स्किट स्क्रिप्ट ::: भीष्म कुकरेती
द्वी झण बुड्या -बुडड़ी खुसी खुसी बैंक से भैर आंदन।
एक गिरहकट - यार ! सि द्वी ऐगेन हमर मुर्गा ! सि पैसा गाडिक बैंक से भैर आणा छन। अर तौंक खुसी बताणि च बिंडी पैसा निकाळ तौन !
हैंक गिरहकट - हाँ ! हाँ पक्का मुर्गा इ छन। जरा सुणदा क्या बुना छन।
पैलो गि . - हाँ उन बि तौंतैं कै कुण्या पर हि दबकाण।
बुड्या - एक लाख मादे दस हजार आज निकाळ ऐन तो बि नौ एक लाख तक त बैंक मा छै छन।
बुडड़ि - हाँ भौत छन। अपण साल भर तक खुसी खुसी काम चल जाल।
बुड्या - दस हजार छन। अक्वैक सम्भाळ हाँ !नवा कखि !
बुडड़ि - नै नै सम्बाळिक धर्यां छन।
बुड्या - अच्छा सूण ! जरा ब्वारी तैं समझाये कर कि जब बि बुलण त ठीक से बुलण।
बुडड़ि-कनो ?
बुड्या -अरे ब्वारी तैं बुलण चयेंद तैं सुनहली थाळी गाडो , रजत कलर की प्लेट निकाळो आदि आदि
बुडड़ि-हाँ ! समझाई च पर तैंक समज मा नि आंद कि कन बुलण चयेंद। लखपति छंवां तो लखपति जन बात करण चयेंद
बुड्या -समझा ! समझा ! निथर मि तैं इ समझाण पोड़ल। बुडड़ि- न ना ! मि समदै द्योल।
पैलो गिरहकट - सुनसान कुण्या ऐ गे। दबका तौं मुर्गों तैं पूरा दस हजार छन तौमां
दुसर गिरहकट - ऐ बुड्डी ! निकाळ तौं दस हजार रुपया !
बुड्या - अरे हम त गरीब -गुरबा छंवां !
पैलो गिरहकट छुर्रा दिखैक - हाँ हमन सुणि याल तुमरि छ्वीं। सुनहली थाली , रजत रंग की प्लेट !
दुसर गिरहकट -बैंक माँ नौएक लाख रुप्या जमा …
बुडड़ि (अपर ब्लाउज पुटकन रुप्या निकाळिक गिरहकट का हाथ मा धरदी )- मुकदान लगल तुमर !
पैलो गिरहकट - सौ रुप्या ! बस ?
दुसर गिरहकट - बेवकूफ समज क्या तुमन हम तैं ? तुमन बैंक से दस हजार निकाळिन
बुड्या - तो पूरा दस हजार इ त छन।
पैलो गिरहकट - अबे बुड्डे ! ये तो सौ रूपये हैं। बाकी नौ हजार नौ सौ भी निकालो।
बुड्या - हाँ पर सि सौ रुप्या इ त दस हजार पैसा छन कि ना ?
द्वी गिरहकट - क्या मतबल ?
बुड्या - हाँ दस हजार पैसा। हम हमेशा खुस रौण चांदा तो हम रुप्या नि गणदा बल्कि नया पैसा का हिसाब से गणत करदां।
गिरहकट - मतलब तुम लखपति नि छंवां ?
बुडड़ि - किलै ना ? पैसा तैं इकाई मानो तो वै हिसाब से हम लखपति छंवां कि ना ?
बुड्या - खुस हूणो बान हम धन तैं रुपया मा ना पैसों मा गणदा ! हम इन नि बुल्दां कि हम पांच रूप्याक टमाटर लवां बल्कि बुल्दां कि हमन आज पांच सौ का टमाटर खरीदेन
Copyright@ Bhishma Kukreti 14/10 /2014
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
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