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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 5, 2012

त्वे किलै हुयूं कपचाट रे

क्वी खाणू च
खाणि दे
क्वी पीणू च
पीणि दे
क्वी हैंसणू च
हैंसणि दे
क्वी रूणू च
रूणि दे
क्वी सीणू च
सीणि दे
क्वी अपणि
निखणि करणू  
करणि दे 
रैणि दे 
जु ज्य बि कर्द
करणि दे
तू अपणि सोच 
अपणि 
पुट्गी देख
अपणि 
लुतगी देख
अपणि
हड्गी देख 
अपणि 
ल्वे देख 
अपणि
ज्वै देख
निर्भगी तेरो 
किलै हुयूं 
रपचाट रे  
त्वे किलै हुयूं 
कपचाट रे . 

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित...

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