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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 21, 2013

संस्कृत और हिंदी साहित्य के प्रख्यात इतिहासकार डा प्रेम दत्त चमोली नही रहे

 प्रचार प्रसार से दूर रह अपने काम में लग्न रहने वाले डा प्रेम दत्त चमोली का स्वर्गवास रूडकी में 9 जलाई 2013 को हो गया. यह समाचार मुझे कल ही नैनीताल बैंक के प्रबंधक श्री गिरीश पोखरियाल से मिली। डा चमोली से मेरा परिचय फोन पर हुआ जब मैं गढ़वाली काव्य का इतिहास हेतु कवियों का परिचय खोज रहा था. फोन से ज्ञात हुआ कि डा प्रेम दत्त चमोली गढ़वाली में नही लिखते। डा चमोली ने बताया कि वे इस समय अपने ग्रन्थ 'संस्कृत को गढ़वाल की देन' प्रकाशन और 'उत्तराखंड का हिंदी साहित्य को देन हेतु कार्यरत हैं.     
            दो साल पहले (६/११/२०११ )मुझे डा प्रेम दत्त को रूबरू मिलने का  अवसर रुड़की में मिला। डा प्रेम दत्त चमोली सात्विक भोजन करते थे और शादी जैसे अवसरों पर भी घर से भोजन कर आते थे. तब उनके ऐतिहासिक पुस्तक ' गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन' प्रकाशित हो चुकिथी और उन्होंने मुझे वह पुस्तक भेंट की. फिर जब मैंने इस पुस्तक की समीक्षा नेट पर प्रकाशित की तो उन्हें सूचना दी और उन्होंने उल्हास में धन्यवाद दिया। उसके बाद उनसे सम्पर्क का अवसर प्राप्त नही हुआ. 
                         डा प्रेम दत्त चमोली का जन्म ग्राम पलाम , पट्टी मखलोगी , टिहरी  गढ़वाल में 15 अक्टूबर 1931  को श्रीमती गंगा देवी -शर्णु राम के यहाँ हुआ. 
 शिक्षा - बालक प्रेम दत्त  ने क्यारी गाँव से आधारिक शिक्षा प्राप्त की और फिर संस्कृत शिक्षा हेतु हरिद्वार चले गए. संस्कृत व हिंदी से उन्होंने एम. ए. किया और डी. फिल के पदवी सन 1979 में प्राप्त की. 
       सन 1958 से 1995 तक डा प्रेम दत्त चमोली मेरठ में अध्यापक रहे और प्रधानाचार्य के पद से निवृत हुये. 
  
  उन्होंने खोजपूर्ण साहित्य की  रचनाएँ प्रकाशित कीं 
१ - गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन
२- ज्ञान निबन्ध 
३ -गढ़वाली साहित्यकोश 
४- श्रीमद भागवत पुराण का सप्ताह 
इसके अतिरिक्त उनकी  की खंडो की वृहद् पुस्तक ' उत्तराखंड का हिंदी साहित्य को देन' प्रकाशाधीन थीं 
डा प्रेम दत्त चमोली राजकीय योजना ' उत्तराखंड की विभूतियाँ ' के टिहरी और चमोली गढ़वाल क्षेत्र के प्रभारी भी थे. 
वे दो सुयोग्य पुत्रों के पिता जी भी थे.  

डा प्रेम दत्त चमोली उत्तराखंड के एक जगमगाते नक्षत्र थे जिन्होंने उत्तराखंड में संस्कृत और हिंदी साहित्य के इतिहास खोजने में अथक योगदान दिया था . उत्तराखंड उन्हें व उनके योगदान को कभी नही भुला पायेगा 

Copyright@ Bhishma Kukreti 20/7/2013

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