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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 5, 2012

थैंक यू स्कूल टीचर ! गढवाली हास्य व्यंग्य साहित्य


गढवाली हास्य व्यंग्य साहित्य
 
 
                                                   थैंक यू स्कूल टीचर !
                                              चबोड्या - भीष्म कुकरेती
 
म्यरो नाती क मास्टर जी !
समनैन !
हालंकि मेरो नाती तै जनि पता चौलल मीन आपौ कुण नमस्कार या समनैन संबोधन करी त वैन चिरडे जाण कि मी अबि बि ये जमानो मा वै जमाने कि बात करदू. वैक हिसाब से नमस्कार अर समनैन असभ्य लोगूँ भाषा च.
म्यार नाती क वजे से अब गां मा मेरी बडी पूछ ह्व़े ग्याई. जब तलक मेरो नाती आपक स्कूल नि गे छौ पैल मेखुण लोग ददा या काका-बाडा बुल्दा छया अब नाती न सरा गाँ वळु तै सिखाई याल कि मि अब या त ग्रैंड पा छौं या अंकल छौं. आपक स्कुलो कारण म्यरो प्रमोसन ह्व़े ग्याई. थैंक यू टीचर. लॉन्ग लिव न्यू एजुकेसन. अब हमर गाँ मा क्वी बि ब्व़े या बाब नी रयुं च. अब सब्युं क प्रमोसन ह्व़े ग्याई. अब ब्व़े मोंम ह्व़े ग्याई अर बाबा पा ह्व़े ग्याई. बौ अब इन लौ ज ह्व़े गेन. इख तलक कि अब गीत इन ह्व़े गेन
नि जाणा ये इन लौ सतपुळी को म्याळा , कतै इ नि जाणा मेरी इन लौ सरीला
गां मा अंग्रेजी स्कूल आण से अब हम सब गाँ वळ बि सभ्य ह्व़े गेवां अब हम सुबेर नक्वळ नि खांदा बल्कण मा बेक फास्ट लीन्दा. अर हम तै पैल पता इ नि छ्या कि हम दिन मा कुछ हौर खांदा छया अर स्याम दै कुछ हौर. म्यार नाती न बताई कि अब हम दिन मा लंच खांदा अर रात डिन्नर. वो अलग बात च कि भुज्जी अर रुट्टी वी होन्दन .
जब मेरो नाती स्कूल नि जान्दो छौ त वो नयान्दो छौ अब वो बाथ लीन्दु. वु बुल्दो बल नयाण मा असभ्यता की गंद आँदी अर बेदिंग मा सभ्यता की स्मेल आँदी . चूंकि अब बुढापा मा म्यार नाक इथगा संवेदनशील नी च त मै तै पता इ नि चलणु च कि असभ्यता कि गंद अर सभ्यता कि स्मेल मा क्या फरक होंद.
टीचेर जी!
           म्यार नाती आपसे भौत प्यार करदो. स्कूल बिटेन वो भागी भागिक ड़्यार इलै आन्दु कि वै तै आपक दियुं होम वर्क पूरो करण अर सुबेर सुबेर ओ दौड़ी दौड़ीक स्कूल इलै जांद कि वै तै होम वर्क दिखाण. अर हाँ इथगा होम वर्क दीणो बान धन्यवाद. होम वर्क करण मा इ वैक सरा समौ बीत जांद अर गां मा गाळी गळोज दीणो मौक़ा इ नि मिल्द. निथर हमर टैम पर हम होम वर्क नि होंद छौ त हम टैम बिताणो बान गाळी गुळि दीणो प्रैक्टिस करदा छा अर खेतिक काम करदा छया .
फिर जब बिटेन गाँ मा खेती पाति बन्द ह्वेन त बच्चों कुणि फिजिकल एकसारसाईज करणो कुछ नि रै ग्याई . धनभाग जु आपन म्यार नाती तै इथगा बड़ो बस्ता दे द्याई कि वै बस्ता तै अळगांद अळगांद म्यार नाती दारा सिंग जन ताकतवर ह्व़े ग्याई .
आपन रक्षा बंधन जन त्यौहार तै महत्व नि दे. बड़ो बढिया कौर . अब बथाओ कै तै बि भै बै णि बणाण अर रखडी पैनाण बि क्वी रीति रिवाज ह्व़े क्या?
                  अर आपक स्कूल न हमारो गां मा एक नयो नायाब रिवाज डाळि वांको वास्ता धन्यवाद. फ्रेंडशिप डे कु रिवाज रखड़ी से बढिया च . द्याखो ना अब रखडी छोड़िक लोग सरा गाऊँ मा सौब रबर बैंड बंधिक घुमणा छन. मेरी रिश्ता मा एक बौ च. साथ साल बिटेन मी वीं बौ क बडे करण चाणो छौ पण मौक़ा इ हात नि औणो छौ. ब्याळी (रखडी दुसर दिन ) म्यार नाती स्कूल बिटेन फ्रेंडशिप का रबर बैंड खरीदिक लाइ त पैल त मै गुस्सा आई इ कि एक बैंड जु बजार मा दस पैसा मिल्दो आप दस रूप्या मा बिचणा छंवां . पण फिर मी तै तै फ्रेंडशिप रबर बैंड मा भौत बड़ी संभावना दिख्याई. मी उठो अर एक रबर बैंड मीन वीं बौ क हथुन मा बाँधी दे. वा बौ भौत पुळयाई अर गाळी दीण बिस्याई बल ये निर्भाग ! त्वे साठ साल लगीन फ्रेंडशिप करण मा ? आपक फ्रेंडशिप डे से मीन अपण भावना प्रकट कार . हमर गाँ मा पुराणो रिवाज निबटाणो अर नयो रिवाज लाणो बान धन्यवाद.
हालांकि कुछ बात मेरी समज मा नि आन्दन .
            जन कि आप मदर डे, फादर डे, टीचर डे क दिन बच्चों तै चौकलेट बीस गुणा दाम पर बिकवदां . जु हम गढ़वळी इनी जि दिमाकबाज हूंदा अर बणिया परविर्ति का हूंदा त क्या हमर छ्वटु सि गाँ मा राजस्थानी या पंजाबी बणिया आंदा? चलो खैर चौकलेट बिचणो बान इ सै कुछ त हम गढ़वाळयूँ मा बिजिनेस सेन्स त आलो !
                   पैल पैल त हम सौब गाँ वाळ बेहोश हुन्वां कि सरकारन डोनेसन पर रोक लगाईं च पण आप हर दुसर दिन कै ना कै डे क बान डोनेसन लीन्दा पण अब हम सौब खुश छंवां कि जब हमारा नाति नतिणा सरकारी कारिन्दा बौणल त ऊं तै घूस ल़ीणो बान बहाना बणाण नि सिखण पोडल. यि अबि बिटेन शास्त्रीय ढंग से घूस लीण सीखी गेन.
                      आप हमारा बच्चों तै कृषि सिखाणो बान भाभर टूर पर ली जांदा . यू बि आप ठीक इ करदां भो ल यूँन मैदानी हिसों मा इ बसण त बचपन मा इ मैदानी संस्कृति से मुखाभेंट राली त यूँको इ भलो ह्वाल.
फ्रेंडशिप डे क नीबत आज इथगा इ !
 
युवर्स फेथफुली --
अपण नाति क लवली ग्रैंड पा !
Copyright@ Bhishma Kukreti 5/8/2012 

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