आपकी , अपणी आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -2
कथा वाचक ::: भीष्म कुकरेती
कथा वाचक ::: भीष्म कुकरेती
माया काका कु बि आम गढ़वळि तरां बुबाजी छा , ब्वे छे , भाई -बैणि छे पर वैन अपण ददि -ददा नि देखि छा। माया काकाक बुबाजी याने सचिदा दादा जीक बि आम गढ़वळि किसाणु तरां गौड़ , बल्द , ढिबर -बखर छा पर भैंस नि छौ पर कव्वा - कुत्तौं तैं खाणो खिलान्द छा। आम गढ़वळयुं तरां चौक बि साफि रौंद छौ , रुस्वड़ साफ़ छौ अर पाणि भांडु तौळ खौड़ रौंद छौ। आम गढवळयुं तरां सचिदा दादा जीक बड़ो परिवार छौ।
माया काकाक जनम ना तो ग्रहण , ना मूळ नक्षत्र मा ह्वे छौ अर साधारण नक्षत्र मा ह्वे छौ तो माया काका का नक्षत्रुं से सचिदा दादा जी, दादी अर तीन बड़ा भाई बैण्यूं का नक्षत्रुं तैं क्वी खतरा नि छौ तो माया काका की बि पूछ नि छे । वै बगत हरेकाक द्वी नाम हूंद छा एक नाम पंडित नक्षत्रुं हिसाब से धरद छौ अर दुसर नाम ददि -ननि -ब्वे -बाब बचणो बान , दाग नि लगो , घात नि लगो का बान धरदा छा जन कि घुत्ता , गुन्दरू , मख्वा , जोगी आदि आदि अर तिसर नाम मनिखौ कार्यकलाप से गाँ -गौळ पैथर धरदो छौ । चूंकि माया काका से बड़ा तीन हौर बच्चा बच्यां छा तो घूरा दादी जी तैं माया काका तैं बचाणो क्वी बड़ी चिंता नि छे तो माया काकाक बचणो बान अलग से नामकरण नि ह्वे बल्कि जन्मपत्री कु नाम से ही माया काका तैं पुकारे जांद छौ। हाँ गाँ वळ घूरा दादीक पीठ पैथर माया काका कुण दुमुंड्या बुल्दा छा किलैकि मया काका कु मुंड शरीरो अनुपात से बड़ु छौ।
गढ़वळि बच्चो समान , दुमुंड्या काका मळयो;, बाड़ी -पळयो ; सचिदा दादा -घूरा दादीक श्रुति से जमा कर्याँ शब्दकोश मा जथगा बि गाळी रै होलि ऊँ सदाबहार गाळयुं बेहिचक सेवन करिक , खूब मार खैक बड़ु ह्वे गे। खांद -पींद मवाशौ नाता ना ; बामण हूणों नाता ना बल्कण मा वै बगतौ रिवाजौ डौरन सचिदा दादा जी तैं दुमुंड्या काका तैं माया से मायाराम घोषित करण जरूरी ह्वे गे याने माया काका तैं चौकल दीण जरूरी ह्वे गे छौ। चौकल दीण से ही माया काका स्कूलम भर्ती ह्वे सकद छौ अर सचिदा काकाक बखर छया कि जु माया काका तैं चौकल दीण से रुकणा छा। यदि माया काका तैं चौकल दीण तो समस्या बखर चराणो जि आणि छे। खैर वै बगतौ रिवाजन सचिदा काका तैं विवश कार कि माया काका तैं स्कुल भिजे जावो तो सचिदा दादा तैं चौकल दीणो दिन निकाळणो बान बामणम जाण ही पोड़।
कुछ पूजा या श्लोक वाचन का बाद बामण बि तयार छौ , चौकल बि तयार छौ , लाल माटु बि चकाचक तयार छौ बस दूल्हा याने मायाराम जी की इंतजारी छे। जब तक चौकल नि सज छौ तब तलक माया काका नया मलेसिया का कुर्ता -सुलार मा फर्र फर्र करिक घौरम हि फुदकुणु छौ पर जनि माया काकन चौकल मा माटु द्याख , अर तयार बामणो अंगुळि द्याख कि माया काका तैं पिसाब लग गे। पिसाब करणो बान माया काका गौं फिरणो हि चलि गे , बड़ी मुस्किल से काका की बड़ी बैणि माया काका तैं खेंचिक लायी। जनि बामण जीन सरस्वती पूजा का श्लोक ब्वाल कि माया काका तैं झाड़ा लग गे। दादा जीन गाळी से अर एक थप्पड़ से काका तैं रुकणो बोल , किन्तु शायद झाड़ा कुछ ही ज्यादा लगीं छे कि माया काका तैं टट्टी करणो इजाजत दिए गे। झाड़ा करणो शिल्पकारुं मुहल्ला तौळ जाण पड़द छौ त माया काका हुस्यर बाड़ाक अणसाळ जिना चलि गे। अब जब बिंडी देर ह्वे गे अर माया काका नि ऐ तो द्वी दूत भिजे गेन। दूतुं आँख चंख लगि गेन जब उंन द्याख कि बामणु छ्वारा याने माया काका ल्वार हुस्यर बाडा दगड़ बैठिक दाथी पळयाणु च। खैर दूत माया काका तैं खैंचिक ड्यार चौक मा लैन, पाणी बरताणो अभिनय बि ह्वे। फिर जनि माया काका चौकल का समिण आई अर फिर वै तैं पिशाब लगी गे। अबै दै सचिदा दादान अफिक माया काका क बाळ पकड़िक पिशाब करायी।
