भकलौण्या : भीष्म कुकरेती
जी हाँ ! मि धै लगैक बुलणु छौं बल अमिताभ बच्चन की फिल्मों भ्रष्टाचार विरुद्ध अन्ना आन्दोलन नेस्ताबूद कार I
हाँ हाँ ! मि खुले आम , बीच बजार मा अर इन्टरनेट कु थौळम गर्जिक -बर्सिक बुलणु छौं बल अन्ना आन्दोलन खतम करण मा अमिताब बच्चन फिल्मो योगदान च I
हाँ भै हाँ ! मि बगैर भंगुल -दारु पेक बथाणु छौं बल भारतम संसाधनों पर लग्युं भ्रष्टाचार को कीड़ो विरुद्ध बिगुल बजाण वळु अन्ना आन्दोलन कि मुखर आवाज बंद करणों वजै अमिताभ बच्चन की फिल्म बि छन I
बोलि याल ना कि मि ढोल घुरैक , दमौ बजैक कन्टर बजैक, सबि हिदुस्तान्यूं तैं धाद दीणु छौं बल अन्ना आन्दोलन पर अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन पाणी फ्यार, अन्ना आंदोलन को जजबा अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन खतम कार , अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन क जड़नास कार I अन्ना आन्दोलन जो समाजम एक उथल-पुथल , बदलाव लाण वळ थौ अमिताभ बच्चन की फ़िल्मोन वै आन्दोलन की भ्रूण हत्या करी दे ! अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन कि कमर तोड़ि I
क्या बुना छंवां बल मि बौळे ग्यों ? तुमर विचार से -सुचण से मि पगलै ग्यों ?
न्है न्है ! ब्याळि डाक्टरन पूरो चेक अप कार अर डाक्टरन ब्वाल बल जब आदिम पर बिंडी बीति जान्दि तो वो कारणों जड़ तलक पौंछणो कोशिस करदो I
अब आप ही बथावो कि सहत्तर -अस्सी को दसकम अमिताभ बच्चन की फिलम हिट किलै ह्वेन ? आखिर हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी -नेपाळी -श्री लंकाई किलै अमिताभ बच्चन की फिल्मो दीवाना ह्वैन ?
जब हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी आदि अपण व्यवस्था , अपण शासन , अपण प्रशासन , अपण धर्मुं ठेकेदारुं , समाजौ ठेकेदारों से त्रस्त , भयभीत , पीड़ित , दुखी ह्वे गे छा , डौर गे छा I समाज तैं , व्यक्ति तैं व्यवस्था को प्रताड़ना से मुक्ति को क्वी आस , क्वी साधन , क्वी माध्यम नि दिख्याणु छौI व्यक्ति एआरएम समाज मा आशाहीन मानसिकता ऐ गे छे, समाज अर व्यक्ति किम कर्तव्य को भंवरों बीच फंसी गे छौ तो अमिताभ बच्चन की विद्रोही आवाजन , अमिताभ की फिल्मों मा विजय नामौ चरित्र का समाज तैं दबाणै व्यवस्था का विरुद्ध विद्रोही स्वरों , एकाधिकारी व्यवस्था विरोधी डायलौगूं से हम तैं लग कि हम तैं अभिब्यक्ति मिलि गे भारतीय उपमाहाद्वीप का जन मानस तैं लग कि अमिताभ बच्चन विजय ही तो हमारी प्रतिछाया च I अमिताभ को चरित्र याने विजय आम भारतीय उपमहाद्वीप का लोगुं अभिव्यक्ति को प्रतिनिधि बौण गे I लोगुं तैं लग अब विजय ही कुप्रशासन खतम कारल I जनता तैं लग अब विजय नामक अकेला व्यक्ति ही हम तैं जगा जगा बैठ्याँ एकाधिकारियों से मुक्ति दिलाणम काफी च I लोगुन तैं पूर्ण विश्वास ह्वे गे बल विजय नामक केवल एक चरित्र सबि तरां को अनाचार्युं , अत्याचार्युं , व्यभिचार्युं, दुराचार्युं , पतितों तैं ख़त्म कौर द्याल I भारतीयोंन अमिताभ बच्चन को चरित्र तैं सच समजी याल I
पण असलियत , हकीकत , वास्तविकता , रियलिटी कुछ हौरि छौ I अमिताभ बच्चन की फिल्म एक अकेला व्यक्तिवाद तैं दिखाणु छौ कि दमघोटू दुर्व्यवस्था तैं नेस्ताबूद करणों बान बस समाज मा एक 'विजय' चरित्र काफी च अर समाज केवल दर्शक बण्यु बि रालो तो भी 'विजय' नामौ चरित्र मुक्ति दिलै द्यालो I अमिताभ बच्चन की अधिकतर फिल्मों मा दुराचार , अनाचार , अत्याचार मिटाणो बाण केवल एक ही व्यक्ति 'विजय' दिखाये गे अर समाज की भूमिका केवल मूक दर्शक की दिखाए गे I
जब कि असलियत मा जरूरत विजय की भी छे जो हमारी अभिव्यक्ति को प्रतिनिधित्व अवश्य कारो अर समाज मूक दर्शक नि रावो बलकणम समाज अपणो सामाजिक, सामूहिक भागीदारी निभावो I जब एकाधिकारी या अनाचारी व्यवस्था ह्वावो तो वीं ताकतवर , खतरनाक व्यवस्था तैं बदलणो बान व्यक्ति तैं सामूहिक रूप से लड़ण जरूरी च I दक्षिण भारतीय फिल्मों पर नजर डाळो त उख बि ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत, आदि की फिल्मोंन भी वाही भूमिका निभाई जो अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन निभाई याने समाज मूक दर्शक अर एक व्यक्ति दुराचार -अनाचार नाशक !
अन्ना हजारे मा भारतीयों न 'विजय' चरित्र द्याख अर सरा उप महाद्वीप आशावंत ह्वे ग्याइ कि अब हम तैं 'विजय' चरित्र मीलि ग्याइ अर समाजान अन्ना हजारे या 'विजय' नामक चरित्र तैं समर्थन , सहयोग दे जन लोगुंन ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत, अमिताभ की फिल्मों तैं समर्थन दे पण जो समाज से अपेक्षित/आशा छौ वो समाजन नी दे I समाज से अपेक्षित छौ कि अन्ना हजारे दगड़ भागीदारी निभावो पण हम तो अमिताभ बच्चन की फिल्मों का व्यसनी ह्वे गेवां अर एक व्यक्ति का भरोसा बैठि गेवां अर अपणी भागीदारी निभाण बिसरी गेंवाँ I
यदि हम दैंत -दिवतौं इतिहास पर बि नजर मारवां तो हम दिखला कि शिवजी , विष्णु जी या अन्य देवियों -दिबतौं अकेला कारनामा से दैंत -राक्षस खतम नि ह्वेन . शिवजी , विष्णु , देवी का भौं भौं रूप दैन्तों से रोज लड़णा रैन पण दैंत मूल नाश तब बि नि ह्वे I दैंत मूल नाश तबि ह्वे जब दिबतौंन सामूहिक भागीदारी निभाई अर वो सामूहिक भागीदारी छे ' समुद्र - मंथन' I समुद्र मंथन ' सामूहिक भागीदारी को एक अनूठा मिसाल छौ जख मा 'विजय ' चरित्र शिव -विष्णु -ब्रह्मा रूप छा पण दिबता कट्ठा ह्वेक दैंत संघार को करतब मा शामिल छा I 'समुद्र मंथन ' मा एक एक दिबता को महत्व छौ, एक एक दिबता की अपणी अलग भूमिका छे अर तबि दिबतौंन दैंतों तै हमेशा क बान (सदा के लिए) कमजोर बणाइ , दैंत खतम करे गेन I
यदि अन्ना हजारे जन आन्दोलन तैं सफल करण तो प्रत्येक जण -बच्चा याने व्यक्ति तैं अपण भागीदारी भि निभाण पोड़ल जन हरेक दिबतान राक्षस मूलक यज्ञ 'समुद्र मंथन ' मा निभाई छे I
Copyright @ Bhishma Kukreti 12/8/2013
