Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-11
भीष्म कुकरेती
राजस्थानी लोकगीतों में खाद्यान , कृषि आदि विषय
चौमासो आओ रांगला ….
उपरोक्त लोक गीत अपने अपने क्षेत्र के विशेष , महत्वपूर्ण खाद्यान वर्णन के साथ पारिवारिक संबंधों की भी चर्चा करते हैं
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /8/2013
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-11
भारत कृषि प्रधान देश है तो लोक गीतों में , खेतों , खलिहानों , अनाज , बुआइ , कटाई विषय आवश्यक हैं । राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतोंमें कृषि, खेती, खेत , खलियान विषय प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। सांस्कृतिक और भौगोलिक कारणों से खेत , खेती और खलियान के विषय क्षेत्र की विशेषताओं अनुसार विशेष अभिव्यक्ति पा गए हैं यथा -
राजस्थानी लोकगीतों में खाद्यान , कृषि आदि विषय
चौमासो आओ रांगला ….
म्हारी दोराणया जेठानियाँ रुसगी
म्हारी सासू जी मणावण जाय, चौमासो आओ रांगला ….
मैंने आला में बोई बाजारी,
मैंने आला में बोई ज्वार ,चौमासो आओ रांगला …
मैंने आला में बोई ज्वार ,चौमासो आओ रांगला …
म्हारी फूटन लागी बाजारी,
म्हारी फूटन लागी ज्वार , चौमासो आओ रांगला …
म्हारी फूटन लागी ज्वार , चौमासो आओ रांगला …
मैं तो सींचन लागी बाजारी,
मैं तो सींचन लागी ज्वार , चौमासो आओ रांगला …
मैं तो सींचन लागी ज्वार , चौमासो आओ रांगला …
मैं तो काटन लागी बाजरी ,
मै तो काटन लागी ज्वार ,चौमासो आओ रांगला …
राजस्थान में ज्वार -बाजरा मुख्य भोजन है तो राजस्थानी लोक गीतों में ज्वार -बाजरे के गीत हैं ।
कुमाउंनी- गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में खाद्यान , कृषि आदि विषय
कुमाउंनी- गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में खाद्यान , कृषि आदि विषय
कुमाऊं -गढ़वाल का मुख्य भोजन झंगोरा या धान का चावल मुख्य भोजन है । दिन में बगैर झंगोरा या धान के भात खाए संतुष्टि या तृप्ति नही होती है । इसलिए कुमाऊं -गढ़वाल के लोक गीतों में अलग ढंग के खाद्यानो की चर्चा होती है । आश्चर्य नही कि पारिवारिक संबंधो की चर्चा और खाद्यानो का पारिवारिक सदस्यों के साथ संबंध वार्तालाप दोनों क्षेत्रों में प्रलक्षित होती है ।
जिरी झमाका
यो माऊ फागुण लो , जिरी झमाका ।
जिरी की बुतैई लो , जिरी झमाका ।
आड़ी कला केड़ी लो , जिरी झमाका ।जिरी की बुतैई लो , झमा झमाका ।
जिरी की गोड़ई लो , जिरी झमाका ।
जिरी बड़ी ह्वैगी, झमा झमाका ।
जिरी की लवाई लो ,जिरी झमाका ।
जिरी की मंडै च लो , झमा झमाका ।
मेरा बल्द नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।
जिरी को पराळ लो , झमा झमाका ।
मेरी भैंसी नि खान्दी लो ,जिरी झमाका ।
जिरी को पराळ लो , झमा झमाका ।
मेरा सौसरा नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।
जिरा चौंळ भात लो , झमा झमाका ।
मेरी नि खान्दी लो ,जिरी झमाका ।
जिरी नौ को भात लो , झमा झमाका ।
मेरा स्वारा नि खांदा लो ,जिरी झमाका ।जिरी नौ को भात लो , झमा झमाका ।
मैन द्यब्तों चढौण लो , जिरी झमाका ।जिरी नौ को चौंळ लो , झमा झमाका ।
मैन द्यब्तों चढौण लो , जिरी* झमाका ।
-----------------------------अ नुवाद -------------------
जिरी नौ को चौंळ लो , झमा झमाका ।
*जिरी =धान की अच्छी प्रजाति जैसे -बासमती
-----------------------------अ
इस माघ फागुन , लदफक धान होगा,
धान की बुआइ , भरपूर धान ।
धान का खेत सुधारेंगे , लदफक धान ।
धान की गुड़ाई , भरपूर धान ।
धान बड़ा हो गया , लदफक धान ।
धान की लवाई, भरपूर धान
धान की मंड़ाई ,लदफक धान ।
मेरे बैल नही खाते,
धान के पुवाल को
मेरी भैंस नही खाती धान के पुवाल को
मेरे ससुर जी नही खाते
धान के चावल
मेरी सास नही खाती ,
धान के चावल
मेरे ससुराली नही खाते
धान के चावल
चावल का भात
मैंने देवताओं को चढाना
धान के चावल ,भरपूर धान
चावल का भात मैंने देवताओं को चढाना
मैंने देवताओं को चढाना
धान के चावल ,भरपूर धान
चावल का भात मैंने देवताओं को चढाना
धान के चावल , लदफक धान.
उपरोक्त लोक गीत अपने अपने क्षेत्र के विशेष , महत्वपूर्ण खाद्यान वर्णन के साथ पारिवारिक संबंधों की भी चर्चा करते हैं
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
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