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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 28, 2013

विज्ञानौ क्रान्ति से गढ़वळि गाऴयूं मा चौतरफा परिवर्तन

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 


  वैज्ञानिक खोज अर तकनीकी परिवर्तन से पलायन बढ़द, आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक  उलट फेर हुंदन अर याँ  से संस्कृति अर भाषाओं पर जबरदस्त फरक पोड़द। वैज्ञानिक खोज को भाषा परिवर्तन से ब्वे बेटी सम्बन्ध च I 
 गाळि दीण  कै बि समाज मा आम बात च अर कति मनोवैज्ञानिक बथांदन  बल गाळि दीण कति दें फैदामन्द बि च I    
 गाळि भाषाक जेवर  हूँदन , गैणा  हूंदन , फूंदा हूंदन अर गाळि कै बि समाज का सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , सांस्कृतिक स्वभाव-स्तिथि  को दर्पण हूंदन I 
 भाषा वैज्ञानिक मानल कि सदियों से गाळि नि बदलेन किलैकि गाळि मूल भूत भावनाओं से   जुड़ी होंदन।
पण अब गाऴयूं मा आमूल -चूल परिवर्तन ऐ ग्यायि।
परसिपुण मि गाँ जयुं छौ त मीन द्याख बल गाऴयूँ मा भाति बदलाव ऐ गेन । 
           जब बिटेन  कैसेट अर मोबाइल रिंग टोन  क्रांति आयि  तो  पहाड़ी अपण लोक गीतुं महत्व समजि  गेन अर अब वै हिसाबन अपण मिजाज बदलणा छन I जब  बिटेन पहाड़ का लोगुंन " 'मेको पाड़ा नि दीण पिता जी,  पाड़ी लोक खराब होंदन। पाड़ी लोग मा बैणि गाळी दींदन " गीत कैसेटों  अर मोबाइल रिंग टोन  मा सूण वो अब मा बैणि  गाळि नि दींदन अब गांवुं  मा लोगुं तैं शहरी ब्वारी चयाणि च तो वूंन मा बैणि पारम्परिक गाळि पटाक से बंद करी दे अब  माँ बैणि  गाळि जगा अंग्रेजी का स्लैंग शब्दों प्रयोग करे जांद I अर्थ वो ही च पण चुंकि बात अंग्रेजी मा च तो  बदतमीजी वळ  स्लैंग कतै बि गाळि नि माने जांदन अर अब गाऊं मा चौंदकोट्या बांद की जगा शहरी बांद ब्वारि बौणि आणा छन. यि शहरी ब्वारि  नया नया अग्रेजी 'स्वियरिंग' स्लैंग शब्द देकि हमारी भाषा शब्दकोश  बि बढ़ाणा छन I पारम्परिक 'अपण ब्वैक मैशु' शब्द अब इतिहास की बात छन I  
   पैल खेती बि छे,खेती छे त उज्याड़ बि छौ अर इन मा गौड़ी बि छया I  गौड़  अपण गुसैण (मालकिन) क वर्क  करणों बान उज्याड़ बि  जांदा छया I अर जैं  मौक उज्याड़ खये जावो वीं मौ की जनानी  अपण सांस्कृतिक कर्तव्य निभाण कबि बि नि बिसरदि छे वा रोष मा , गुस्सा मा गाळि पद्यगीत गान्दि छे , " जा ! स्या गौड़ी अबि तड़म लगी जा ! "; कीड़ पोड़ि जैन तैंक दूध पर!" " तैंक पांस सुखी जैन " I अब चूँकि उज्याड़ एक गुनाह छौ तो लोग गाळि शान करी दींदा छा अर बुल्दा छा - गरम पाणिन कूड़ नि फुकेंद अर गाऴयुंन लौड़ -गौड़ नि मरदन I इन मा गाळि अभिव्यक्ति जताणो  अर क्रोध शांत करणों एक जरिया हूँद छौ.  आज   जैंन गाळि खैन वा  जनानी अपण गाऴयूं बहीखाता मा गाळि दीण वाळिक लेजर फोलिओ मा  गाळि जमा कौर दींदी छे अर जब समौ आंद छौ त चक्रवर्ती ब्याज का साथ गाळि बौडै (वापस ) दींदि  छे अर अतिरिक्त गाळि हूंद छे - स्या गौड़ि बाग़ जोग ह्वे जैन, भेळ जोग ह्वे जैन, तैं पर खुर्या ह्वे जैन , स्या गौड़ि कठबड़ (विषैली घास) खै जैन I 
  अब जब हमर गां मा वैज्ञानिक क्रान्ति से खेती  अर गोर पळण बंद ह्वे ग्यायि अर  उज्याड़ खाण  बंद ह्वे तो गौड़्यूं  तैं गाळि दीण  अफिक बंद ह्वे ग्यायि I पण दूध को महत्व कम  थुका ह्वाइ। अब गाळि गौड़ि छोड़िक दूध जीना सरकि गेन. उन त मेरि बोडि अर काकि मा मेल मिलाप खूब च पण जब बि राजनैतिक प्रतिबद्धता को सवाल आंद द्वी बिसरी जांदन कि द्वी द्यूराण -जिठाण छन I बोडि च मनियारस्यूं कि अर हमर विधयिका विजया बड़थ्वाल ह्वे बिलखेत की तो बोडि  विजया बड़थ्वाल की घोर समर्थक अर काकी ह्वे उदयपुर पट्टी की    त शक्ति कपरवाण की घोर समर्थक अर बस यूं दुई राजनेताओं क कारण दुयुं मा महाभारत ह्वे जांद। चूंकि दुयूंम गौड़ि त छ नी छन अर बजार बिटेन थैल्यूं दूध से खीर बणान्दन    त  गौड़ि सम्बन्धी गाळि छोड़िक अब द्वी दूध मुतालिक गाळि दींदन जन कि -
काकी -   नागराजा सच ह्वाओ तो जा ! त्यार दूध मा    एडीसनल स्टार्च अर शुगर मिल्युं रावो 
बोडी - म्यार ग्विल्ल सच होलु त त्यार दूध मा बेन्जोइक अर सैलीसाइक्लिक एसिड मिलायुं रावो। 
काकी -  भूम्या  से बिनती च बल त्यार दूध मा साबुण अर फोर्मिलिन मिल्युं रावो 
बोडी -जा त्यार नर्सिंग गसे जैन अर अमोनियम सल्फेट मिल्युं रावो। 
अब इन नै गाऴयूं पैथर वैज्ञानिक क्रान्ति को ही हाथ च 
अब क्वी " जा तू से अर बिजि ना "; "तेरी छाती फटी जैन " गाऴयूं से क्वी नाराज नि होंद हाँ पण क्वी इन गाळि दे द्वावो - " जा जैदिन तू मोरी तो कखि बि शराब को एक बून्द नि मिलेन" से अंग्वाळ बट्वै (मल युद्ध) शुरू ह्वे जांद। किलैकि मरण त सब्युंन च पण यदि वै  क्षेत्र माँ शराब अप्राप्य होलू तो मुडै नि मीलल तो मुर्दा मड़घट कनकै जालो? आज म्यार गाँव मा " जा जैदिन तू मोरी तो कखि बि शराब को एक बून्द नि मिलेन"  सबसे बुरी गाळि माने जांद अर ईं नई  गाळि पैथर वैज्ञानिक अर सामाजिक क्रांति या बदलाव को ही हाथ च I 
  अब क्वी कैं जनानी तै गाळि द्यावो  कि -"जा तेरी बेटी या बेटा अणब्यवा रै जैन" तो जनानी नाराज नि होंदन किलैकि अब ब्वे-बाब  बेटि-बेटा क ब्यौ नि कौर साकन तो बेटिम  या बेटाम भाजिक ब्यौ करणों कथगा ही विकल्प खुल्यां  छन I हाँ . अब कै तैं गाळि   दे द्यावो कि -" जा तेरो जंवै सरकारी नौकरी मा रैक बि सच्चो , इमानदार अर निघूसखोर रावो" तो या गाळि भौत बड़ि गाळि माने जांद कि जँवै सरकारी पद पद पर बि उपरी कमाई नि कारो अर या गाळि हथतुडै या दांत तुडै युद्ध पैदा कौरि दींद   I इनि " जा त्वे तैं इन ब्वारी मीलो ज्वा नौकरी नि करदी ह्वावो !" गाळि बि भौत बुरी गाळि मने जांद ।  
  अब कैकुण बोलि   दयावो कि "जा ! तू रांड ह्वे जै" तो अब क्वी नाराज नि होंद किलैकि अब पेंसन त मिल्दि ही च पण जरा " जा ! त्यार  पेन्सन मा खटपट ह्वे जावो "  गाळि देक  द्याखो तो सै I गाळि खाण वाळ अग्यौ मचै द्यालो। 
 अब कैकुण बोलि द्यावो कि - "जा त्यार हौळ -ज्यू टूटि जैन"  तो क्वी नि रुस्यांद पण जरा -" जा त्यार मोबाइल की बैटरी खराब ह्वे जैन" या " जा त्यार मोबाइल तैं सिग्नल नि मीलेन " तो ल्वैखतरी ह्वै जांद । तकनीकी क्रान्ति से गाऴयूं मा बदलाव जि ऐ गे I 
  अब कैकुण समणि  पर इ घात घाळो  कि - "जा  !  त्वे पर हज्या ह्वे जैन " या " जा त्वै तैं छरका लगी जैन" या " त्वै पर खाज -खौड़ ह्वै जैन " तो क्वी बि यूँ गाऴयूं तै गाळि नि माणदो किलैकि मेडिकल क्रान्ति से बिमारी अब बिमारी नि रै गेन  बलकणम मेडिकल इन्स्युरेंस से कमाणो जरिया ह्वे गेन   पण जरा इन बोलिक द्याखो -" जा त्यार कम्प्यूटर पर सद्यानो कुण वाइरस लगि जैन" तो तुमारि खैर नी  च अर जरुर तुमर दांत टूटि जाला। वैज्ञानिक क्रान्ति गाऴयूं मा बि क्रान्ति लांद I 
जरा गां मा  कै तैं ब्वालो त सै -" जा त्यार जीमणो राति  बिजली खम्बा टूटि जैन" तो वो तुमर आँख फोड़ी द्यालो I  
गाँ माँ ब्वालो कि -"खत्ताउन्द जालो यु बच्चा" तो अब ब्वे बाबु पर क्वी असर नि पड़द पण जरा बोलिक दिखावो कि -"हे भगवान तै बच्चा तैं अंग्रेजी स्कूलम एडमिसन नि मीलो " तो बच्चा का ब्वै बाब तुमर मुंड जरूर फोड़ी द्याला I 

    
इनि दसियों उदाहरण छन जो साबित करदन कि वैज्ञानिक क्रान्ति  गाऴयूं साहित्य मा बि क्रान्ति लांद। 




Copyright @ Bhishma Kukreti  28/7/2013  

 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखलाजारी ...]  

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