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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, August 22, 2013

गढ़वाली-कुमाउंनी व राजस्थानी धार्मिक लोकगीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि

राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-6   


                                           भीष्म कुकरेती 

         बहुदेव वाद भारतीय धर्म के अपनी विशेष विशेषता है । हिन्दुओं के देवी -देवताओं की अपने अपने  प्रिय भोज्य भी हैं और भक्त उसी भाँती नैवेद्य , फूल और पत्तियाँ क्म्न्दिर में चढाते हैं ।कुछ देवता निरामिष हैं तो जुछ देवता -देवियाँ मान्शाहारी हैं 


                                          

                                       राजस्थानी लोक भक्ति गीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि


राजस्थान में कुछ  देवी -देवता यथा भैरूं जी , माता जी ऐसे देव हैं  जो सामिष भोगी हैं और उन्हें पशु बलि चढ़ाई जाती है 
। निम्न लोक गीत माता जी की अर्चना संबंधित गीत है । इस राजस्थानी लोक गीत में पशु बलि याने बकरियां व पशु बलि चढ़ावा की बात लोक गीत में कही गयी है 
थारा तो मंदरिया में कोई बाजे ए ! धोला में' लारी धारणी ! 
थारा तो मन्दिर में काईं बाजे ए गढ़ दांता री धारणी !

बूटिया तो कानों रे बकरियों , काला तो माथा रो भैंसों चाढूँ !
  थारे तो शरण आयोड़ो ने होरा राखि ए ! धोला में' लारी धारणी !
माता जी के ही नही भैरूं जी  बकरे लेकर भक्तों की मनोवांछा पूर्ण करते हैं और बकरे के साथ मदिरा भी नैवेद्य में चढ़ाया जाता है -
एक झडूल्या रे कारणै म्हारो जी बोले म्हाने बोल 
सरतालों भैरूं अणवट नूतिया 
भैरूं दूध पीजै न मदड़ो (मदिरा ) छोड़ दे 

भैरूं बोकड़िया रा देवूं थानै भोग 
चरतालो ओ भैरूं अणवट नूतिया 
उपरोक्त लोक गीत में एक बंध्या स्त्री पुत्र प्राप्ति कामना से भैरव के पास गयी और मदिरा व बकरे का भोग देने को तैयार है 

                                     गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि 

गढ़वाली संस्कृति में कई देवी -देवताओं को सामिष व शाकाहारी नैवेद्य चढाने का रिवाज है । अठ्वाड़ में तो आठ तरह के जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है 
निम्न लोक भक्ति गीत में देवताओं को शाकाहारी नैवद्य चढाने की बात कही गयी है 
रे नरु फरस्वाण, मै घुघती   
कै देवु जातरा ? मै घुघती   
केदार जातरा ,  मैं घुघती   
भेंटुला  क्या पांजी ? मै घुघती   
मोरी को कंळदार ,
 मै घुघती   
कलेऊ क्या पांजी ? मै घुघती    
वो च्यूड़ा -भुजला , मै घुघती   
सामल क्या पांजी ?
 मै घुघती   
कै देवू जातरा ? मै घुघती   
भुम्याले जातरा , 
मै घुघती   

… 
रे  नरु फरस्वाण, मै घुघती   
किस देवता की यात्रा ?मै घुघती   
केदार की यात्रा , मै घुघती   
भेंट क्या रखी ? मै घुघती   
मोरी का कंलदार (पैसे ), मै घुघती   
कलेवा क्या रखा ? मै घुघती   
भूजे हुए चूड़े ,मै घुघती    
सामग्री क्या रखी ? मै घुघती   
किस देवता की यात्रा ? मै घुघती   
भूमिपाल की यात्रा , मै घुघती   

  रवाई क्षेत्र में प्रचलित दुर्योधन जागर में दुर्योधन देवता को बकरा और भेड़ चढ़ाने की बात इस प्रकार कही गयी है -
                  दुर्योधन पूजा लोक गीत

तू लाइ सच्ची हामूदेव दुर्योधन
हामू देई ताई भेड़ीदेव दुर्योधन
चार सिंगा खाडू ,देव दुर्योधन
बात रीत लाणी , देव दुर्योधन
भेड़ी देऊ भौत ,देव दुर्योधन
रवाइं क्षेत्र में दुर्योधन एक देव की तरह पूजा जाता है और उपरोक्त  भक्ति गीत इस बात का परिचायक है - 
तू सच्ची बात बताना,  हे देव दुर्योधन 
हम तुम्हे भेड़  देंगे , हे देव दुर्योधन 
हम तुम्हे चार सीग वाला खाडू -मेढ़ा देंगे , हे देव दुर्योधन 
तेरे मन्दिर में लाऊंगा ,हे देव दुर्योधन 
तुम हमारे बारे में बताना , हे देव दुर्योधन 
मई तुम्हे बहुत सारी भेद दूंगा , हे देव दुर्योधन 
मेरी कुशलता के बारे में मालूम करते रहना  , हे देव दुर्योधन 

इस प्रकार हम पाते हैं कि क्षेत्र के भक्ति लोक गीतों में शाकाहारी व मान्शाहारी नैवेद्य व बलि के गीत पाए जाते हैं 


Copyright@ Bhishma  Kukreti 22/8/2013 



सन्दर्भ 
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली 
डा -नंद किशोर हटवाल , 2009 , विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून (गीत अनुवाद सहित -आभार )
 
डा जगदीश नौडियाल , 2011 उत्तराखंड कि सांस्कृतिक धरोहर,विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून
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