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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, July 17, 2013

गढ़वाली -कुमाउनी साहित्यकार की मूल भुत समस्या

 भीष्म कुकरेती 


                   इंटरनेट  गढ़वळि- कुमाउँनी भाषौं बान आज तक का सबि माध्यमों बुबा शाबित ह्वे।  गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकार दुनिया का कै बि हिस्सा मा बंचनेर पाई सकदन।
इंटरनेट मा गढ़वळि साहित्यकारों मादे पाराशर गौड़न पहल करी छे अर जगमोहन जयाड़ा बि अगल्यार लीणम पैथर नि रैन। आज पराशर गौड़ , विजय कुमार मधुर , जगमोहन जयाड़ा , धनेश कोठारी, राजेन्द्र फरियादी, गीतेश नेगी, डा नरेंद्र गौनियाल, विजय गौड़, महेंद्र सिंह राणा , बालकृष्ण ध्यानी, सुनीता शर्मा, अनूप  रावत, उदय राम ममगाईं, जिठुरी, प्रभात सेमवाल, बिजेंद्र नेगी , पीयूष दीप राजन, विमल नेगी, प्रदीप रावत , कबि कबि - दिनेश बिजल्वाण, भीष्म कुकरेती गढ़वळि साहित्य का इंटरनेट माध्यमम पछ्यण्या नाम छन। भौत सा कवियों क कविता आदि जू बि इंटरनेट मा मिल्दी वो अमूनन यूँ साहित्यकारोंन ही पोस्ट करीं छन। 
                            
                                              गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यौ पारम्परिक अर इन्टरनेट्या समस्या 

 इंटरनेट माध्यम मा गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकार गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्य की मूलभूत पारम्परिक समस्याओं अर इंटरनेट माध्यम की मूलभूत समास्याओं से रूबरू होण पड़द। जी हाँ ! गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकारोंक समणि द्वी समस्या खड़ी रौंदन।
पारम्परिक मूल भूत  समस्याओं बारा मा हैंक लेख मा मि छ्वीं लगौल। आज सिरफ इंटरनेट माध्यम की समस्या अर समाधान पर ही बात करे जावो तो ठीक रालो।
                         
                                                          गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यौ इन्टरनेट्या समस्या 


 मि एक उदाहरण दींदु -जरा तुम गूगल सर्च मा जावो अर Garhwali Kvitaa वाक्य सर्च कारो त तुम पैल्या कि गूगल सर्च मा सबसे अळग पीयूष दीप राजन को ब्लौग दिख्यांद, फिर धनेश कोठारी को पहाड़ी फोरम आंद,तब लोकरंग को ब्लौग आंदो अर उख्मा सबसे पैल कविता विजय गौड़ की च। फिर नम्बर च जनवाणी मा जगदम्बा चमोली की कविता 'घट मूं'। तौळ यू टयूब मा  एक ब्यौ मा मांगळ  आदि छन, फिर हौर तौळ दिनेश बिजल्वाण की कविता आंदी, दुसर तिसर पेज मा मेरा आलोचनात्मक अंग्रेजी लेखों झडी लगि जांदी।  .
                        याने कि गूगल सर्च को पैलो पेज मा धनेश कोठारी अर विजय गौड़ छोड़ि अर पीयूष , विमल छोड़ि कै हौरि कवि की कविता नी आंदन। आम खुजनेर या गूगल सर्चर तिसरू पेज का बाद सर्च बंद करी दींद। याहू सर्च का तो बुरा हाल छन।  
                    अंग्रेजी मा Garhwali Poem सर्च कारो तो धनेश कुठारी छोड़ि बकै तकरीबन मेरा लेख सर्च मा आंदन। 

