(गढ़वाली-कुमाउनी फिल्म विकास पर विचार विमर्श )
भीष्म कुकरेती
एनिमेसन मूविंग फिल्मों का इतिहास नया नही है
आधिकारिक तौर पर सन 1917 में बनी अर्जींटिनियाइ कुरेनी क्रिस्टिआणि निर्देशित फीचर फिल्म 'अल पोस्टल ' प्रथम एनिमेटेड फिल्म है.
जहाँ तक एनिमेटेड गढ़वाली फिल्मों का प्रश्न है इस पार ना के बराबर ही काम हुआ है I
गूगल सर्च से पता चलता है कि गढवाली की प्रथम एनिमेटेड फिल्म पंचायत (2013) है . यह चार मिनट की एनिमेटेड फिल्म है
ऐसा लगता है कि यह फिल्म या तो डब्ड फिल्म है या ऐसे ही बना दी गयी है. इसके पात्र अमिताभ बच्चन , शाहरुख़ खान , सलमान खान , सन्नी देवल आदि हिंदी के अभिनेता हैं और आवाज भी इन्ही जैसे है. वातावरण और मनुष्य भी मैदानी हैं. भाषा छोड़ कहीं से भी यह फिल्म गढ़वाली नही लगती है.
आधिकारिक तौर पर असली गढवाली वातावरण और संस्कृति वाली गढ़वाली एनिमेटेड फिल्म ' एक था गढवाल' (2013) है. ' एक था गढवाल' दो मिनट की गढवाली फिल्म है और गाँव में पलायन की मार झेलती एक बूढी बोडी-काकी की कहानी है . फिल्म काव्यात्मक शैली या गीतेय शैली में बनाई गयी है. एनिमेटर या एनिमेसन रचनाकार भूपेन्द्र कठैत ने अपनी कल्पनाशक्ति और तकनीकी ज्ञान का परिचय इस फिल्म में दिया है. फिल्म अंत में एक कविता की कुछ पंक्तियों से खत्म होती हैं-
बांजी पुंगड़ी उजड्याँ कूड़
अपण परायुं को रन्त ना रैबार
ऊ माँ को झर झर सरीर
आर आंखुं मा आस
क्वी त आलो कभी
त होली इगास
संगीत व कला से गढवाल के बिम्ब बरबस दर्शक के मन में आ जाते हैं . अंत में गढवाल में रह रही महिला के प्रतीक्षारत आँखें आपको भी ढूंढती है और पूछती है कि आप कहाँ हैं क्यों नही इगास मनाने गाँव आते हो.
बमराड़ी (बणगढ़, पौड़ी गढ़वाल ) के भूपेन्द्र कठैत प्रशंसा के अधिकारी हैं जिन्होंने गढवाली एनिमेसन फिल्मों को एक कलायुक्त रचना बनाने की भली कोशिस की . भूपेन्द्र कठैत को कोटि कोटि साधुवाद !
आधिकारिक तौर पर सन 1917 में बनी अर्जींटिनियाइ कुरेनी क्रिस्टिआणि निर्देशित फीचर फिल्म 'अल पोस्टल ' प्रथम एनिमेटेड फिल्म है.
जहाँ तक एनिमेटेड गढ़वाली फिल्मों का प्रश्न है इस पार ना के बराबर ही काम हुआ है I
गूगल सर्च से पता चलता है कि गढवाली की प्रथम एनिमेटेड फिल्म पंचायत (2013) है . यह चार मिनट की एनिमेटेड फिल्म है
ऐसा लगता है कि यह फिल्म या तो डब्ड फिल्म है या ऐसे ही बना दी गयी है. इसके पात्र अमिताभ बच्चन , शाहरुख़ खान , सलमान खान , सन्नी देवल आदि हिंदी के अभिनेता हैं और आवाज भी इन्ही जैसे है. वातावरण और मनुष्य भी मैदानी हैं. भाषा छोड़ कहीं से भी यह फिल्म गढ़वाली नही लगती है.
आधिकारिक तौर पर असली गढवाली वातावरण और संस्कृति वाली गढ़वाली एनिमेटेड फिल्म ' एक था गढवाल' (2013) है. ' एक था गढवाल' दो मिनट की गढवाली फिल्म है और गाँव में पलायन की मार झेलती एक बूढी बोडी-काकी की कहानी है . फिल्म काव्यात्मक शैली या गीतेय शैली में बनाई गयी है. एनिमेटर या एनिमेसन रचनाकार भूपेन्द्र कठैत ने अपनी कल्पनाशक्ति और तकनीकी ज्ञान का परिचय इस फिल्म में दिया है. फिल्म अंत में एक कविता की कुछ पंक्तियों से खत्म होती हैं-
बांजी पुंगड़ी उजड्याँ कूड़
अपण परायुं को रन्त ना रैबार
ऊ माँ को झर झर सरीर
आर आंखुं मा आस
क्वी त आलो कभी
त होली इगास
संगीत व कला से गढवाल के बिम्ब बरबस दर्शक के मन में आ जाते हैं . अंत में गढवाल में रह रही महिला के प्रतीक्षारत आँखें आपको भी ढूंढती है और पूछती है कि आप कहाँ हैं क्यों नही इगास मनाने गाँव आते हो.
बमराड़ी (बणगढ़, पौड़ी गढ़वाल ) के भूपेन्द्र कठैत प्रशंसा के अधिकारी हैं जिन्होंने गढवाली एनिमेसन फिल्मों को एक कलायुक्त रचना बनाने की भली कोशिस की . भूपेन्द्र कठैत को कोटि कोटि साधुवाद !
Copyright@ Bhishma Kukreti 25/7/2013
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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