भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड में जून मध्य में मुसलाधार बारिश , भूस्खलन और भूस्खलन के पश्चात हुयी घटनाओं से प्रदेश की आर्थिक स्थिति चकनाचूर तो हुयी ही और एक आकलन के हिसाब से प्रदेश कई साल पीछे चला गया है। इस प्राकृतिक विप्लव से सबसे अधिक हानि उत्तराखंड की छवि को हुयी है। पहले उत्तराखंड की सकारत्मक छवि ही यात्रियों को उत्तराखंड लाने में कामयाब थी और यही छवि निवेश भी ला रही थी। यही छवि प्रवासियों को घर बौडाइ (उत्तराखंड में बसों) के लिए प्रेरित करने में भी सफल थी। प्राकृतिक विपदा आने से उत्तराखंड एक सकारात्मक छवि के लिए भी जूझ रहा है। छवि तनुता के कई कारण हो सकते हैं।
नकारात्मक छवि से उत्तराखंड कई अन्य अनदेखी, अनसुनी समस्याओं से भी रूबरू होगा। यह नकारात्मक छवि नागरिकों, निवेशकों, ग्राहकों/पर्यटकों और जो भी उत्तराखंड के आर्थिक, सांस्कृतिक या सामाजिक वातावरण से जुड़े भागीदार हैं उन्हें हर प्रकार से प्रभावित करेंगी। यहाँ तक कि यह आपदा जनित नकारात्मक छवि भविष्य में राजनैतिक अस्थिरता भी पैदा कर सकती है।
कल उत्तराखंड को कमजोर आर्थिक स्तिथि से ही नही नकारात्मक छवि से भी जूझना पड़ेगा याने कि उत्तराखंड को ब्रैंडिंग समस्या से दो दो हाथ करने ही पड़ेंगे।
विकास का कौन सा मॉडेल?
उत्तराखंड को पुनर्वास, पुनर्वसन , पुन:निर्माण से गुजरना होगा और इसके लिए फिर से विकास मॉडेल की आवश्यकता होगी।
किन्तु ब्रिटिश और स्वतंत्र भारत के विकासवादी मॉडेलों ने सिद्ध कर दिया है कि उधार का आयातित विकास मॉडेल उत्तराखंड में सर्वथा विफल रहा है। जो विकास मॉडेल गाँव के गाँव खाले करा दे वह विकास मॉडल वास्तव में विकास मॉडेल था ही नही। पहाड़ी नदियों के किनारे घर ही नही महल बना कर भी रहते थे किन्तु बरसात में इस तरह ध्वस्त कभी नही हुए जिस तरह आज हुए हैं। इसका अर्थ है कि पुनर्वसन और पुन:निर्माण से पहले यह निर्णय हो ही जाना चाहिए कि हमे कौन सा विकास मॉडेल चाहिए? तकनीक को जब तक पहाड़ों के अनुकूल अनुकूलित ना किया जाय तो वह तकनीक लाभकारी सिद्ध नही होने वाली है। अत: निकटतम भविष्य में प्रथमिकता है कि जाना जाय कि पहाड़ों को किस तरह का विकास मॉडेल चाहिए?
पर्यावरणवादियों की धौंस
उत्तराखंड ब्रिटिश काल के पश्चात दो विचारों से जूझ रहा है। मैदान जैसा विकास और पर्यावरण। अब तक मैदान जैसा विकास ने बाजी मारी हुयी थी किन्तु अब पर्यावरणवादिओं की अधिक चलेगी और फिर पहाड़ एक अनिश्चतता के भंवर में फंसेगा। वास्तव में उत्तराखंड के बन जाने के पश्चात भी भी उत्तराखंड के सर्वेसर्वा पहाड़ अनुसार विकास और पर्यावरण के मध्य सामंजस्य बिठाने में नाकमयाब सिद्ध हुए हैं .