                                                            इंटरनेट मा साहित्य पोस्ट से जादा सर्च मा नाम आण महत्व पूर्ण 

            जी हाँ इंटरनेट मा साहित्य प्रकाशित करण त ठीक च पण वै से जादा गूगल या याहू आदि सर्च इंजिन मा पैलो , दुसर या तिसुर पेज मा आपकी पोस्टिंग सर्च करद दै बि आण चयेंद। यदि मि 'गढ़वाली कविता' गूगल मा खुज्याणु  छौं त मेकु धनेश कोठारी, विजय गौड़, पीयूष , विमलनेगी  ही गढ़वाली कवि छन या मीन समजण कि इथगा हि कविता गढ़वाली मा उपलब्ध छन। जब कि इंटरनेट मा हजार से बिंडी कविता छपीं छन। 
             आखिर इन कुनगस किलै? यांको कारण च हमर साहित्यकार (सबसे जादा कविता ही छन ) इंटरनेट की मूल भूत तकनीक का बारा मा बिलकुल अनभिज्ञ छन।
                 आज अर अग्वाड़ी बि गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकारों अपण पाठकों खोज का बान तैं हर समय इंटरनेट तकनीक को ख्याल रखण ही पोड़ल। अर यांकुण गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकारों बान  इंटरनेट मार्केटिंग या इंटरनेट विपणन पद्धति की समज जरूरी च।    

                                    आखिर इंटरनेट मार्केटिंग क्या च?

 जब बि साहित्यकार क्वी साहित्य छपांदु या किताब छपांद त तकरीबन अपण विपणन करद ही च। फ्री मा किताब दींद या समीक्षा लिखवांद , सभा-सोसाइट्यु म अपण साहित्य कि चर्चा करद या चर्चा करांद आदि आदि। इनि साहित्यकार तैं इंटरनेट पर कुछ गोरखधंधा या टुटब्याग (सकारात्मक टेक्नीक) करण पोड़द। 
     साहित्यकार को बान इंटरनेट मार्केटिंग माने - जादा से जादा पाठक बणाणो बान व्यब या इमेल द्वारा सूचना; छपवाणो बान साईट अर सही ब्लौग खुज्याण;सोसल मीडिया को उचित इस्तेमाल करण, जन सम्पर्क को इस्तेमाल , अर सबसे पैल यी दिखण कि सर्च इंजिन मा पैलो या दुसर पेज मा दिख्याण।   

                                                      मंतर , तंतर अर जंतर   

  इंटरनेट मा साहित्यकारों तैं मंतर , तंतर अर जंतर (मन्त्र , तन्त्र और यंत्र )सणि समजण जरूरी च 

                                                        मंतर याने पाठकुं मन 

पाठकुं  मन याने पाठकुं आनंद, पाठकों प्रसिद्धि, पाठकों निश्चय , पाठकों भूतकाल वर्तमान अर भविष्य, पाठकों क अपणो अर्जित  आत्मिक ज्ञान, पाठकों -मन , बुद्धि अर अहंकार का बारा माँ ज्ञान; पाठकों रौणै - खाणै इंतजाम ; पाठकों अभिलाषा , इच्छा , इच्छ्मर्दन शक्ति; पाठकों व्याकरण अर शब्द ज्ञान; पाठकों गुस्सा; पाठकों स्वास्थ्य अर पाठकों स्वास्थ्य सम्बन्धी संवेदनशीलता;पाठकों इतिहास से प्रेम; पाठकों प्रेम; पाठकों विद्या; पाठकों धार्मिक, सामाजिक  अर राजनैतिक विश्वास; पाठकों ज्ञान माध्यम , पाठकों माँ कथगा समय च आदि का बारा मा साहित्यकार तै जणण जरूरी   

                                                       तंतर याने इंटरनेट की टेक्नीक 

साहित्यकार तैं इंटरनेट का आधारभूत तकनीक को ज्ञान बि जरूरी च जन कि  सर्च इंजिन कन काम करद आदि।  


                                  जंतर याने इंटरनेट तकनीक तै गुलाम बणाणो युक्ति 

 युक्ति ही गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकारों तै पाठक दिलै सकदी। राजेन्द्र कुंवर फरियादी अर कुछ हद तलक धनेश कोठारी ईं युक्ति तै जाणदन।   
 
                                                         जादा से जादा साइटों मा गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्य छपवाण 

