डा. बलबीर सिंह रावत
आलू एक अति साधारण खाद्य पदार्थ है जो हर मौसम में हर जगह उपलब्ध रहता है. इसी कारण इसे हास्य का माध्मय भी बना दिया है। पूर्वी भारत में जब किसी साधारण जने को साधारण बुद्धि वाला कहना होता है तो कहते हैं "तू तो यार आलू है ".यह बेचारा अपनी हर जगह, हर घर में उपलब्धि के कारण, विशेषता हासिल करने से चूक गया . लेकिन केवन सर्वसाधारण के विचारों में। आलू के गुण जानने के बाद हमें लगता है की यह तो बड़ा ही काम का पदार्थ है। आलू सुपाच्य है तो खाने से थकान और कमजोरी को भगाता है. इसमें विटामिन सी , बी6, पोटासियम और कार्बोहाइड्रेट तथा फाइबर पाए जाते है। विटामिन सी से मसूढ़े स्वस्थ रहते हैं,बी 6 से नईं कोशिकाओं के बनने में सहायता मिलती है और दिमाग की कार्यक्ष्म्ता बनी रहती है. आलू के नियमित सेवन से बुरे प्रकार के कोलेस्ट्रोल में कमी आती है
लेकिन कोई आलू का कैसे सेवन करता है, उस से इसके सारे गुणों पर इसका असर पड़ता है। जलते कोयले युक्त राख में या भट्टी ( ओवन ) में भुने आलू में पूरी पौष्टिकता सुरक्षित रहती है. तले हुए और मसालों के साथ पकाने से इसके पौष्टिक तत्व कम हो जाते है।.
आलू की किस्में उसके उपयोग पर निर्भर करती हैं। जैसे खुश्क सब्जी के साथ पकाने के लिए जल्दी गलने वाली किस्म, रसेदार आलू की सब्जी के लिए सख्त, पकने पर अपने आकार को रख पाने वाली किस्म, आलू टिक्की वाली, समोसे वाली, फिंगर फ्राई वाली, साधारण आलू चिप्स वाली, एक आकार के बड़े चिप्स वाली किस्में,और अब सेंक या भून कर खाने वाले किस्मे इत्यादि. औद्योगिक खेती के लिए इस बात का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। आलू की खेती के लिए जह भी जानना जरूरी है की आलू की खुदाई कब की जाय की उसकी छाल काफी सख्त हो गयी हो और इसके कारण संरक्षण में आसानी हो।. , .
चूंकि आलू जल्दी खराब होंने वाली उपज है , तो मंडी में किसान को उपभोक्ता के खरीद मूल्य का ३ ० % भी नहीं मिलता है. उसे आढतियों द्वारा निर्धारित मूल्य पर ही बेचना पड़ता है। आढतियों, शीत गृहों के मालिकोँ और रेढी-ठेली वालों से पूछिए की उनके लिए आलू कितना महत्वपूर्ण है ? उनके ठाठ बाट केवल आलू के माहात्म्य के कारण है।.आपने अपने बच्चों के लिए कभी किसी अच्छी कम्पनी के आलू चिप्स का पाकेट तो लिया होगा . कभी उसका वजन और कीमत पढी है? १३ ग्राम के पेकेट का दाम ५ रुपया . यानी ३८५/- का एक किलो आलू चिप्स, जिसे बनाने में ८ से १ ० किलो आलू लगा होगा।
कल्पना कीजिये की ये सारे काम, आलू उगाने से लेकर, भंडारन और कारखानों में उपभोगता के पसंद के उत्पाद , जैसे चिप्स, और स्टार्च इत्यादि बनाने का प्रबंध हमारे उत्तराखंड के आलू उत्पादक अपने स्वयम के स्वामित्व में , सम्पूर्ण आलू व्यवसाय करें तो उन्हें किता लाभ हो सकता है? यह करना अब संभव है। अब सरकार ने कृषि क्षेत्र में उत्पादक कंपनियों के गठन के लिए सहकारिता और औद्योगिक कंपनियों के गठन/संचालन के नियमों को मिला कर नये नियम बनाए हैं . इन नए नियमों के अनुसार हर उत्पादक कंपनी में कम से कम १० सदस्य होंगे, हर सदस्य का वोट एक होगा या होगा चाहे वोह कितनी ही पूंजी लगाय. हाँ लाभ वितरण के लिए कम्पने की सफलता में हिस्सेदारी का अनुपात भी आधार माना जाएगा . शेयरों की बिक्री नहीं हो सकती । कंपनिया अपने प्रबंधक बोर्ड में विशेषज्ञों की भी नियुक्ति कर सकती हैं। यह उत्पादक कंपनिया मिल कर अपना संघ बना सकती हैं और उद्द्योग स्थापित कर सकती है। सहकारी संस्थाओं के रजिस्ट्रार का इनसे कोइ लेना देना नहीं है.
औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति पति दिन एक निश्चित मात्रा में , और लगातार साल भर होनी चाहिए। चूंकि आलू की फसल पर्वतीय इलाकों में साल में दो बार ली जा सकती है, तो सालाना मांग का सटीक अनुमान लगाने से, उत्पाद, भंडारण के लिए शीत-भण्डार और गराहक की पसंद के उत्पाद बनाने के उद्द्योग के आकार का सटीक आकलन किया जा सकता है. फिर भी लभ दायक आकार के छोटे उद्द्योग को १० टन आलू रोज, यानी ४,००० टन आलू साल भर के लिए चाहिए . याने एक फसल में २,००० टन आलू बह्न्दारण के लिए शीत्ग्ढ़ की भी आवश्यकता होती हैं परवतीय क्षेत्रों में शीतग्रहों की संचालन पूंजी अपेक्षकृत कम होती है.
चूंकि अपने उद्द्योग लगाना , हम पर्वतीय लोगों के लिए नयी बात है तो इसके लिए सम्बंधित अनुभवी विशेषज्ञों की सेवा लेना भी अनिवार्य है, जो सही मार्ग दर्शन दे सकेंगे. सरकार भी प्रोत्सान देती है। इस लिए सबसे पाहिले आलू उत्पादन क्षेत्रों के उत्पादाकों को समझाने, और सदस्य बनाने के लिए उन्ही क्षेत्रों के/ अन्य इच्छुक हमारे अपने युवा बीड़ा उठायं,. एक बार, एक स्थान पर एक सफल उद्द्योग स्थापित हो पाय्र्गा तो फिर , उसकी सफलता को देख कर अन्य जगहों के उत्पादक भी आगे आयेंगे
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