[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती
वु गाँ बि आम गढ़वळि गाऊँ तरां च I पांच जाति लोग बासिंदा छन - बहुगुणा, कुकरेती , जखमोला , नेगी अर शिल्पकार। डांड मा एक भौत इ पुरण जागृत देवी मन्दिर बि च I जन सबि गढ़वळि गाऊँम रिवाज छौ बल शिल्पकारुंन मंदिर चीण अर आज बि मन्दिरौ मरम्मत करदन पण शिल्पकार लोग मंदिर भितर प्रवेश नि कौर सकदन।
कुज्याण कति बीसी पैलाक बात च धौं I वूंक बूड ददा मा वूंक ददान बथाइ छौ अर वूं तैं वूंक ददान बथै छौ बल बीस पचीस साखि पैल मंदिर तौऴ पैरी (भूस्खलन) पोड़ अर गां बिटेन देवी मंदिर जाणो रस्ता खतम ह्व़े ग्ये। जगता सगति मा बहुगुणाउंन अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ बिटेन मंदिर जाणो एक बाटो बणाइ। दिखादेखी मा कुकरेत्युंन बि अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ से मंदिर तलक हैको बाटो बणै दे त सकासौर्युं मा नेग्युंन अर जखमोलाऊंन बि अपण अपण अलग बाटो खौणि दे. अब जन कि रिवाज छौ शिल्पकारुं तै अपुण अलग बाटो खत्याणो अधिकार नि छौ तो वो अलग बाट नि खत्ये सकिन।
याने अब गाँ बिटेन मन्दिर तलक जाणो चार रस्ता छा. हरेक अपण अपण जाति रस्ता ही मंदिर जांद . हरेक जाति लोग दुसर जातिक बाटो पर जाण पाप माणदा छा तो एक जाति वाळ दुसर जाति बाट जिना हिरदा बि नि छा , दिखदा बि नि छा. हरेक तैं मंदिर जाणौ अपण जाति रस्ता पर गर्व छौ. हरेक जाति मंदिर से जादा महत्व अपण जातिक बाटु तैं दींद छा. मंदिर तैं छाँवन या नि छांवन पण अपण जाति बाट हर साल मरम्मत करदा छा.
हरेक साल गाँ का देवीक संजैत पूजा करद छा, संजैत भंड्वर करदा छा.एक साल एकि जाति लोक पूजा -भंड्वर करणों व्यवस्था अर खर्चा उठांदा छा. वै साल जागरी अर भौणेर आदि वीं जाति बणयूं रस्ता से मंदिर जांद छा जैं जाति पूजा बान पांति ह्वावो।
एक साल हरिद्वार बिटेन एक बड़ो नामी महात्मा देविक संजैत पूजा मा शामिल हूणौ ऐगेन। गाँव वाळ पुळेणा (खुश , पुलकित, आनन्दित) छा कि वूंक भाग खुलि गेन कि इथगा महान महात्मा वूंकी जग्गी मा शामिल हूणा छन. महात्मा बि गाँ वाळु देवी पर विश्वास देखि अत्यंत प्रसन्न छा.
देवी मंदिर जाणौ बगत आयि तो बहुगुणाऊँन ब्वाल कि महात्मा जी हमार जाति बाट से मन्दिर जाला। कुकरेती चिढ़ गेन अर बुलण बिसेन कि -नै महात्मा जी तो कुकरेत्यूं बाटु से मन्दिर जाला, जखमोलाउंन राड़ घाळि दे कि महात्मा जखमोलाऊँ बाटो से मन्दिर जाला। नेगी लोग बि अडि गेन कि महात्मा जी मन्दिर नेग्युं बाटु ह्वेक मन्दिर नि जाला तो पूजा ह्वेइ नि सकद.
सबि चांदा छा कि महात्मा जी ऊंको जातीक रस्ता ह्वेक मन्दिर जावन।
पैल सब्युंन दलील दे . दलील से काम नि चौल तो वाकयुद्ध की बारी आई. वाकयुद्ध जब असफल ह्वे ग्याइ तो गाऴयूँ बमगोळा फुटेन। गाऴयूँ स्टॉक खतम ह्वे तो लाठ्यूंन गाऴयूंक जगा ले. लाठि बि टुटी गेन त हरेक अपण अपण ड्यारन देवी बान धरीं खुखरी लेक ऐ गेन.
महात्मा जीन पूछ भई समस्या क्या च त सब्युंन मंदिर जाणो अपण अपण बाटो प्रशंसा कार अर हर जातिन सिद्ध करणै कोशिस कार कि मन्दिर जाणौ वूंकि जातिक रस्ता ही सर्वश्रेष्ठ रस्ता च.
महात्मा जीन बहुगुणाऊँ तैं पूछ ," क्या तुम तैं कुकरेत्यूं, जखमोलाऊं अर नेग्युं रस्ता पर हिटणौ अनुभव बी च ?"
बहुगुणा लोगुन साफ़ जबाब दे बल हम तै क्या जरूरत च कि हम दुसर जात्युं रस्ता पर जवाँ।
इनि महात्मा जीन सबि जात्युं वाळ तैं पूछ कि कै तैं दुसर जाति बाटु पर हिटणो अनुभव बि च ? त सब्युंक जबाब छौ बल हमर जातिक बाटो ही जब सर्वश्रेष्ठ बाटु च तो हम तैं दुसर जातिक तुच्छ रस्ता पर जाणै आवश्यकता ही नी च.
महात्मा जीन ब्वाल बल ठीक च पैल हरेक आदिम देवी मन्दिर जाणौ दुसर जातिक बाटौ अनुभव ल्यालु तो ही मि देवी मन्दिर जौलु अर महात्मा जी वापस चली गेन.
आज कुज्याण कथगा साखी बीति गेन धौं क्वी बि दुसर जातिक मन्दिर जाणौ बाटोक अनुभव लीणो तैयार नी च अर अपण अपण जातिक बाटो से ही देवी मन्दिर जांदो। आज बि हरेक अपण बाटु तैं ही सर्वश्रेष्ठ बाटु बथान्दो अर दुसर जाति बाटु तैं तुच्छ बतान्दो I
Copyright @ Bhishma Kukreti 24/7/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती
वु गाँ बि आम गढ़वळि गाऊँ तरां च I पांच जाति लोग बासिंदा छन - बहुगुणा, कुकरेती , जखमोला , नेगी अर शिल्पकार। डांड मा एक भौत इ पुरण जागृत देवी मन्दिर बि च I जन सबि गढ़वळि गाऊँम रिवाज छौ बल शिल्पकारुंन मंदिर चीण अर आज बि मन्दिरौ मरम्मत करदन पण शिल्पकार लोग मंदिर भितर प्रवेश नि कौर सकदन।
कुज्याण कति बीसी पैलाक बात च धौं I वूंक बूड ददा मा वूंक ददान बथाइ छौ अर वूं तैं वूंक ददान बथै छौ बल बीस पचीस साखि पैल मंदिर तौऴ पैरी (भूस्खलन) पोड़ अर गां बिटेन देवी मंदिर जाणो रस्ता खतम ह्व़े ग्ये। जगता सगति मा बहुगुणाउंन अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ बिटेन मंदिर जाणो एक बाटो बणाइ। दिखादेखी मा कुकरेत्युंन बि अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ से मंदिर तलक हैको बाटो बणै दे त सकासौर्युं मा नेग्युंन अर जखमोलाऊंन बि अपण अपण अलग बाटो खौणि दे. अब जन कि रिवाज छौ शिल्पकारुं तै अपुण अलग बाटो खत्याणो अधिकार नि छौ तो वो अलग बाट नि खत्ये सकिन।
याने अब गाँ बिटेन मन्दिर तलक जाणो चार रस्ता छा. हरेक अपण अपण जाति रस्ता ही मंदिर जांद . हरेक जाति लोग दुसर जातिक बाटो पर जाण पाप माणदा छा तो एक जाति वाळ दुसर जाति बाट जिना हिरदा बि नि छा , दिखदा बि नि छा. हरेक तैं मंदिर जाणौ अपण जाति रस्ता पर गर्व छौ. हरेक जाति मंदिर से जादा महत्व अपण जातिक बाटु तैं दींद छा. मंदिर तैं छाँवन या नि छांवन पण अपण जाति बाट हर साल मरम्मत करदा छा.