उधार की सोच नहीं अपितु पहाड़ लायक नई सोच और नई रचनाधर्मिता का रोपण
पहाड़ों की त्रासदी रही है कि वहां स्वतन्त्रता से पहले और स्वतंत्रता के पश्चात भी उधार की सोच व उधार की रचनाधर्मिता का प्रादुर्भाव हे रहा है। पहाड़ों में पहाड़ अनुकूलित नई रचनाधर्मिता और नई फाड़ अनुकूलित सोच ने कभी जन्म ही नही लिया। यदि हमारे पुरखे भी ऐसे ही उधारचंद और नकलची होते तो शायद आज पहाड़ बचते ही नही। हमारे पुरखों ने पहाड़ों में रहने के लिए नई व पहाड़ लायक तकनीक अपनाई थी किन्तु हम नकलची होकर केवल तकनीक को पहाड़ों पर थोप रहे हैं। एक उदहारण है की सभी को पता है कि पहाड़ों में बिजली के खम्बो और तारों से बिजली में हर समय व्यवधान होगा किन्तु आज तक पहाड़ों के लायक बिजली के खम्बों व तारों के नये ढंग से इस्तेमाल व्यवस्था के बार में कुछ नही किया गया है। अब सही समय है जब पहाड़ अनुकूलित सोच को बढावा दिया जाय ना की आयातित सोच को। विपदा के बाद पुनर्वसन और पुनर्निर्माण में पहाड़ों के लायक पहाड़ी सोच का उपयोग हो।
बिगड़ी छवि सुधारण व छवि वर्धन के कुछ तत्व
आज से ही प्रत्येक उत्तराखंडी चाहे वह उत्तराखंड में में है अथवा प्रवास में है उत्तराखंड छवि सुधारने व नई सकारत्मक छवि निर्माण में भागीदार होना पड़ेगा।
एकता - उत्तराखंड ब्रैंडिंग के सभी भागीदारों को , समाज को, अधिकारियों व नेतृत्व को एकता में बंधना आवश्यक है। दिल्ली में बैठे सुषमा स्वराज, मनीष तिवारी जैसे राजनीति की रोटियाँ सकने वालों से हर भागीदार को बचना होगा। हमें अभी कोंग्रेस या भारतीय जनता पार्टी के झगड़े पचड़े में नही पड़ना है बल्कि उत्तराखंड को आगे लाने वाले सही रास्तों को देखना है । हमे सामाजिक दबाब बढ़ा कर सुषमा स्वराजों या मनीष तिवारियों को बयानबाजी से रोकना होगा। आज सभी स्टार पर उत्त्रखंदियों में एकता आवश्यक है और राजनैतिक बयानबाजी उत्तराखंड की छवि को और भी धूमिल करेगी। सुषमा स्वराजों या मनीष तिवारियों को बयानबाजी का विरोध किया जाय। इनके लिए मुर्दे राजनैतिक पैतरेबाजी के माध्यम हैं।
सभी भागीदारों को एकता की आवश्यकता ही नही अपितु एकता प्रदर्शन भी आवश्यक है।
विवधता को अंगीकार करना - हमें आज विविधता को शीघ्र ही स्वीकार करने में लाभ है। विविधता हमारी पहचान बननी चाहिए। विविधता को एकता का सूत्र बनाने से उत्तराखंड की छवि सुधरेगी
पहल करने में आगे आना - हमे अब कदम उठाने में आगे आने की शिरकत करनी होगी तभी उत्तराखंड की छवि में बढ़ोतरी होगी।
प्रयोग करने में आगे आना - पुननिर्माण में कई नये प्रयोग करने होंगे और हमे नये प्रयोग करने वालों के साथ देना ही होगा।
भागीदारों में उत्तरदायित्व व कर्तव्य वोध - उत्तराखंड छवि विकास के सभी भागीदारों व प्रत्येक स्तर की नेतृत्व वर्ग को अपने उत्तरदायित्व का अहसास होना आवश्यक है। उत्तराखंड का पुनर्निर्माण केवल सरकार का उत्तरदायित्व नही है अपितु उत्तराखंड से जुड़े हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है। कर्तव्य वोध आज एक अहम् आवश्यकता है।