जी हाँ ! मि धै लगैक बुलणु छौं बल अमिताभ बच्चन की फिल्मों भ्रष्टाचार विरुद्ध अन्ना आन्दोलन नेस्ताबूद कार I
हाँ हाँ ! मि खुले आम , बीच बजार मा अर इन्टरनेट कु थौळम गर्जिक -बर्सिक बुलणु छौं बल अन्ना आन्दोलन खतम करण मा अमिताब बच्चन फिल्मो योगदान च I
हाँ भै हाँ ! मि बगैर भंगुल -दारु पेक बथाणु छौं बल भारतम संसाधनों पर लग्युं भ्रष्टाचार को कीड़ो विरुद्ध बिगुल बजाण वळु अन्ना आन्दोलन कि मुखर आवाज बंद करणों वजै अमिताभ बच्चन की फिल्म बि छन I
बोलि याल ना कि मि ढोल घुरैक , दमौ बजैक कन्टर बजैक, सबि हिदुस्तान्यूं तैं धाद दीणु छौं बल अन्ना आन्दोलन पर अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन पाणी फ्यार, अन्ना आंदोलन को जजबा अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन खतम कार , अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन क जड़नास कार I अन्ना आन्दोलन जो समाजम एक उथल-पुथल , बदलाव लाण वळ थौ अमिताभ बच्चन की फ़िल्मोन वै आन्दोलन की भ्रूण हत्या करी दे ! अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन अन्ना आन्दोलन कि कमर तोड़ि I
क्या बुना छंवां बल मि बौळे ग्यों ? तुमर विचार से -सुचण से मि पगलै ग्यों ?
न्है न्है ! ब्याळि डाक्टरन पूरो चेक अप कार अर डाक्टरन ब्वाल बल जब आदिम पर बिंडी बीति जान्दि तो वो कारणों जड़ तलक पौंछणो कोशिस करदो I
अब आप ही बथावो कि सहत्तर -अस्सी को दसकम अमिताभ बच्चन की फिलम हिट किलै ह्वेन ? आखिर हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी -नेपाळी -श्री लंकाई किलै अमिताभ बच्चन की फिल्मो दीवाना ह्वैन ?
जब हिन्दुस्तानी -पाकिस्तानी -बंगलादेसी आदि अपण व्यवस्था , अपण शासन , अपण प्रशासन , अपण धर्मुं ठेकेदारुं , समाजौ ठेकेदारों से त्रस्त , भयभीत , पीड़ित , दुखी ह्वे गे छा , डौर गे छा I समाज तैं , व्यक्ति तैं व्यवस्था को प्रताड़ना से मुक्ति को क्वी आस , क्वी साधन , क्वी माध्यम नि दिख्याणु छौI व्यक्ति एआरएम समाज मा आशाहीन मानसिकता ऐ गे छे, समाज अर व्यक्ति किम कर्तव्य को भंवरों बीच फंसी गे छौ तो अमिताभ बच्चन की विद्रोही आवाजन , अमिताभ की फिल्मों मा विजय नामौ चरित्र का समाज तैं दबाणै व्यवस्था का विरुद्ध विद्रोही स्वरों , एकाधिकारी व्यवस्था विरोधी डायलौगूं से हम तैं लग कि हम तैं अभिब्यक्ति मिलि गे भारतीय उपमाहाद्वीप का जन मानस तैं लग कि अमिताभ बच्चन विजय ही तो हमारी प्रतिछाया च I अमिताभ को चरित्र याने विजय आम भारतीय उपमहाद्वीप का लोगुं अभिव्यक्ति को प्रतिनिधि बौण गे I लोगुं तैं लग अब विजय ही कुप्रशासन खतम कारल I जनता तैं लग अब विजय नामक अकेला व्यक्ति ही हम तैं जगा जगा बैठ्याँ एकाधिकारियों से मुक्ति दिलाणम काफी च I लोगुन तैं पूर्ण विश्वास ह्वे गे बल विजय नामक केवल एक चरित्र सबि तरां को अनाचार्युं , अत्याचार्युं , व्यभिचार्युं, दुराचार्युं , पतितों तैं ख़त्म कौर द्याल I भारतीयोंन अमिताभ बच्चन को चरित्र तैं सच समजी याल I
पण असलियत , हकीकत , वास्तविकता , रियलिटी कुछ हौरि छौ I अमिताभ बच्चन की फिल्म एक अकेला व्यक्तिवाद तैं दिखाणु छौ कि दमघोटू दुर्व्यवस्था तैं नेस्ताबूद करणों बान बस समाज मा एक 'विजय' चरित्र काफी च अर समाज केवल दर्शक बण्यु बि रालो तो भी 'विजय' नामौ चरित्र मुक्ति दिलै द्यालो I अमिताभ बच्चन की अधिकतर फिल्मों मा दुराचार , अनाचार , अत्याचार मिटाणो बाण केवल एक ही व्यक्ति 'विजय' दिखाये गे अर समाज की भूमिका केवल मूक दर्शक की दिखाए गे I
जब कि असलियत मा जरूरत विजय की भी छे जो हमारी अभिव्यक्ति को प्रतिनिधित्व अवश्य कारो अर समाज मूक दर्शक नि रावो बलकणम समाज अपणो सामाजिक, सामूहिक भागीदारी निभावो I जब एकाधिकारी या अनाचारी व्यवस्था ह्वावो तो वीं ताकतवर , खतरनाक व्यवस्था तैं बदलणो बान व्यक्ति तैं सामूहिक रूप से लड़ण जरूरी च I दक्षिण भारतीय फिल्मों पर नजर डाळो त उख बि ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत, आदि की फिल्मोंन भी वाही भूमिका निभाई जो अमिताभ बच्चन की फिल्मोंन निभाई याने समाज मूक दर्शक अर एक व्यक्ति दुराचार -अनाचार नाशक !
अन्ना हजारे मा भारतीयों न 'विजय' चरित्र द्याख अर सरा उप महाद्वीप आशावंत ह्वे ग्याइ कि अब हम तैं 'विजय' चरित्र मीलि ग्याइ अर समाजान अन्ना हजारे या 'विजय' नामक चरित्र तैं समर्थन , सहयोग दे जन लोगुंन ऐम . जी रामचंद्रन , ऐन . टी . रामाराव या आज का चिरंजीवी , रजनीकांत, अमिताभ की फिल्मों तैं समर्थन दे पण जो समाज से अपेक्षित/आशा छौ वो समाजन नी दे I समाज से अपेक्षित छौ कि अन्ना हजारे दगड़ भागीदारी निभावो पण हम तो अमिताभ बच्चन की फिल्मों का व्यसनी ह्वे गेवां अर एक व्यक्ति का भरोसा बैठि गेवां अर अपणी भागीदारी निभाण बिसरी गेंवाँ I
यदि हम दैंत -दिवतौं इतिहास पर बि नजर मारवां तो हम दिखला कि शिवजी , विष्णु जी या अन्य देवियों -दिबतौं अकेला कारनामा से दैंत -राक्षस खतम नि ह्वेन . शिवजी , विष्णु , देवी का भौं भौं रूप दैन्तों से रोज लड़णा रैन पण दैंत मूल नाश तब बि नि ह्वे I दैंत मूल नाश तबि ह्वे जब दिबतौंन सामूहिक भागीदारी निभाई अर वो सामूहिक भागीदारी छे ' समुद्र - मंथन' I समुद्र मंथन ' सामूहिक भागीदारी को एक अनूठा मिसाल छौ जख मा 'विजय ' चरित्र शिव -विष्णु -ब्रह्मा रूप छा पण दिबता कट्ठा ह्वेक दैंत संघार को करतब मा शामिल छा I 'समुद्र मंथन ' मा एक एक दिबता को महत्व छौ, एक एक दिबता की अपणी अलग भूमिका छे अर तबि दिबतौंन दैंतों तै हमेशा क बान (सदा के लिए) कमजोर बणाइ , दैंत खतम करे गेन I
यदि अन्ना हजारे जन आन्दोलन तैं सफल करण तो प्रत्येक जण -बच्चा याने व्यक्ति तैं अपण भागीदारी भि निभाण पोड़ल जन हरेक दिबतान राक्षस मूलक यज्ञ 'समुद्र मंथन ' मा निभाई छे I
Copyright @ Bhishma Kukreti 12/8/2013
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments