डा. बलबीर सिंह रावत
यथोचित लाभ की न्यूनतम मात्रा इतनी तो होनी ही चाहिए की सम्बंधित उपजों के उत्पादन में उत्पादकों को प्रोत्साहन मिलता रहे। उत्तराखंड में, परिवारों की कृषि भूमि का आकर इतना छोटा है, और खेत इधर उधर ऐसे निखरे हुए हैं की उनमे, एक अकेले परिवार को, लाभ दायक, पेशेवर खेती करना सम्भव नही है। इसलिए एक साथ लगे खेतों के मालिक, एक मत हो कर, अगर एक ही प्रकार की फसल को इतने मात्रा में उगांय कि उपज का औद्योगिक स्तर पर प्रसंस्करण हो सके, तो ही वांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है। . चूंकि उद्द्योगों के कारखाने तो हर रोज चालू रखने पड़त हैं, और खेती की उपजें मौसमी, होने के कारण कुछ अंतराल में ही प्राप्त हो पाती है,.इसलिए यह जानना जरूरी है कि, पसंद की गयी उपज की प्रति मुट्ठी/नाली, प्रति कटाई कितने किलो ताजी उपज प्राप्त होती है, और लगाये गए उद्द्योग के, प्रति दिन कितने कच्चे मॉल को खपाने की क्षमता है. इस से यह मालूम किया जा सकता है की फसल को कितने बड़े क्षेत्र में उगाना चाहिए। यह वाँछित क्षेत्र कितने लोगों के खेतों से प्राप्त हो सकता है।
दुसरे, औषधीय उपजें कई प्राकार की होती हैं। एक प्रकार तो खेतों जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती रहती हैं, उन्हें बीन का एकत्रित करने की जरूरत होती है. जैसे बन्स्फा, गिलोय, , हर्र , बहेड़ा, आँवला', बेल के फल इत्यादि। दूस्र्रा प्रकार है जिनकी खेती करनी होती है, जैसे पुदीना,, पिपरमिंट,गुलाब के फूल ,अनार इत्यादि। अच्छी किस्म और स्वस्थ उपज लेने के लिए, बेल, आंवला, अनार , तेजपत्ता/दाल चीनी, गिलोय इत्यादि की खेती भी की जा सकती हैं। सही चुनाव के लिए क्षेत्र के जानकार वैद्यो से, सरकारी उद्द्यान/आयुर्वेद विभागों से,निझी क्षेत्र की दवा उत्पादक कंपनियों से व्यापारिक/व्यावसायिक सम्बंध स्थापित करने से मार्ग दर्शन लिया जा सकता है.
पेशेवर खेती का अर्थ हुआ ऐसे आकार और प्रकार की खेती जिस की उपजें बेच कर पर्याप्त धन कमाया जा सके. और धन कमाने के लिए बड़ी मात्रा में उपज पैदा की जानी होती है कि उनसे मशीनों के द्वारा इच्छित दवाएं, पर्याप्त मात्रा में बनाना भी लाभ दायक हो. इसके लिए पूरे गाँव और साथ लगे कई गाँव के खेत मालिकों एक साथ, एक सी ही उपजें उगानी पड़ेंगी, एक बड़े फ़ार्म की तरह व्यावसायिक स्तर की खेती, वैज्ञानिक ढंग से करनी होती है। इसके लिए सब की एक राय होना आवश्यक है. और यही प्रारम्भिक कदम उठाना हे सब से मुश्किल काम है. सौभाग्य से कई प्रवासी सज्जन , जो अपने हमेशा अपने गावों में लगातार जाते रहते हैं, ऐसे प्रयासों के लिए सक्रीय रूप से प्रयत्नशील है. इसके लिए ग्राम प्रधान और ग्राम सभा का सह्योग, तथा प्रवासी खेत स्वामियों का साथ भी आवश्यक है. कई गाँव के प्रवासियों ने अपने खेत सालाना/फसली किराए पर वहां के फसल उगाने वालों को दे कर पहल शुरू की हुई है.और यह तरीका संभव तथा सरल भी है, कि व्यावसायिक खेती के लिए बड़े आकार के क्षेत्र उपलब्ध हो.
एक अन्य तरीका भी है, ठेके की खेती. इस में किसी उद्द्योग के साथ, जैसे डाबर, वैद्यनाथ इत्यादि से ठेका जाय की उनकी आवश्यकता के हिसाब से उत्पाद उगा का लगातार आपूर्ति होती रहेगी . जब सुनिश्चित और सुरक्षित बिक्री का प्रबंन्ध हो जाता है तो खेत स्वामी खुद ही जुड़ने को उत्सुक होंगे , बस उन्हें सूचित और प्रेरित करने के आवश्कता होती है. अगर यह कम ग्राम सभा/उत्पादक कम्पनी की पहल से होगा तो नामी उद्योग जुड़ने को इच्छुक होंगे।
अगर औषधीय फसलों के चयन में दिक्कत आती हो तो स्थानीय वैद्यों, उस क्षेत्र में सक्रीय दवा कम्पनियों के विशेषज्ञों, सरकार के बागवानी तथा आयुर्वेद विद्यालयों के सम्बन्धित विभागों के वेशेषज्ञों की साहायता ली जा सकती है. यह परम आवश्यक है की स्थानीय आबहवा के अनुरूप ही पादपों का चयन किया जाय. इस काम में ग्राम सभा स्वयम और उसके द्वारा सरकारी तन्त्र आसानी से सक्रिय किया जा सकता है .
एक बार पर्याप्त भूमि और वांछित उपजों का चयन हो जाय तो अगले कदम में बीज/ पौध की व्यवस्था भी उतनी ही महत्व पूर्ण बात है. औषधीय पौधों के बीज/पौध आसानी से, एक ही जगह नहीं मिल सकते। इस के लिए विशेष प्रबंध , समय पर करना उचित है. इस कार्य में सरकार का उद्द्यांन विभाग, कृषि विश्व विद्द्यालय, पतंजलि योगपीठ इत्यादि विशिष्ठ संस्थाएं अवश्य सहायक हो सकते है.
लेकिन पहल कौन करेगा ? पहल करने वाले , प्रवासियों में से कोइ उत्साह से भरपूर व्यक्ति, गाँवो में रहने वाले जोशीले युवा, युवतियाँ, स्कूलों-कोलेजो के गुरुजन , जिनकी साख, एक संयोजक के रूप में स्थापित हो रक्खी हो. अगर कुछेक एक से विचारों वाले लोग आपस में मिल कर ऐसे व्यवसाय शुरू करने का बीड़ा उठायं तो सफलता मिल सकती है. यह व्यवसाय सारे प्रवासी उत्ताराखंडीयों के हित में है. जो वहाँ स्वयम व्यवसाय नहीं कर सकते , वे अपनी भूमि, उनको आपस में तय किराए पर दे सकते हैं, जो वहां पर व्यावसायिक रूप से जडी बूटी / आयुर्वेदिक दवा, अवलेह, अचार, मुरब्बा का उत्पाद शुरू करने इच्छुक हो. ऐसे छोटे या मध्यम स्तर के उद्द्य्मियों के लिए अब उत्पादक कंपनी बना कर व्यवसाय चलाने की सुविधा संभव है. केंद्र सरकार ने कम्पनी क़ानून के भाग IX A के अंतर्गत, सहकारी संस्था
और कंपनी के उपनियमों को मिला कर उत्पादकों के हितों को ध्यान में रख कर, उन्हें अपने उद्दयम बिना सरकारी नियन्त्रण/हस्तक्षेप के, स्वयम ही चलाने की सुविधा भी दे दी है .इन कम्पनियों का संचालन और लेखा जोखा , आय वितरण भी सदस्यों के कंपनी के कार्य में भागी दारी के आधार पर ही हो सकता है , न की उसमे शेयरों के आधार। इस का लाभ हर नए स्वरोजगारी उद्द्य्मी को लेना चाहिय़े.
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