दिदौं, औंण वला छन दिन अब म्येरा पहाड़ का,
ठोका छत्ति बोला, हम कुमों-गढ़वाल का।।
'ब' अर 'ख' से उब उठुणु समाज अब,
छ्वटि जात-बडि जात कु टुटणु रिवाज अब,
उठदि सोच, पढ़याँ-लिख्यों कु राज अब,
धार-खालों कु बदलुणु मिजाज अब,
जिकुड्यों आग सुलगणि,
औणान दिन उमाल का,
ठोका छत्ति बोला .............................. ....
बिंगणी मनख्यात चकडैतों कि चाल अब,
बँटयां गढ़वली-कुमै वलु, नि रै वु साल अब,
सरया उत्तराखंड एकि सवाल अब,
मुलुक मा लाण 'विकासौ बबाल' अब
जौलि ग्येनि रांका,
नि रैनि दिन जग्वाल का,
ठोका छत्ति बोला .............................. ....
बुटि ग्येनि मुट्ट, मिलि ग्येनि हात अब,
'उत्तराखंडी' छोड़ी, नि रै क्वि जात अब,
निवास्युं कि कारा चा प्रवास्युं कि बात अब,
मुल्कौ खुणि हिटणा, सबि साथ-साथ अब,
भौ त व्है ग्ये भेद-भौ,
अब दिन अंग्वाल का,
ठोका छत्ति बोला .............................. ....
रचना: विजय गौड़
कविता संग्रह "रैबार" से (१२।०६।२०१३)
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