राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-6
भीष्म कुकरेती
बहुदेव वाद भारतीय धर्म के अपनी विशेष विशेषता है । हिन्दुओं के देवी -देवताओं की अपने अपने प्रिय भोज्य भी हैं और भक्त उसी भाँती नैवेद्य , फूल और पत्तियाँ क्म्न्दिर में चढाते हैं ।कुछ देवता निरामिष हैं तो जुछ देवता -देवियाँ मान्शाहारी हैं ।
राजस्थानी लोक भक्ति गीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि
राजस्थान में कुछ देवी -देवता यथा भैरूं जी , माता जी ऐसे देव हैं जो सामिष भोगी हैं और उन्हें पशु बलि चढ़ाई जाती है । निम्न लोक गीत माता जी की अर्चना संबंधित गीत है । इस राजस्थानी लोक गीत में पशु बलि याने बकरियां व पशु बलि चढ़ावा की बात लोक गीत में कही गयी है ।
थारा तो मंदरिया में कोई बाजे ए ! धोला में' लारी धारणी !
थारा तो मन्दिर में काईं बाजे ए गढ़ दांता री धारणी !
बूटिया तो कानों रे बकरियों , काला तो माथा रो भैंसों चाढूँ !
थारे तो शरण आयोड़ो ने होरा राखि ए ! धोला में' लारी धारणी !
माता जी के ही नही भैरूं जी बकरे लेकर भक्तों की मनोवांछा पूर्ण करते हैं और बकरे के साथ मदिरा भी नैवेद्य में चढ़ाया जाता है -
एक झडूल्या रे कारणै म्हारो जी बोले म्हाने बोल
सरतालों भैरूं अणवट नूतिया
भैरूं दूध पीजै न मदड़ो (मदिरा ) छोड़ दे
भैरूं बोकड़िया रा देवूं थानै भोग
चरतालो ओ भैरूं अणवट नूतिया ।
उपरोक्त लोक गीत में एक बंध्या स्त्री पुत्र प्राप्ति कामना से भैरव के पास गयी और मदिरा व बकरे का भोग देने को तैयार है ।
गढ़वाली संस्कृति में कई देवी -देवताओं को सामिष व शाकाहारी नैवेद्य चढाने का रिवाज है । अठ्वाड़ में तो आठ तरह के जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है ।
निम्न लोक भक्ति गीत में देवताओं को शाकाहारी नैवद्य चढाने की बात कही गयी है ।
रे नरु फरस्वाण, मै घुघती ।
कै देवु जातरा ? मै घुघती ।
केदार जातरा , मैं घुघती ।
भेंटुला क्या पांजी ? मै घुघती ।
मोरी को कंळदार , मै घुघती ।
मोरी को कंळदार , मै घुघती ।
कलेऊ क्या पांजी ? मै घुघती ।
वो च्यूड़ा -भुजला , मै घुघती ।
सामल क्या पांजी ? मै घुघती ।
सामल क्या पांजी ? मै घुघती ।
कै देवू जातरा ? मै घुघती ।
भुम्याले जातरा , मै घुघती ।
…
भुम्याले जातरा , मै घुघती ।
…
रे नरु फरस्वाण, मै घुघती ।
किस देवता की यात्रा ?मै घुघती ।
केदार की यात्रा , मै घुघती ।
भेंट क्या रखी ? मै घुघती ।
मोरी का कंलदार (पैसे ), मै घुघती ।
कलेवा क्या रखा ? मै घुघती ।
भूजे हुए चूड़े ,मै घुघती ।
सामग्री क्या रखी ? मै घुघती ।
किस देवता की यात्रा ? मै घुघती ।
भूमिपाल की यात्रा , मै घुघती ।
रवाई क्षेत्र में प्रचलित दुर्योधन जागर में दुर्योधन देवता को बकरा और भेड़ चढ़ाने की बात इस प्रकार कही गयी है -
इस प्रकार हम पाते हैं कि क्षेत्र के भक्ति लोक गीतों में शाकाहारी व मान्शाहारी नैवेद्य व बलि के गीत पाए जाते हैं
दुर्योधन पूजा लोक गीत
तू लाइ सच्ची हामू, देव दुर्योधन
हामू देई ताई भेड़ी, देव दुर्योधन
चार सिंगा खाडू ,देव दुर्योधन
बात रीत लाणी , देव दुर्योधन
भेड़ी देऊ भौत ,देव दुर्योधन
रवाइं क्षेत्र में दुर्योधन एक देव की तरह पूजा जाता है और उपरोक्त भक्ति गीत इस बात का परिचायक है -
तू सच्ची बात बताना, हे देव दुर्योधन
हम तुम्हे भेड़ देंगे , हे देव दुर्योधन
हम तुम्हे चार सीग वाला खाडू -मेढ़ा देंगे , हे देव दुर्योधन
तेरे मन्दिर में लाऊंगा ,हे देव दुर्योधन
तुम हमारे बारे में बताना , हे देव दुर्योधन
मई तुम्हे बहुत सारी भेद दूंगा , हे देव दुर्योधन
मेरी कुशलता के बारे में मालूम करते रहना , हे देव दुर्योधन
Copyright@ Bhishma Kukreti 22/8/2013
सन्दर्भ
डा जगदीश नौडियाल , 2011 उत्तराखंड कि सांस्कृतिक धरोहर,विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून
(राजस्थानी भैरूं जी पूजा लोक गीत पशु बलि ; राजस्थानी माता जी पूजा लोक गीत में पशु बलि ; राजस्थानी माता जी पूजा लोक गीत में नैवेद्य विषय ;राजस्थानी भैरूं जी पूजा लोक गीत में नैवेद्य ; गढ़वाली कुमाऊँ लोक गीत में नैवेद्य ;गढ़वाली कुमाऊँ लोक गीत में पशु बलि ; रवाइं -गढ़वाली लोक गीत में पशु बलि; रवाइं -गढ़वाली दुर्योधन पूजा लोक गीत में पशु बलि; गढ़वाली कुमाऊँ केदार जातरा लोक गीत में नैवेद्य ; गढ़वाली कुमाऊँ क्षेत्रपाल पूजा लोक गीत में नैवेद्य।; उत्तराखंडीपूजा लोक गीत में नैवेद्य; उत्तराखंडी पूजा लोक गीत में पशु बलि, हिमालयी पूजा लोक गीत में नैवेद्य; हिमालयी पूजा लोक गीत में पशु बलि , उत्तर भारतीय पूजा लोक गीत में पशु बलि, उत्तर भारतीय पूजा लोक गीत में नैवेद्य )
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