खैर जब माया काका चौकल का समिण बैठ तो लिखणो बान निर्देशिका अंगुळि खुलणो जगा काका अंगुळी टेढ़ी कर द्यावो। बड़ी मुस्किल से मार पीटिक बामण जीक कोशिस से माया काकान ऊँ अर न ही ल्याख। किन्तु भगवान की दया से चौकल दीणो कर्मकांड सुखी शान्ति से निपटि गे। यद्यपि बामण जी तैं मोरद दैं बि मलाल छौ कि जिंदगी मा युइ नौनु छौ जै तैं पूरा ऊँ , न , म , सि , ढ़ंग नि सिखै सकिन।
अब सात साल कु ढाँट तैं धके -धकैक स्कूल बि भिज्याण लग गे। माया काका कु स्कूल से मास्टरुं गाळी दीणै आवृति मा आशातीत वृद्धि हूंद गे , मास्टरुं पिटणो रचनाधर्मिता मा अंदादुंद विकास हूंद गे। मास्टरुं समिण चैलेन्ज , एक चुनौती छे , एक चिंता कु विषय छौ कि माया काका तैं शिक्षा कनै दिए जाव। माया काका तैं सिखणम इंट्रेस्ट ही नि आंद छौ। पर ड्यारम माया काका छुटि उमर मा बि कील , निसुड़ी बणै दींद छौ , पैगुड़ी , ज्यूड़ , नाड़ु आदि बणाण मा प्रवीण ह्वे गे। स्कूलम पता नी कथगा बेंत , कथगा लाठी खपिन धौं किन्तु क्वी बि मास्टर माया काका मा पढणो वास्ता आकर्षण पैदा नि कौर साक। माया काका अर मास्टरों मार दुसरो पर्यायवाची शब्द बण गे छा।
चूँकि रिवाज पढ़ाणो छौ तो माया काका तैं स्कूल भिजे ही जांद छौ अर दर्जा पांच तक आंद आंद कथगा ही मास्टर रिटायर ह्वेन , स्कूल का बड़ा बड़ा पत्थर बि हाई स्कूल का पत्थर बणी गे छा किन्तु माया काका अबि तलक दर्जा पांच तक ही पौंछ। हरेक कक्षा पास करण मा कम से कम द्वी साल लगांद छौ फिर बि माया काकन कबि बि घमंड नि कार। दर्जा पांच मा जब माया काका तिसर दै इमतान दीणो गे तो सब डिप्टी इंस्पेक्टर साब भगवती प्रसाद पांथरी जीन सचिदा दादा तैं बुलाइ अर दादा जीक खुट मा मुंड धरिक प्रार्थना कार कि मास्टरों कु जानो ख्याल कारो। असल मा हमर आधारिक विद्यालय मा क्वी बि अध्यापक , इख तलक कि मरखुड्या से मरखुड्या मास्टर बि आणो तयार नि छा। तो एक समझौता का तहत पांथरी जीन माया काका तैं पास कार अर सचिदा दादान सौं घटि छौ कि माया काका की पढ़ाई बंद करे जाली। तो माया काका तैं छटी क्लास मा नि भिजे गे।
चूँकि तब रिवाज ऐ गे छौ कि कृषि कार्य एक निसप्रिय , हीन , जयूँ -बित्युं कार्य च तो माया काका कृषि कार्य मा विशेषज्ञ हूणों उपरान्त बि माया काका तैं सचिदा दादा जीक गद्दी नि मील अपितु ऊँ तैं दिल्ली भिजे गे अर माया काका तैं एक गैरेज मा काम मिल गे। चूँकि यु काम माया काका की प्रवृति से मेल खांद छौ तो माया काका की प्रोग्रेस गति पूर्वक ह्वे। आज माया काका तीन बड़ा गैरेजों मालिक च अर पढ्या -लिख्यां काकाक तौळ काम करदन। भारत क्या अधिसंख्य देसुं मा बच्चों तैं ऊंक प्रवृति, प्रकृति , मति का हिसाब से शिक्षा नि दिए जांद तो इन मा माया काका सरीखा चरित्र पैदा हूंदन अर मे सरीखा लिख्वारो बान संस्मरण कु एक चरित्र बणदन।
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /10 /2014
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
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