरि पधानि। चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै आंग की अंगिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै कान मुनाड़ा । तब भिना मै तेरि पधानि। चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै गाळ की सूतिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
तब भिना मै तेरि पधानि।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै हाथुं की चूड़ियाँ ।
तब भिना मै तेरि पधानि।
तब भिना मै तेरि पधानि।
---------------------अनुवाद --------------------
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
जब नाक की नाथ लाओगे
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
जब शरीर की अंगिया लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
जब कान के मूंदड़े लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
जब गले की सुतिया लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा साली मेरी पधानि ।
जब हाथ की चूड़ियाँ लाओगे
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
इस हैं कि राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी लोक गीतों में मानवीय मनोविज्ञान जैसे सौन्दर्य वृद्धि में आभूषण व वस्त्रों का योगदान , मानवीय जन्य आभूषण आकर्षण आदि का पूरा ख़याल रखा गया है।
Copyright@ Bhishma Kukreti 25/8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून
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