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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 25, 2013

साहित्यकारुं कलम की आग कख झौड़ धौं !

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती  


          
                            सबि भारतीय असमंजसम छन , दुविधा मा  भैर -भितर कारण खुजणा  छन , क्वी अफु तैं इ टटोळणा छन,  संदेह मा इना उना हजारों लोगुं तैं पुच्छणा छन ,  संशय मा रौंका धौंकी करणा छन, भौत सा सोची -सोचिक सुन्नताल मा बा काटणा छन -गोता लगाणा छन । फिर बि ये प्रश्नौ जबाब दुरत्यय (निजबाबी) ह्वे ग्यायि बल भारतम साहित्यकारों कलमै आग ठंडी किलै ह्वै, कवियों फ़ौज लाखों मा च पण कैक  बि  कविताम आग नि दिख्याणि च अर जु बुलणा बि छन कि उंकी कविता मा आग च त वा आग नौणि-घ्यू नि जळै  सकणि च वा आग बखरूं तैं क्या भड़्याली ? वीं आगै तैंची -तपन-गरमी  भारतबास्युं बरफन  ढक्यूँ   जिकुड़-ह्रदय  क्या गरम कारलि ? कथगा ही लोगुं मानण च बल बल फलणा लेखनी बरछा , भाला तलवार च , खुंकरीक नोक जन नोकीली च । ठीक च पण ज्वा कलम कांड गाडणम हि खुंडे जावो वा कलम भारतवास्युं तैं क्या घचकालि ? तथगा विचारक  बुल्दन बल तैकि कलम मा न्यूक्लियर बम भर्युं च पण खारु  इन जम्युं च बल ज्वा कलम पटाखा आवाज नि दबै साकलि वा कलम भारतवास्युं  कुम्भकरणी निंद क्या बिजाळली ! 
  
                  अजकाल भारतं प्रजातंत्र का नाम पर जु बेराजि  हुयुं च , प्रजा तन्त्र का नाम पर भारतीय उद्यम पर बड्रा जन बिचौलियों कब्जा हुयूं च , सी बी आई  प्रजा तन्त्र का नाम पर कोयला खदान आबंटन की काळी -गोरी -लाल-हरी फाइल हरचणि छन । कॉमन  वेल्थ खेलुं नाम पर रिशवतखोरि चौपड़ खिल्याणि छन । कोलेसन सरकार  की मजबूर्युं नाम पर टू जी घोटाला तै सही ठहरै जांद।  विरोध का नाम पर संसद हि नि चलण दिए जांद । रिफार्म  का नाम पर धरती फ़ोकट मा धनियों तैं दिए जांद । रिफौर्म करद दै  भारतीय भूगोल , इतिहास अर संस्कृति को क्वी ख्याल नि रखे जांद कि रिफौर्म से फैदा ह्वावो । इन स्थिति मा  आज भारत तैं एक कलम चयाणि च , एक आवाज चयाणि च ।
            भारत मा समौ समौ पर कलमी आवाज ह्वेन जौन भारत मा भारतीयों को मन ही बदल द्यायि अर सामजिक -सांस्कृतिक क्रान्ति लैन । 
          दूर क्या जाणै जरा गोस्वामी तुलसी दास तैं हि देखि ल्यावो । तुलसीदास की सबि रामचरित मानस का बान याद करदन पण तुलसीदास को क्रांतिकारी साहित्य रामचरित मानस नि छौ. राम चरित्र तो महाभारत का बगत से ही भारतम प्रचलित छौ तो राम चरित मानस क्रांति कारी साहित्य ह्वेइ नि सकेंद । बलकणम तुलसिदासौ क्रांतिकारी साहित्य 'हनुमान चालीसा ' ही छे  (यद्यपि हनुमान का बारा मा माधवा चार्यन बि लेखी छौ ) । आज अवधि मा लिखीं 'हनुमान चालीसा ' ही हरेक भारितीय भाषाओं मा ही पढ़े जांद ।  तमिल -तेलगू की हनुमान चालीसा वास्तव मा अवधी हनुमान चालीसा ही च । तुलसी दासक  हनुमान चालीसा से पैल हनुमान का अकेला  मन्दिर भारत मा तकरीबन नि छ पण 'हनुमान चालीसा '  भारत मा एक सांस्कृतिक क्रांति लायी अर भारतं हनुमान मन्दिरों स्थापना शुरू ह्वाइ । तबि त हनुमान मन्दिरों पर इस्लामी स्थाप्य कला को भरपूर प्रभाव च (एक उदहारण -गोल गुम्बद ) । हनुमान चालीसा अफिक भारत का प्रत्येक हिस्सा मा प्रसिद्ध ह्वाइ । 
                पण अब भारतम भारत लैक कलम जनम नि लीणा छन । जब कि आज भारतम एक क्रांतिकारी कलम की जरूरत च तख पलायनवादी साहित्य , तिकड़मी साहित्य ही जादा रच्याणु च । चाहे सवर्ण  या चाहे दलित साहित्यकारुं साहित्य ह्वावो यदि भ्रष्ट समाज या नीति विरोध को साहित्य लिख्याणु बि च तो वो केवल विरोध तैं उद्येश्य से लिख्याणु च अर जब विरोध उद्येश्य ह्वावो तो विरोध ही पैदा होलु । आज समाज लैक साहित्य गुम  ह्वे ग्यायी तभी तो साहित्यकारों साहित्य क्वी मन्दिर नि बणवै सकणु च जन हनुमान चालिसान भारत मा हनुमान मन्दिर बणाणो शक्ति लायि छौ । आज साहित्यकार अपण विचारूं  बान लड़णु च अर समाज को बान नी लड़णु च । आज का साहित्यकारूं कुण अपण विचार महत्वपूर्ण ह्वे गेन अर समाज गौण तो समाज साहित्य से मनोरंजन जरुर प्राप्त करणु च , मजा जरुर लीणु च पण समाज भारत की तकदीर बदलणों बान खड़ो नि होणु च किलैकि जो साहित्य वो बंचणु च , पढ़णु च वो क्वी ख़ास विचार पढ़णु च जखमा विचार समाज पर भारी पड़णु च, जखमा विचार महत्वपूर्ण च अर समाज पैथर च। इन परिस्थिति मा साहित्यकारों साहित्य से सम्पूर्ण क्रांति -बदलाव की संभावना छैंइ नी च । 
 'समाज सर्वोपरी'च दिखणाइ त हनुमान चालीसा बांचो अर तुम पैल्या कि इखमा समाज को भय दूर करणै बात महत्वपूर्ण च ना की हनुमान तै दिवता बणाणो विचारधारा । जब कि आज का साहित्यकार अपण विचारधरा तैं पैल दिवता बणाण चाणु च अर समाज की भलाई वांक बाद । अरे समाज तैं अग्वाड़ि लैल्या त तुमर विचार अफिक दिवता बणि जाला ।
  साहित्यकारों का बीच लड़ाई यांक नी च कि समाज  मा बदलाव  लाये जावो बलकणम लडै यांक च कि कैका  विचार क्रांतिकारी छन। साहित्यकारों बीच अपण विचारों तैं दिवता बणाणो झगड़ा चलणु च, प्रतियोगिता चलणि च । धार्मिक साहित्यकार त विचारूं गुलाम इन छन कि क्या बुल हिंदु धार्मिक साहित्यकार बद्रीनाथ इलाका का बुगुल-कुणज समोदरा छल पर उगाणो बात करद अर मुसलमान धार्मिक साहित्यकार बद्रीनाथ इलाका मा रोज तुड़णो बान बद्रीनाथ इलाका मा खजूर वृक्षारोपण करणु च । साहित्य मा केवल अपण विचार महत्वपूर्ण ह्वे गै अर समाज धरातल तौळ दबाये जाणु च ।
 अर इनमा अपण विचारों का प्रति लगाव से ही कलम कुंद ह्वे गेन । अपण विचार ही सर्वोपरी की भावना से लेखनी परमाणु बम नि बणना छन । केवल म्यार विचार ही दुन्या बदल सकदी का विचार ही परिवर्तन गामी कलम पैदा नि होण दीणि च । 


Copyright@ Bhishma Kukreti 25/8/2013 



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