साहित्यकार को पैलो काम च जम्याँ जुम्याँ  साइटों जन कि मेरापहाड़, बेडू पाको, लोकरंग, उत्तराखंड ई पत्रिका, छुयाँळ, पहाड़ी फोरम आदि   मा अपण साहित्य छपवाण। जथगा  जादा साइटों मा साहित्य छ्पो तथगा ही साहित्यकार तैं फैदा च। 
सोसल मीडिया ग्रुप जन कि पौड़ी गढ़वाल, पहाड़ी, कुमाउनी -गढ़वाली , उत्तराखंड वासी -प्रवासी , यंग उत्तरांचल अदि मा द्वारा अपण साहित्य ऊंका सदस्यों तलक पौंचावो।
अपण ब्लौग बणावो अर ब्लौग मार्केटिंग कारो। इखमा धनेश कुठारी को काम प्रशंसनीय च। राजेन्द्र कुंवर फरियादी बादशाह च 
फेस बुक मा  जादा से जादा फ्रेंड बणावो अर अपणो साहित्य यूं तक फ्वाळो याने वितरण कारो। पाठकों तैं प्रेरित कारो अर अपण साहित्य पर लाइक टिक करवावो 
फेस बुक मा हरेक ग्रुप मा अपण साहित्य प्रकाशित कारो। उखमा कुछ इन बंचनेर बणावो जो तुमारो साहित्य के चर्चा करणा रावन। राजेन्द्र कुंवर फरियादी , धरम बुटोला से सीख ल्यावो कि फेस बुक से कनो फायदा उठाण चयेंद।
इमेल मार्केटिंग को इस्तेमाल कारो। 
पत्रकारों से इमेल द्वारा सम्पर्क कारो .अर ऊंखुण अपण साहित्य रेगुलर भ्याजो। 
कुछ जनसम्पर्क का कम कारो जन कि राजेन्द्र कुंवर फरियादी करद। राजेन्द्र कुंवर  फरियादी केवल अपण कविता नि प्रकाशित करद बलकण मा पाठकों तैं हिंदी मा टाइप  कन करण सिखांद , हिंदी साहित्य मा क्या क्या हूणु च आदि की खबर बि दींद अर यासे राजेन्द्र कुंवर अपण भक्त पाठक अर भक्त दूत बणाणम कामयाब च। मी राजेन्द्र तैं प्रतिक्रिया द्यों ना द्यों पढ़न नि बिसरदो।  
एक सामाजिक काम बि हाथ मा ल्यावो जां से लोग आप से जुड्या रावन। कुछ ना सै तो सामाजिक संस्थाओं की सूचना ही दींद जावो।    
यदि तुमर अपण ब्लौग च त वै तैं हौर ब्लौगुं से जोड़ो अपण जाळ बिछाओ।
यदि आप साहित्यकार छंवां तो  फेस बुक मा  आम लोगुं जन क्रिया कलाप नि करण चयेंद याने खाली नमस्ते। गुड मोर्निंग या बगैर परिचय का फोटो आदि भिजण। फेस बुक का पाठक अपण साहित्यकार से कुछ हौरि चांदन  ना कि बगैर परिचय का फोटो। 

                                                  विषय 

            विषय तो अपण निर्धारित पाठकों हिसाब से हूण चयेंद, सब्युं तैं खुश करणै कोशिस कबि नि हूण चयेंद,. इंटरनेट मा जादा पाठक ना भक्त पाठकों से जादा फैदा होंद। भक्त पाठकों पर जोर द्यावो। विषय जरा हटके हूणि चयेंद। सामयिक विषयों पर बि प्रतीक नया होणि चयेंदन। पारम्परिक विषय जन कि गढवाल -कुमाऊँ की प्रशंसा, पलायन , विकास , भ्रष्टाचार जन विषयुं तैं नया मिजाज द्याव। इखमा मि तैं विजय गौड़ अग्वाड़ि दिख्यांद। गीतेश नेगी द्वारा प्रसिद्ध कवियों अनुवाद से वो अलग दिखेंद। 

