ननि गढवळी कथा
असली नरक कख च ?
कथा- भीष्म कुकरेती
दुर्वाशा ऋषि अर प्रसन्न ऋषि एकी दिन मोरिन . दुयूं तै स्वर्ग अर नरक को भिजणो फैसला क बान यमराज क दफ्तर मा लिजये ग्याई . दुर्वाशा ऋषि न बोली बल गुस्सा छोड़िक ऊनं क्वी गलत सलत काज नि कार . दुर्वासा जीक बयान छौ चूंकि गुस्सा रुकण ऊंक बस मा नि छौ त वो कुछ नि करी सकदन. यमराज न दुर्वासा रिसी तै सोराग भेजी दे. प्रसन्न रिसी आज तलक कबि गुस्सा नि ह्व़े छयाई .ऊं तै गुस्सा ऐ ग्याई अर ऊनं रोस मा यमराज कुणि ब्वाल, यमराज तुम न्यायधीश पद का अधिकारी नि छंवां. यि क्या एक गुस्सैल रिसी तै आपन दंड नि दे अर सोराग पठै द्याई ." रोस मा प्रस्सन रिसी क गिच बिटेन फ्यूण बगणु छौ
यमराजन फैसला द्याई," प्रसन्न रिसी जी तुम तै अबि बि गुस्सा रुकण नि आई . तुम तै नर्क इ भिजण ठीक रालो. जाओ दुबर पृथ्वी मा जाओ"
प्रसन्न ऋषि पुळे गेन अर बुलण मिसे गेन," चलो नरक नि मील"
इथगा मा चित्रगुप्त न ब्वाल," अच्छा त पृथ्वी क्या च ?"
Copyright@ Bhishma Kukreti
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