हरेक साल गाँ का देवीक संजैत पूजा करद छा, संजैत भंड्वर करदा छा.एक साल एकि जाति लोक पूजा -भंड्वर करणों व्यवस्था अर खर्चा उठांदा छा. वै साल जागरी अर भौणेर आदि वीं जाति बणयूं रस्ता से मंदिर जांद छा जैं जाति पूजा बान पांति ह्वावो।
एक साल हरिद्वार बिटेन एक बड़ो नामी महात्मा देविक संजैत पूजा मा शामिल हूणौ ऐगेन। गाँव वाळ पुळेणा (खुश , पुलकित, आनन्दित) छा कि वूंक भाग खुलि गेन कि इथगा महान महात्मा वूंकी जग्गी मा शामिल हूणा छन. महात्मा बि गाँ वाळु देवी पर विश्वास देखि अत्यंत प्रसन्न छा.
देवी मंदिर जाणौ बगत आयि तो बहुगुणाऊँन ब्वाल कि महात्मा जी हमार जाति बाट से मन्दिर जाला। कुकरेती चिढ़ गेन अर बुलण बिसेन कि -नै महात्मा जी तो कुकरेत्यूं बाटु से मन्दिर जाला, जखमोलाउंन राड़ घाळि दे कि महात्मा जखमोलाऊँ बाटो से मन्दिर जाला। नेगी लोग बि अडि गेन कि महात्मा जी मन्दिर नेग्युं बाटु ह्वेक मन्दिर नि जाला तो पूजा ह्वेइ नि सकद.
सबि चांदा छा कि महात्मा जी ऊंको जातीक रस्ता ह्वेक मन्दिर जावन।
पैल सब्युंन दलील दे . दलील से काम नि चौल तो वाकयुद्ध की बारी आई. वाकयुद्ध जब असफल ह्वे ग्याइ तो गाऴयूँ बमगोळा फुटेन। गाऴयूँ स्टॉक खतम ह्वे तो लाठ्यूंन गाऴयूंक जगा ले. लाठि बि टुटी गेन त हरेक अपण अपण ड्यारन देवी बान धरीं खुखरी लेक ऐ गेन.
महात्मा जीन पूछ भई समस्या क्या च त सब्युंन मंदिर जाणो अपण अपण बाटो प्रशंसा कार अर हर जातिन सिद्ध करणै कोशिस कार कि मन्दिर जाणौ वूंकि जातिक रस्ता ही सर्वश्रेष्ठ रस्ता च.
महात्मा जीन बहुगुणाऊँ तैं पूछ ," क्या तुम तैं कुकरेत्यूं, जखमोलाऊं अर नेग्युं रस्ता पर हिटणौ अनुभव बी च ?"
बहुगुणा लोगुन साफ़ जबाब दे बल हम तै क्या जरूरत च कि हम दुसर जात्युं रस्ता पर जवाँ।
इनि महात्मा जीन सबि जात्युं वाळ तैं पूछ कि कै तैं दुसर जाति बाटु पर हिटणो अनुभव बि च ? त सब्युंक जबाब छौ बल हमर जातिक बाटो ही जब सर्वश्रेष्ठ बाटु च तो हम तैं दुसर जातिक तुच्छ रस्ता पर जाणै आवश्यकता ही नी च.
महात्मा जीन ब्वाल बल ठीक च पैल हरेक आदिम देवी मन्दिर जाणौ दुसर जातिक बाटौ अनुभव ल्यालु तो ही मि देवी मन्दिर जौलु अर महात्मा जी वापस चली गेन.
आज कुज्याण कथगा साखी बीति गेन धौं क्वी बि दुसर जातिक मन्दिर जाणौ बाटोक अनुभव लीणो तैयार नी च अर अपण अपण जातिक बाटो से ही देवी मन्दिर जांदो। आज बि हरेक अपण बाटु तैं ही सर्वश्रेष्ठ बाटु बथान्दो अर दुसर जाति बाटु तैं तुच्छ बतान्दो I
Copyright @ Bhishma Kukreti 24/7/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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