                                         अपण साहित्यौ चर्चा करावो 

कै बि हिसाब से चाहे जोड़ तोड़ से हि सही पण अपण साहित्यौ चर्चा जरुर करावो। अपण साहित्यकार दगड्यों कुण व्यक्तिगत तौर पर साहित्य मेल कारो अर प्रतिक्रिया मंगाओ।  यदि क्वी खुले आम तुमारि काट बि करणु च त आलोचना हूण दयावो उल्टां चर्चा मा भाग ल्यावो। मुखमुलज्या हूणै जरूरत नी च। 
 इन पाठक खुज्यावो जो तुमर साहित्य को विज्ञापन कारो।

                                           की वर्ड की जानकारी जरूरी च 
          साहित्यकार तैं सर्च करण वाळ पाठक सर्च करद दै कौं कौं शब्दों इश्तेमाल जादा करदन वांकि जानकारी अवश्य हूण चयेंद। यांसे साहित्यकार इंटरनेट मार्केटिंग रण नीति बणान्दू . अब एक आम गढवाली कविता प्रेमी त गढ़वाली -कविता या गढ़वाली पोयम या पोयट्री ही सर्च कारल कि ना? याने आपको ब्लौग या कविता पेज मा इन रणनीति हूण जरूरी च कि तुमर पेज गूगल या याहू सर्च मा पैलो या दुसर पेज मा आवो। क्या कारण च कि गढ़वाली कविता या गढ़वाली पोयट्री /पोयम खुज्यांद दै मेरा आलोचनात्मक लेख गूगल सर्च का पैला ना तो दुसर पेज मा आंदन जब कि कवियों कविता गूगल मा सर्च करद दै तिसरो पेज मा बि नि आंद। यांक खास कारण च कि गढ़वळि- कुमाउँनी कवियों न पठकों द्वारा खुज्यांद दै  'की वर्ड' प्रयोग पर कबि बि ध्यान नि दे।   त जब बि आप अग्वाड़ी साहित्य प्रकाशित कारो तो वाई पेज मा इन इंतजाम कारो कि की वर्ड जरुर आवो 

                                    की वर्ड औप्टीमाइजेसन 
की वर्ड सामान्य या विशेष हूँदन जन कि - कविता शब्द एक सामान्य (जनरल ) शब्द च। अर कैक बस  की बात नी च कि खुजनेर (सर्चर या पाठक ) कविता सर्च करद दै अपक ब्लौग  गूगल का पैलो या दुसर पेज माँ ऐ जावो। तो गढ़वळि- कुमाउँनी साहित्यकारूं तैं विशेष शब्दों पर ध्यान दीण पोड़ल। कविता शब्द सामान्य शब्द च पण गढ़वळि कविता या  कुमाउँनी कविता - 'कविता शब्द का मुकाबल विशेष शब्द च। किन्तु पराशर गौड़ , विजय कुमार मधुर , जगमोहन जयाड़ा , धनेश कोठारी, राजेन्द्र फरियादी, गीतेश नेगी, डा नरेंद्र गौनियाल, विजय गौड़, महेंद्र सिंह राणा , बालकृष्ण ध्यानी, सुनीता शर्मा, अनूप  रावत, उदय राम ममगाईं, जिठुरी, प्रभात सेमवाल, पीयूष दीप राजन, विमल नेगी, प्रदीप रावत की कविताओं वास्ता 'गढवाली कविता' एक सामन्य शब्द या वाक्य ह्वे ग्यायी। अब यु इनि च जन नेगी , रावत बिष्ट शब्द सामन्य शब्द छन पण रिखोला नेगी , कुरैला रावत, पड्यार बिष्ट   विशेष की वर्ड ह्वे गेन। एक मामला मा कुकरेती शब्द बि सामान्य शब्द च अर यदि कुकरेती शब्द गूगल सर्च करद दै टाइप करे जावो तो गूगल का तीन चार पेज तलक म्यार नाम याने भीष्म कुकरेती को नाम कखी नि आंद किलैकि मीन कबि बि कुकरेती शब्द पर ध्यान नि दे या इन जतन  नि कार कि गूगल सर्च करद दै गूगल मा पैलो पेज मा मेरो नाम आवो। पण जनि कुकरेती कास्ट टाइप  कारो तो गूगलौ पैल पेज  मा भीष्म कुकरेती आइ जांदो। नेगी टाइप  करण पर गीतेश नेगी कखी नि आंदो। आखिर क्या कारण च कि इथगा साहित्य प्रकाशित करणों बाद भि मी  या गीतेश नेगी सर्च को मामला मा पिछड्या छंवाँ। यांक कारण च हमन की वर्ड कुकरेती या नेगी (द्वी सामने वर्ड छन ) पर ध्यान नि दे।  सामन्य  वर्ड से विशेष की वर्ड की तरफ जाण मा ही फैदा च। 

