भीष्म कुकरेती
कल मै टीवी में उत्तरकाशी का समाचार देख रहा था। उसमे एक समचार सारा दिन चला कि किस तरह एक सरकारी भंडार में ग्राम वासियों हेतु आपदा सहायता में मिले ब्रेड और बटर सड़ रहे हैं। मुझे ब्रेड और बटर सड़ने या मिनरल वाटर बोतलों की दुर्दशा से कोई दुःख नही हुआ। आखिर भंडार अधिकारी भी पहाड़ी ही होंगे तो अवश्य ही ब्रेड और बटर या मिनरल वाटर पर ध्यान ही नही दिया होगा. यदि मै मंत्री होता तो ठंडे दिमाग से आदेस देता कि ब्रेड बटर सड़ने दो मिनरल वाटर खराब होने दो।
जी नही! पहाड़ी कर्मियों को पता है कि जब भी पहाड़ी गाँवों में भूस्खलन आता है तो दस दिन तक लोगों को भूख प्यास की समस्या से नही जूझना पड़ता है अपितु पुनर्वास की समस्या से जूझना पड़ता है। रिश्तेदार आदि अंतरिम सहायता (भूख -प्यास निवारण ) का स्वत: इंतजाम कर लेते हैं। जब पहाड़ी गाँवों में भूस्खलन आता है तो अंतरिम सहायता में अनाज, दवाइयां, कपड़े सही सहायता होती है ना कि ब्रेड -बटर -मिनरल वाटर। और घोड़ा (ट्रांसपोर्ट माध्यम ) एकी हो हो तो प्रशासन कर्मी उस घोड़े में अनाज पंहुचाएगा ना कि ब्रेड बटर।
गढ़वाल के पहाड़ी गाँवों में आपदा हेतु ब्रेड, बटर, मिनरल वाटर का आना यह दर्शाता है कि प्रशासन/दानदाता को पता ही नही है कि भूस्खलन के बाद गाँव वालों को दस दिन बाद सहायता हेतु ब्रेड बटर की कभी भी आवश्यकता नही होती है। ब्रेड, बटर,मिनरल वाटर की जरूरत तब पडती है जब लोग बाढ़ में फंसे हों और चुल्हा नही जल सकता हो वंहा ब्रेड बटर व मिनरल वाटर की जरूरत होती है। या यात्रियों हेतु जिनके पास दूसरा विकल्प नहीं हो उन्हें ब्रेड, बटर, मिनरल वाटर की सहायता दी जाती है ।
बहुत से 'तथाकथित' ठेट ग्रामीण टीवी में इंटरव्यू दे रहे थे कि हम पांच दिन भूखे रहे। यह सर्वथा गलत , झूठा बयांन रहा होगा। गाँवों में भूस्खलन आया तो जान माल का नुकसान की बात सही है किन्तु गाँव वाले भूखे रहे हों यह बात किसी भी पहाड़ी गाँव पर लागू नही होती है। कारण आज भी पहाड़ी गाव एक दुसरे से जुड़े हैं, यदि एक गाँव से दूसरे गाँव जाने का एक रास्ता बंद भी हो जाय तो कई रस्ते खुले होते हैं। और आज भी पहाड़ी गांवों में सहकारिता बची है। याने कि जहां जहां गांवों में भूस्खलन हुआ है वहां दस बीस दिन तक भूख समस्या नही होती है। पहाड़ी गाँवों में पानी न मिलना भी समस्या नही होती कि लोग प्यासे मर जांय। और जब मैदानी सोच पर आधारित ब्रेड बटर, मिनरल वाटर सहायता उत्तरकाशी पंहुचेगी तो क्या निखालिस पहाड़ी प्रशासन कर्मी ब्रेड बटर, मिनरल वाटर घोड़ो खचरों पर रखवा कर गावों में भेजेगा?जी नही वह अनाज को महत्व देगा।
पहाड़ी गाँवों में सहायता के नाम पर ब्रेड -बटर -मिनरल वाटर भेजना असलियत में पहाड़ों में मैदानी सोच की योजनाओं और निर्माण का अधिपत्य दर्शाता है। अब अंतरिम सहायता से अधिक पुनर्वास की समस्या से जूझना है और यदि पुनर्वास और पुननिर्माण में यही मैदानी सोच रही तो सही , पहाड़ों की आवश्यकता अनुसार पुर्नवास और पुननिर्माण नही हो पायेगा। आज, अभी आवश्यकता है की पहाड़ी सोच और पहाड़ी आवश्यकता को समझा जाय ना कि मैदानी ब्रेड बटर के नाम पर मैदानों सोच को पहाड़ों पर थोपा जाय।
Copyright@ Bhishma Kukreti 3 /7/2013
कल मै टीवी में उत्तरकाशी का समाचार देख रहा था। उसमे एक समचार सारा दिन चला कि किस तरह एक सरकारी भंडार में ग्राम वासियों हेतु आपदा सहायता में मिले ब्रेड और बटर सड़ रहे हैं। मुझे ब्रेड और बटर सड़ने या मिनरल वाटर बोतलों की दुर्दशा से कोई दुःख नही हुआ। आखिर भंडार अधिकारी भी पहाड़ी ही होंगे तो अवश्य ही ब्रेड और बटर या मिनरल वाटर पर ध्यान ही नही दिया होगा. यदि मै मंत्री होता तो ठंडे दिमाग से आदेस देता कि ब्रेड बटर सड़ने दो मिनरल वाटर खराब होने दो।
जी नही! पहाड़ी कर्मियों को पता है कि जब भी पहाड़ी गाँवों में भूस्खलन आता है तो दस दिन तक लोगों को भूख प्यास की समस्या से नही जूझना पड़ता है अपितु पुनर्वास की समस्या से जूझना पड़ता है। रिश्तेदार आदि अंतरिम सहायता (भूख -प्यास निवारण ) का स्वत: इंतजाम कर लेते हैं। जब पहाड़ी गाँवों में भूस्खलन आता है तो अंतरिम सहायता में अनाज, दवाइयां, कपड़े सही सहायता होती है ना कि ब्रेड -बटर -मिनरल वाटर। और घोड़ा (ट्रांसपोर्ट माध्यम ) एकी हो हो तो प्रशासन कर्मी उस घोड़े में अनाज पंहुचाएगा ना कि ब्रेड बटर।
गढ़वाल के पहाड़ी गाँवों में आपदा हेतु ब्रेड, बटर, मिनरल वाटर का आना यह दर्शाता है कि प्रशासन/दानदाता को पता ही नही है कि भूस्खलन के बाद गाँव वालों को दस दिन बाद सहायता हेतु ब्रेड बटर की कभी भी आवश्यकता नही होती है। ब्रेड, बटर,मिनरल वाटर की जरूरत तब पडती है जब लोग बाढ़ में फंसे हों और चुल्हा नही जल सकता हो वंहा ब्रेड बटर व मिनरल वाटर की जरूरत होती है। या यात्रियों हेतु जिनके पास दूसरा विकल्प नहीं हो उन्हें ब्रेड, बटर, मिनरल वाटर की सहायता दी जाती है ।
बहुत से 'तथाकथित' ठेट ग्रामीण टीवी में इंटरव्यू दे रहे थे कि हम पांच दिन भूखे रहे। यह सर्वथा गलत , झूठा बयांन रहा होगा। गाँवों में भूस्खलन आया तो जान माल का नुकसान की बात सही है किन्तु गाँव वाले भूखे रहे हों यह बात किसी भी पहाड़ी गाँव पर लागू नही होती है। कारण आज भी पहाड़ी गाव एक दुसरे से जुड़े हैं, यदि एक गाँव से दूसरे गाँव जाने का एक रास्ता बंद भी हो जाय तो कई रस्ते खुले होते हैं। और आज भी पहाड़ी गांवों में सहकारिता बची है। याने कि जहां जहां गांवों में भूस्खलन हुआ है वहां दस बीस दिन तक भूख समस्या नही होती है। पहाड़ी गाँवों में पानी न मिलना भी समस्या नही होती कि लोग प्यासे मर जांय। और जब मैदानी सोच पर आधारित ब्रेड बटर, मिनरल वाटर सहायता उत्तरकाशी पंहुचेगी तो क्या निखालिस पहाड़ी प्रशासन कर्मी ब्रेड बटर, मिनरल वाटर घोड़ो खचरों पर रखवा कर गावों में भेजेगा?जी नही वह अनाज को महत्व देगा।
पहाड़ी गाँवों में सहायता के नाम पर ब्रेड -बटर -मिनरल वाटर भेजना असलियत में पहाड़ों में मैदानी सोच की योजनाओं और निर्माण का अधिपत्य दर्शाता है। अब अंतरिम सहायता से अधिक पुनर्वास की समस्या से जूझना है और यदि पुनर्वास और पुननिर्माण में यही मैदानी सोच रही तो सही , पहाड़ों की आवश्यकता अनुसार पुर्नवास और पुननिर्माण नही हो पायेगा। आज, अभी आवश्यकता है की पहाड़ी सोच और पहाड़ी आवश्यकता को समझा जाय ना कि मैदानी ब्रेड बटर के नाम पर मैदानों सोच को पहाड़ों पर थोपा जाय।
Copyright@ Bhishma Kukreti 3 /7/2013
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