खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च,
हिटा भै-भैण्यो साथ-साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर,
उठा भै-भैण्यो, मिला त हात
क्वी लचार त्वै धै च लगाणु,
मुलुक हुयुं ल्वै-ल्वै च बथाणु,
रौल्यों गलणी स्यीं गात क खातिर,
रीटा भै-भैण्यो ताल-मात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................
कखि बचपन ब्वै-बाब खुज्याणु,
कखि क्वी मन अफु धीत बंधाणु,
दिन मा हुईं स्यीं रात खातिर,
कारा भै-भैण्यो, उज्यलै कि बात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................
कुच दिब्तों कु रैबार च आणु,
पण लाटा त्वे स्ये नि बिन्ग्याणु,
ये रुसयाँ बद्री-केदार का खातिर,
सोचा भै-भैण्यो, मिलि-बैठि साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर, उठा ......................
रचना: विजय गौड़
०३।०७।२०१३
हिटा भै-भैण्यो साथ-साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर,
उठा भै-भैण्यो, मिला त हात
क्वी लचार त्वै धै च लगाणु,
मुलुक हुयुं ल्वै-ल्वै च बथाणु,
रौल्यों गलणी स्यीं गात क खातिर,
रीटा भै-भैण्यो ताल-मात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................
कखि बचपन ब्वै-बाब खुज्याणु,
कखि क्वी मन अफु धीत बंधाणु,
दिन मा हुईं स्यीं रात खातिर,
कारा भै-भैण्यो, उज्यलै कि बात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................
कुच दिब्तों कु रैबार च आणु,
पण लाटा त्वे स्ये नि बिन्ग्याणु,
ये रुसयाँ बद्री-केदार का खातिर,
सोचा भै-भैण्यो, मिलि-बैठि साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर, उठा ......................
रचना: विजय गौड़
०३।०७।२०१३
कविता संग्रह, "रैबार" बिटी ...
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments