गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
चबोड्या - भीष्म कुकरेती
पटवारी तै अपराधी किलै नि दिख्यांद ?
-अरे पटवारी जी ! स्यू समणि पर अपराधी च अर तुम तै नि दिखयाणु ?
- कख च अपराधी ? मै तै त सरा संसार अपराध विहीन दिखयाणु च.
-कन काण्ड लगिन तैं रंडोळ अळगस पर . पटवारी जी ! अळगस छोडिल त तुम तै अपराधी दिख्याल ना ? जरा रोज कसरत , योग्याभ्यास वगैरा कारो. बेवजह अन्दाळ करणै प्रवृति छोडिल त स्यू चकडैत अपराधी अफिक दिख्याल.
- अरे पण क्या कौरु ! ले मीन तैं अळगस तै स्योड़ जोग करि आल . अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च. तु बुनी छे बल अपराधी समणि च अर भंगुल जामि कि में तै स्यू अपराधी अदिखळ हूयुं च ?
- पटवारी जी ! भंगुल त तै अठारा सौ सदी कु कबाड़ जन टेलिस्कोप से आजौ अपराधी दिख्ल्या त कने अपराधी दिख्याल . टुटकि ह्वेन तै प्रागऐतिहासिक टेलिस्कोप कि . जै टेलिस्कोपक अंजर पिंजर ढीला हुयाँ ह्वावन वां से त पहाड़ बि नि दिख्याल. जरा नया जुग को टेलिस्कोप लाओ त फिर कनकैक स्यू अपराधी नि दिख्यांद धौं !
- ले मि अब नयो टेलिस्कोप से बि दिखणु छौं पण मै अबि बि अपराधी नि दिखेणु च.
- बिजोग पोड़ीन तै पुराणा पेनल कोड पर. अरे पटवारी जी ! तुमर चस्मा पर जरा पुराणा पेनल कोड को सिंवळ जम्युं च . जरा तै मर्युं खप्युं सन अठारा सौ अठावन को ब्रिटिश पेनल कोड को सिंवळ हटैल्या त किलै ना स्यू बिलंच , ऐबी अपराधी दिख्यालू.
--ले भै ल़े ! मीन बेकाम कु पुराणा पेनल कोड क सिंवळ साफ़ कौरी आल पण कुनगस कि मै तै अबि बि स्यू अपराधी अदिखळ च .
- तड़म लगि जाओ स्यू लाल फीताशाही . हे पटवारी जी ! जरा आँखों मा लाल फीताशाही क जळम्वट त द्याखो. जरा तौं लाल फीताशाही क जळम्वट साफ़ त कारो फिर द्याखो कि अन्ध्यर मा बि तुम तै स्यू जल्लाद अपराधी दिख्यालु.
- ये ल्याओ मीन लाल फीताशाही क जळम्वट साफ़ करी आलि. पण ये म्यार भुभरड़ , अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.
- आग लगि जैन तैं ग्रुप बाजि पर. अरे पटवारी जी ! स्यू पाळिबंदी /स्य गुटबाजी क कीच जु तुमारो चस्मा पर लग्युं च ना वां से तुम काणो हुयाँ छंवां . जब तुमारि चस्मा पर ग्रुपबाजिक कीच साफ़ कारो त सै .
- ल्याओ मीन ग्रुपबाजिक कीच बि ध्वे आल अब . पन सत्यानास ! अबि बि अपराधी हर्च्युं च .
- बुरळ पोड़ी जैन, कीड पोड़ी जैन ये जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद पर. पटवारी जी ग्रुपबाजिक कीच त तुमन साफ़ कौरी आल पण स्यू जातीय समीकरण अर भाई भतीजाबाद कु कोंटेक्ट लेंस त तुमारो आन्खुं पर लग्यां छन कि ना ? पटवारी जी! जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद को कोंटेक्ट लेंस से हत्यारा, जघन्य हत्यारा अर आतंकवादी जन अपराधी बि नि दिख्यांद .
- ले भै ले ! अब मीन जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद को कोंटेक्ट लेंस बि भैर चुलै आल. ये मेरी ब्व़े ! अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.
- सड्याण ऐन तै राजनैतिक दबाब पर. पटवारी जी ! जरा अपण मुंड मा राजनीतक दखलंदाजी, राजनैतिक पैंतराबाजी, राजनैतिक स्वार्थ अर राजनैतिक बेईमानी क गर्रू पर त ध्यान द्याओ. तै राजनीतक प्रपंच को भार से तुमारा आँख इ ना सबि ज्ञान चक्षु बुज्यां छन जरा ये राजनैतिक छल छद्म को बहार तै बिसाओ , न्याय व्यवस्था मा तै राजनैतिक दखलंदाजी को गरु तै उतारो त सै.
- ओह, मीन सब राजनैतिक दखलंदाजी क भार उतारी आल. अब भौत इ हल्को महसूस करणु छौं . गुरा लगिन भै! फिर बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.
- मड़घट जोग ह्वेन सि अधिकार्युं परपंच, औतु ह्व़े जाओ स्या चमचागिरी क नीति, बसे जैन सि प्रोमोसन कि लाळसा .टुटि जैन स्यू ट्रांसफर को लगुल . पटवारी जी जरा अपण आंतरिक ब्यूह रचनाओं तै फेंको त सै . फिर द्याखो कि कन अपराधी नि दिखेंद धौं .
- ल़े मीन अब अपण आंतरिक व्यवस्था कि गलत ढर्रा तै बि भैर चुलै आल . पन गौ बुरी चीज च जु मै अपराधी दिखेणु ह्वाओ.
- निफल्टि लगी जैन तै घुसखोरी क . ये पटवारी जी अर वो जु तुमन घुस्खोरिक पगुड़ पैर्युं च ना वै पगुड़ से कबि बि अपराधी नि दिखेंद.
- ले मीन घूसखोरी क पगुड़ बि उतारी आल. पन हे भगवान अबि बि मै अपराधी नि दिखेणु च .
- ए मेरी ब्व़े . पटवारी जी ! जरा कंदूड़ लगावदी . कुछ सुण्याणु च ?
- हाँ ! हाँ जनता की आवाज सुण्याणि च .
- अच्छा चलो जनता क त सुण्याणि च . क्या बुनी च जनता ?
- जनता जोर जोर से बुनी च बल जु तुम नि सुदरल्या त हमन सिस्टम इ बदल दीण .
- अब अपराधी दिख्याणु च ?
- हाँ ! हाँ ! अपराधी त म्यार इ समणि च. अपराधी त साफ़ साफ़ दिख्याणु च .चल साले देखता हूं कि आज से तू कैसे अपराध करता है .
- जै हो जनता क दबाब की !
Copyright@ Bhishma Kukreti 30/8/2012
गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य जारी
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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