 की वर्ड औप्टीमाइजेसन को अर्थ होंद आपका पेज माँ वू शब्द हूण चएंदन जो पाठक खुज्यान्दन। की वर्ड वाहुल्यता ही पाठकों तै साहित्यकार का पेज तलक लांदी। 

                                         की वर्ड याने विशेष शब्द या वाक्य 

विशेष शब्द ही फायदामंद होंदन। एक उदाहरण दींदु।
सटायर पोयम्स एक सामन्य शब्द च। ये शब्द या फ्रेज को प्रयोग से की  वर्ड औप्टीमाइजेसन भौत ही कठण च। किलैकि सामन्य शब्दों मा प्रतियोगिता अंदा दुंद रौंद।

मीन एक लेख लेखि छौ Uktat: a Garhwali Satirical Poems by Harish Juyal 

इखमा Satirical Poems विशेष शब्द बौण अर मेरो ये लेख मा Satirical Poems शब्द जादा बि छया तो कुछ मैना तलक  Satirical Poems सर्च करण पर गूगल सर्च मा मेरो लेख सबसे मथि याने पैलो नम्बर पर राई। द्वी तीन साल तक Satirical Poems सर्च मा  मेरो लेख गूगल मा पैलो पेज मा राई अब दुसर पेज मा ऐ ग्यायि कारण ये शब्द मा अब प्रतियोगिता बढ़ी गे।  
गूगल सर्च मा Garhwaali satire टाइप कारो तो गूगल सर्च को पैलो पेज मा  अधिसंख्य लेख म्यरा हि आंदन याने कि अबि प्रतियोगिता नि ह्वे अर Garhwali satire  एक विशेष  शब्द च। हिंदी मा गढ़वाली व्यंग्य सर्च कारो तो गूगल मा मेरा ही लेख पैला पेज मा आंदन। किन्तु म्यार गढवाली मा लिख्याँ व्यंग्य लेख पेज कखि बि गूगल सर्च मा नि आंद किलैकि मीन कबि बि अपण 'चबोड्या लेखुं' बान की वर्ड औप्टीमाइजेसन ब्यूंत  नि अपणाइ। 
गढ़वाली लोक गीत टाईप करण पर बि म्यार एक लेख गूगल सर्च मा दुसर पेज मा ऐ जांदो जब कि पेड ब्लौगुं दगड़ 'गढ़वाली लोक गीत' शब्दों मामला मा भयंकर प्रतियोगिता च। याने कि मीन कखि ना कखि की वर्ड औप्टीमाइजेसन या सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन मा ध्यान दे च। 

की वर्ड को दोहराव - की शब्द मा दुहराव हूण जरूरी च।  

की वर्ड घनत्व  -की वर्ड घनत्व या की वर्ड वेट /की वर्ड भार को अर्थ होंद पेज माँ सबि शब्दों मुकाबला मा की वर्ड को प्रतिशत क्या च। तीन से सात प्रतिशत की वर्ड्स ठीक माने जांदन. 

पर्यायवाची शब्द याने की वर्ड प्रोक्जिमेटी  - की वर्ड का पर्यायवाची शब्द बि आवश्यक होंदन।  पर्यायवाची शब्द बि की वर्ड घनत्व बढ़ान्दन।

की वर्ड कु  पेज मा स्थिति - हेडिंग , और पैला बीस शब्दों मा की वर्ड को महत्व सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन का वास्ता महत्वपूर्ण होंदन। 


ब्लौग मा मैटा टैग आदि माँ की वर्ड  - साईट या ब्लौंगुं टैग , मैटाटैग आदि माँ की वर्ड आवो तो सर्च इंजिन मा अग्वाड़ी आणो संम्भावना बढ़ जांदी।

                                     कविता पेज मा की वर्ड कनकै लाये जावो?

  बात सै च कि गद्य मा त की वर्ड्स  लाण सरल च पण कविता मा लाण नुकसानदायक च।
यांकुण हरेक कविता से पैल एक लाइन मा की वर्ड अर कविता समाप्ति बाद कुछ लाइन इन व्यवस्थित कारो कि की वर्ड औप्टीमाइजेसन प्राप्ति ह्वे जावो। 

                                        सर्च इंजिन ऑप्टीमाइजेसन या खोजी शब्दों बाहुल्यता 


              सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन को अर्थ होंद वो  तारकीब/ ब्योंत जाँ से आपका ब्लौग या पेज मा ट्रैफिक बढ़ोतरी ह्वावो। ट्रैफिक बढ़ोतरी याने सर्च इंजिन (गूबल , याहू सर्च साईट ) मा जब भि पाठक सर्च कारो तो आपको पेज पैलो या दुसर पेज मा आई जावो। पाठक तिसर पेज आंद आंद थकि जांद। 
सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन केवल साहित्यकार से नि बलकणम साईट अर ब्लॉग को कंडकटर पर जादा निर्भर करद। इलै आप दिखिल्या कि आपको क्वी लेख /कविता कै ब्लौग मा /गूगल याहू सर्च मा पैलो पेज मा ऐ जांद अर वही लेख /कविता दुसर ब्लौग सर्च मा नि आंदो 
   की वर्ड की बहुतायत - आपका पेज मा की वर्ड की बहुतायत हूण चयेंद जांसे कि सर्च इंजिन (यो एक तकनीक को नाम च ) आपका पेज तैं सर्च साईट मा पैलो या दुसर पेज मा लावो। आपका पेज मा कम से कम तीन प्रतिशत अर जादा से जादा ग्यारा प्रतिशत की वर्ड ह्वावन तो समजी ल्यावो कि आपको पेज सर्च साईट मा पैलो , दुसर अर तिसुर पेज मा ऐ सकुद। पण इक्हम बि प्रतियोगिता चलणि रौंदी अर जो बि की वर्ड औप्टीमाइजेसन माँ अग्वाड़ी रालो वो ही जीतल।  
किंतु की वर्ड को भिभड़ाट बि सर्च इंजिन पछ्याण जांद तो की वर्ड को बाहुल्य बि होसियारी से करण पोड़द। 
ब्लौग वाळ गूगल टूल बार से सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन फल ( रिजल्ट )देखि सकदन।
साहित्यकारों तैं हफ्ता मा दिखण चयेंद कि ऊंको शीर्षक को गूगल सर्च मा क्या स्थिति च।                                             
  यदि आपक  ब्लौग च तो आप तैं सर्च इंजिन औप्टीमाइजेसन का नियम अपनाण चयेंदन। इख पर लम्बो लेख ह्वे जालो। 
 
                                  पेड या समर्थित ब्लौगुँ दगड़ छौंपादौड़ (प्रतियोगिता

गढवाली अर कुमाउंनी साहित्यकारों तै पर्यटन , भूगोल , इतिहास, गीत , राजनैतिक , लोक गीतू, विकासवादी  विषयों पर पेड साइटों दगड़ गलाकाट प्रतियोगिता करण पोड़द। मि तैं अपण इतिहास लेखों मामला मा टूरिस्ट साइटों दगड़ प्रतियोगिता करण पड़णु च अर अबि बि पेड साईट ही जितणा छन।  
अर तबि बि पेड या गूगल सर्च समर्थित ब्लौंगुं दगड़ प्रतियोगिता जीतिक ही अपण पाठकों संख्या बढ़ाण पोड़ल। विशेष शब्दों पर ध्यान देकी या जंग जिते जालि।  
                                        
   साहित्यकारों तैं ब्लौग मार्केटिंग , व्यब मार्केटिंग , इंटरनेट मार्केटिंग का गुर सिखण आवश्यक च                                                          

 Copyright@ Bhishma Kukreti 17 /7/2013 

Contact 9920066774

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