गढ़वळि बाल कथा
साग-भुजी अर डाळो झगड़ा
भीष्म कुकरेती
भौत समौ पैलाकि छ्वीं छन जब गढ़वळी गाऊं मा खेती हुंदी छे.
एक मनिखौ सग्वड़ छौ पाणि जगा मा छयो. सग्वड़ो बगल मा दें तरफ एक बड़ो खैणु डाळ बि छौ . दें तरफ बिटेन छिन्छ्व ड़ बिटेन पाणि कूल आँदी छे , अर इन मा साग भुजी तै पाणि मिल्दो छौ अर अंत मा खैणो डाळ तै बि पाणी मिल जान्दो छौ जां से खैणो डाळ खूब हर समौ हर्युं रौंद छौ. सग्वड़ बिटेन बर्मस्या छीमी लगुल ऐक खैणो डाळ पर चिपटिक मथि तलक डाळो चंका मा जयुं रौंद छौ. छीमी क लगुल खूब फुळड़ दीन्दो छौ.
सौब राजी खुसी से रौंदा छया. याँ से पुंगड़ो गुसैं बि भौत मेनत करदो छौ अर न्यळण गुड़ण मा , पाणि चारण म कतई बि अळगस नि करदो छौ जां से सब्यूँ पर फूल फल खूब आंदा छया. सब्युं पर बरकत छे .
एक दै साग भुज्यूँ तै नरक्वाण चढि गे बल ये खैणों डाळो छैल से ऊं तै सूरजौ उज्यळ कम मिल्दो अर ऊं क्या ब्युंत उर्याई बल जु बि पाणि कूल से आंदो छौ सौब अफिक पीण लगी गेन अर एक बि बूँद पाणि खैणो डाळ तलक नि जाणि दे. खैणो डाळ न कथगा ब्वाल पण साग भुज्यूँ न खैणो डाळ कुणि रति भर बि पाणि नि छ्वाड . बस खैणो डाळ तैं गुस्सा चौढ़ अर वैन साग भुज्युं तै छैलु दीण बन्द करि दे अर दगड मा अपण पात बि हिलाण बन्द करि दे. याँ से साग भुज्युं पर सूरज कि रौशनी जादा हूण बिस्याई अर खैणो डाळक पात नि हिलण से बि गरम हूण मिस्याई जां से साग भुज्युं पता सुकण बिसे गेन . इना पाणि नि पाण से खैणो डाळ बि सुकण मिसे गे. अर दगड मा बर्मस्या छीमी क लगुल बि ल्हतमडे ग्याई
भुज्युं क सुक्याँ पात देखिक पुंगड़ो गुसै न बि नळे गुडै बन्द करि दे नजरे फेरी दे. पाणि दीण बन्द करि दे। अब जखम जाओ तखम खौड़ पाड़ हूण शुरू ह्व़े ग्याई .सबि मोरण्या ह्व़े गेन
अब बीच मा छीमी लगुल आई अर वैन भुज्युं समजाई बल द्याखो तुम खैणो डाळ तलक पाणि जाणि द्याओ त वो तुम तै छैलु द्यालु अर दगड मा हवा बि कारल . फिर छीमी क लगुल न खैणो डाळ समजाई बल तु जन पैल छयो उनि छैलु दींद जा अर भुजी त्वे जिना पाणि आण द्याला. भुज्जी बि मानि गेन अर खैणो डाळ बि मानि ग्याई.
फिर से भुज्जी अर खैणो डाळ पर हर्यो इ हर्यो ऐ ग्याई अर पुंगड़ो गुसै न फिर से पाणि दीण शुरू करी दे. नळे गुडै दुबर शुरू करि दे. सब्युं तै दुबारो जिन्दगी मीलि गे. अब फिर से पुंगड़ मा बहार ऐ ग्याई. वैदिन बिटेन खैणो डाळ अर साग भुज्जी मानि गेन , समजी गेन बल सहयोग अर सहकार से इ यू संसार चलदो. सबि बींगी गेन बल बगैर सहकार. यूँ तै ज्ञान ह्वाई बल सिरफ एक दुसरो मौ मदद सेइ सबि इक दगड़ी संसार मा ज़िंदा रै सकदन. असहकार, स्वार्थ अर अकड माने मौत या नुकसान.
Copyright@ Bhishma Kukreti 28/8/2012
गढ़वळि बाल कथा जारी ..
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