उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, July 25, 2013

लोक गीत

"गढ़वाली लोक गीत"
--------------------------------
ऊँचि डांड्यू तुम नीसि जावा / गढ़वाली

ऊँचि डांड्यू तुम नीसी जावा
घणी कुलायो तुम छाँटि होवा
मैकू लगी छ खुद मैतुड़ा की
बाबाजी को देखण देस देवा
मैत की मेरी तु त पौण प्यारी
सुणौ तु रैवार त मा को मेरी
गडू गदन्य व हिलाँस कप्फू
मैत को मेर तुम गीत गावा


भावार्थ
--'हे ऊँची पहाड़ियो! तुम नीची हो जाओ ।
ओ चीड़ के घने वृक्षो! तुम समने से छँट जाओ ।
मुझे मायके की याद सता रही है,
मुझे पिता जी का देस देखने दो ।
ओ मेरे मायके की हवा !
मेरी माँ का सन्देश सुना ।
ओ नदी-नालो! ओ हिलाँस पक्षी! ओ कप्फू!
तुम सब मिल कर मेरे मायके का गीत गाओ ।'

---------------------------------

जा भाग्यानी तू मैत न्है जा / गढ़वाली

जा भाग्यानी तू मैत न्है जा
मेरो रैवार बई मूं ली जा
इनु बोल्यान तुम बई मूं मेरी
खुद लगी छ बल बई तेरी
बाबा को बोयान तुमन भलों करे
रुपयों खैक मेरो बुरो करे
बाबा न दिने चौ डाण्डों पोर
भायों न करे रुपयों जोर
भौजी क बोल्यान मैं जागी रौ लो
यूँ की हालात तबो लौलो
ये गौं छ पाणी दूरो
मऊ पूस क छ जाड़ो बूरो



भावार्थ--'जा भाग्यशालिनी, तू पीहर को चली जा,
मेरा सन्देश माँ के पास ले जा ।
ऎसे कहना : तुम मेरी माँ हो,
तुमसे मिलने की बहुत भूख लगी है, माँ!
पिता से कहना--तुमने अच्छा किया,
रुपए खाकर तुमने मेरा बुरा कर डाला ।
पिता ने मुझे चार पहाड़ों के पार दे दिया
भाइयों ने भी रुपया लेने पर ज़ोर दिया ।
भाई जी से कहना : मैं बाट जोहूंगी
यहाँ की हालत तभी सुन लेना ।
इस गाँव का पानी बहुत दूर है, माँ!
माघ-पूस का जाड़ा भी बहुत बुरा है ।'


---------------------------------
काला डांडा पीछ बाबा जी / गढ़वाली

काला डांडा पीछ बाबा जी
काली च कुएड़ी
बाबाजी, एकुली मैं लगड़ी च ड..र
एकुली-एकुली मैं कनु कैकी जौलो



भावार्थ--' काले पहाड़ के पीछे, पिताजी!
काला कुहरा छा रहा है ।
पिताजी, मुझे अकेले में डर लगता है ।
अकेले-अकेले मैं ससुराल कैसे जाऊंगी?'

---------------------------------
आई गेन ॠतु बौड़ी दाईं जनो फेरो, झुमैलो / गढ़वाली

आई गेन ऋतु बौड़ी दाई जनो फेरो, झुमैलो
ऊबा देसी ऊबा जाला, ऊंदा देसी ऊंदा, झुमैलो
लम्बी-लम्बी पुगड़्यों माँ र..र. शब्द होलो, झुमैलो
गेहूँ की जौ की सारी पिंग्ली होई गैने, झुमैलो
गाला गीत वसन्ती गौं का छोरा ही छोरी, झुमैलो
डांडी काँठी गूँजी ग्येन ग्वैरू को गितूना, झुमैलो
छोटी नौना-नौनी मिलि देल्यूँ फूल चढ़ाला, झुमैलो
जौं का भाई रला देला टालु की अँगूड़ी, झुमैलो
मैतु बैण्युँ कु अप्णी बोलौला चेत मैना, झुमैलो


भावार्थ
--'वसन्त ऋतु लौट आई, फसल माँड़ते समय बैलों के चक्कर के समान, झुमैलो !
ऊपर देश वाले ऊपर जाएंगे, नीचे देश वाले नीचे, झुमैलो !
लम्बी-लम्बी क्यारियों में (किसानों की) र..र. ध्वनि होगी, झुमैलो!
गेहूँ और जौ के सादे खेत पीले हो गए हैं, झुमैलो!
वसन्ती गीत गाएंगे, गाँव के लड़के-लड़कियाँ, झुमैलो!
छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ गूँज उठी हैं ग्वालों के गीतों से, झुमैलो!
छोटे बालक-बालिकाएँ मिलकर दहलीजों पर फूल चढ़ाएंगे, झुमैलो!
जिसके भाई होगा, अंगिया और ओढ़नी का उपहार देगा, झुमैला!
और मायके बुलाएगा बहिन को चैत्र माह में, झुमैलो!'

---------------------------------

कैसो च भंडारी तेरा मलेथ? / गढ़वाली

कैसो च भंडारी तेरा मलेथ ?
देखी भलौ ऎन सैवो मेरा मलेथ
लकदी गूल मेरा मलेथ
गाँऊँ मूड़ को घर मेरा मलेथ
पालंगा की बाड़ी मेरा मलेथ
लासणा की क्यारी मेरा मलेथ
गाइयों की गोठ्यार मेरा मलेथ
भैंसी को खुरीक मेरा मलेथ
बांदू का लड़क मेरा मलेथ
बैखू का ढसक मेरा मलेथ


भावार्थ
--'ओ भंडारी राजपूत, कैसा है तेरा 'मलेथ' गाँव?
देखने में भला लगता है, साहबो, मेरा मलेथ ।
ढलकती नहीं है वहाँ, मेरा मलेथ ।
गाँव की निचान में घर है मेरा, मेरा मलेथ ।
पालक की बाड़ी है, मेरा मलेथ ।
लहसुन की क्यारी है, मेरा मलेथ ।
गौओं की गोठ है, मेरा मलेथ ।
भैंसों की भीड़ है, मेरा मलेथ ।
कुमारियों की टोली है, मेरा मलेथ ।
वीरों का धक्कम-धक्का है, मेरा मलेथ ।

---------------------------------
बालो छ बदरी झूमैलो / गढ़वाली

बालो छ बदरी, झुमैलो
परबत आई, झुमैलो
गढ़वाल आई, झुमैलो
दिनु का दाता, झुमैलो
राजा का सामी, झुमैलो

भावार्थ
--'बदरी बालक है--झुमैलो!
वह पर्वत पर आ गया-- झुमैलो!
वह गढ़वाल में आ गया-- झुमैलो!
वह दीनों का दाता है--झुमैलो!
वह राजा का स्वामी है--झुमैलो!

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments