भीष्म कुकरेती
नाम - अजी ! मेरि समिण क्वी नी च , म्यार अग्वाड़ी क्वी नी च , मि नि हों त कुछ बि नि ह्वे सकद। वेद , गणित , इतिहास , व्याकरण , अर्थ आदि सब मि छौं.। बगैर नाम का क्वी कुछ नि जाण सकद , मेरी पूजा हूण चयेंद।
वाणी - अहा ! घर मा ना धेला अर नाम च गुमान सिंग रौतेला ! भारी आई अफु तैं बडु बतौण वळु ! यदि मि जि नि हूँ त वेद , ज्ञान -अज्ञान, सत्य -असत्य तैं कु विज्ञापित कारल ? मे से ही धर्म -अधर्म कु ज्ञान हूंद। पूजा तो मेरी हूण चयेंद।
मन - हाहाहा ! यदि मनिख स्वाच ना तो क्यांक नाम अर क्यांक वाक् ? म्यार कारण मनिख वाक् बुलद अर तब नाम कु नाम लींद। कामना मीम जनम लींद। इलै मी इ लोक छौं , मी हि आत्मा छौं अर मी इ ब्रह्म छौं। उपासना तो मेरी हूण चयेंद।
संकल्प - ही ही ही! बाप ना मार सकु मेंढकी अर बेटा बुल्दु मि छौं कमाल ! हाथ ना हिलाये तो पेट कैसे भरेगा ! मि नि हूँ त क्वी बि संकल्प नि कर सकद , अर क्वी संकल्प नि कारल तो मनमा कनै कुछ बि गंठ्याल ? मि नि हूँ त मन की बात मन मा इ रै जालि। पूजा तो संकल्प की ही हूण चयेंद।
चित्त -भितर नी आलण अर भैरम नाचणी बादण ! मनिखम चेतना नि आवो तो संकल्प कनकै ल्याल ? चेतना से संकल्प पैदा हूंद , संकल्प से वाणी पैदा हूंद अर वाणी नाम लींद। पूजा का हकदार त मि छौं।
ध्यान - गुड बुलण से मुख मिठु नि ह्वे सकद , हथेली मा राइ नि उगाये जांद,गधा से घ्वाड़ा कु काम नि लिए जै सक्यांद । यदि मनिख या क्वी बि ध्यान से नि स्वाचल तो एक साथ हजारों संकल्प लेकि पागल ह्वे जालो। इलै मि याने ध्यान ही तुम सब मादे श्रेष्ठ छौं।
विशिष्ठ ज्ञान - विशिष्ठ ज्ञान से ही मनिख ध्यान कर सकुद, विशष्ठ तर्क मनिख माँ ध्यान लांद , विशष्ठ ज्ञान ही मनिख तैं अनुशासित करद। अतः ब्रह्म रूप मा पूजा कु असली अधिकारी मि छौं, मेरी ही पूजा हूण बेहतर च।
विशिष्ठ ज्ञान - विशिष्ठ ज्ञान से ही मनिख ध्यान कर सकुद, विशष्ठ तर्क मनिख माँ ध्यान लांद , विशष्ठ ज्ञान ही मनिख तैं अनुशासित करद। अतः ब्रह्म रूप मा पूजा कु असली अधिकारी मि छौं, मेरी ही पूजा हूण बेहतर च।
बल /तागत -तन सुखी त मन सुखी ! तागत नी च त सब स्याणी , गाणी , ध्याणी धर्यां का धर्यां रै जांदन। तागत से ही छुट से छुट -बड़ु से बड़ु कार्य सम्पादन हून्दन। तागत ही भगवान च ! तागत ही ब्रह्म च।
अन्न - हल्दीक जलड़ मील अर मूसन दुकान खोलि दे , अधभर गगरी छलकत जाय , गधा तैं झुल्ला पैराण से गधा घ्वाड़ा नि ह्वे सकद। क्या तागत असमान बटें टपकदि ? क्या छड़ी घुमाण से ताकत ऐ जांदी ? बगैर अन्न खयाँ तागत कखन आलि ? तबि त बुले जांद बल अन्न ही ब्रह्म च।
जल /पाणी - वो तो अब गंगू तेली बि राजा भोज की गद्दी सम्बाळणो ख्वाब दिखणु च। मि नि हूँ त अन्न कखन उगल /उपजल ? पाणी ही अमृत च , पाणि ही पूज्य च , जल ही ब्रह्म च।
ऊर्जा - द ल्या !बैलगाड़ी तौळौ कुकुर समझणु कि बैलगाड़ी उ चलाणु च! कुवा मिडुक समझणु कि कुवा से भैर क्वी संसार नी च ! काठै बिरळि मैं बणौलु पर म्याउ कु करलु ? बगैर ऊर्जा का , बगैर तेज का , बिना ऊर्जा का गर्मी , बरखा , हिंवळि कखन होलु ? अर गर्मी , बरखा , हिंवळि नि होला तो जल कखन आलु ? इलै मि याने तेज ब्वालो या ऊर्जा ब्वालो ही ब्रह्म च।
शून्यता , रिक्तता या आकाश - बड़ो ऐन अफु तैं अफिक बड़ा साबित करण वाळ ? आँख बंद करिक क्लास मा मास्टर नि दिख्यावु त यांक मतबल यु नी च कि क्लास मा मास्टर नी च , नाक बंद करिक सड्याण खतम नि हूंद , गरम कपड़ा पैरण से वातावरणौ तापमान नि बढ़द। रिक्तता नि हो त ऊर्जा कु उपयोग कनै होलु ? आकास याने रिक्तता नि हो तो समय चक्र , वायु चक्र , जल चक्र , सूर्य -चन्द्र आदि ग्रहऊँ चक्र चली नि सकद। इलै बुले जांद कि शुन्य ही ब्रह्म च।
स्मरण /यादास्त - तेल करे छम , नमक कहे मी जि ना तो सब इ चीज छ कम्म ! ये स्मरण शक्ति ही नि हो त मनिख मनन ही नि कर सकद तो फिर क्यांक संसार अर क्यांक अन्न जल ? इलै स्मरण ही ब्रह्म बुले जांद।
आशा - द लगा बल सुंगरुँ दगड़ , मुसाक नौनु दीवान नि हूँदु , पिपळा डाळम बैठ्युं गरुड़ बि घमंड करद कि पूजा वैकि हूणी च। यदि मि आशा ही नि हूं त मनिख कुछ बि स्मरण नि कारु। इलै त बुले जांद बल आशा: ब्रह्मास्ति।
आकाशवाणी - ये अपजितो (ईर्ष्यालु ), अपर अफि प्रशंसको ! प्राण क्या च ? प्राण का बारा मा तुमर क्या बुलण च ?
सबि नतमस्तक ह्वेक - प्राण ही माता च , प्राण ही पिता च , प्राण ही आशा कु जन्मदाता च , प्राण ही म्यार जन्मदाता च , प्राण ही शक्ति च , प्राण ही ब्रम्हांड च , प्राण ही सब कुछ च। याने प्राण ही सत्य मा ब्रह्म च।
( छान्दोगेय उपनिषद सप्तम अध्याय (१-१५ खंड ) की व्याख्या )
Copyright@ Bhishma Kukreti 23 /10 /2014
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