दूरदृष्टि एवं रणनीति - आज प्रत्येक भागीदार को दूरगामी परिणामो को मद्येनजर अपनी रणनीति बनानी होगी तभी पुननिर्माण भविष्य हेतु लाभदायी होगा। उत्तराखंडियों को आज एक दूसरे के विचारों को सुनना, उन विचारों को सम्मान देना और फिर सही विचार का चुनाव करना प्रथमिकता है।
अन्तर्विरोध और एकता में सामजस्य - अब उत्तराखंड को अन्तर्विरोध की समस्या से पहले से अधिक अधिकजूझना पड़ेगा। किन्तु सभी को ध्यान रखना होगा की अन्तर्विरोध एकता में रोड़े ना अटकाए। इसके लिए सामाजिक दबाब अधिक कारगर सिद्ध होता है।
जटिलता और सरलता - पुननिर्माण और छवि सुधारण कई जटिलताओं जैसे जटिल प्रश्न को लाता है। सभी भागीदारों को सरलता की और ध्यान देना ही होगा।
सूचनाओं का आदान प्रदान - छवि पुनर्निर्माण व पुनर्विकास में सरकार , सार्वजनिक संस्थाओं और समाज के मध्य सूचनाओं के आदान प्रदान में गति वृद्धि एक परम आवश्यकता है।
आज आवश्यकता है कि उत्तराखंड से जुडा हर व्यक्ति अपना उत्तरदायित्व समझे और केवल वह कार्य करे जो उत्तराखंड पुनर्निर्माण व छवि सुधारण में सहायक सिद्ध हो। आज समय आ गया है कि उन तत्वों का विरोध किया जाय जो श्मशान में मुर्दों को वोट मांगने का माध्यम समझ रहे हैं। आज एकता की सबसे अधिक आवश्यकता है और दूर दृष्टी, सामंजस्य , सूचनाओं का तेजी से आदान प्रदान जैसे महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिया जाय।
Copyright@ Bhishma Kukreti 2/7/2013
उत्तराखंड में जून मध्य में मुसलाधार बारिश , भूस्खलन और भूस्खलन के पश्चात हुयी घटनाओं से प्रदेश की आर्थिक स्थिति चकनाचूर तो हुयी ही और एक आकलन के हिसाब से प्रदेश कई साल पीछे चला गया है। इस प्राकृतिक विप्लव से सबसे अधिक हानि उत्तराखंड की छवि को हुयी है। पहले उत्तराखंड की सकारत्मक छवि ही यात्रियों को उत्तराखंड लाने में कामयाब थी और यही छवि निवेश भी ला रही थी। यही छवि प्रवासियों को घर बौडाइ (उत्तराखंड में बसों) के लिए प्रेरित करने में भी सफल थी। प्राकृतिक विपदा आने से उत्तराखंड एक सकारात्मक छवि के लिए भी जूझ रहा है। छवि तनुता के कई कारण हो सकते हैं।
नकारात्मक छवि से उत्तराखंड कई अन्य अनदेखी, अनसुनी समस्याओं से भी रूबरू होगा। यह नकारात्मक छवि नागरिकों, निवेशकों, ग्राहकों/पर्यटकों और जो भी उत्तराखंड के आर्थिक, सांस्कृतिक या सामाजिक वातावरण से जुड़े भागीदार हैं उन्हें हर प्रकार से प्रभावित करेंगी। यहाँ तक कि यह आपदा जनित नकारात्मक छवि भविष्य में राजनैतिक अस्थिरता भी पैदा कर सकती है।
कल उत्तराखंड को कमजोर आर्थिक स्तिथि से ही नही नकारात्मक छवि से भी जूझना पड़ेगा याने कि उत्तराखंड को ब्रैंडिंग समस्या से दो दो हाथ करने ही पड़ेंगे।
उत्तराखंड को पुनर्वास, पुनर्वसन , पुन:निर्माण से गुजरना होगा और इसके लिए फिर से विकास मॉडेल की आवश्यकता होगी।
किन्तु ब्रिटिश और स्वतंत्र भारत के विकासवादी मॉडेलों ने सिद्ध कर दिया है कि उधार का आयातित विकास मॉडेल उत्तराखंड में सर्वथा विफल रहा है। जो विकास मॉडेल गाँव के गाँव खाले करा दे वह विकास मॉडल वास्तव में विकास मॉडेल था ही नही। पहाड़ी नदियों के किनारे घर ही नही महल बना कर भी रहते थे किन्तु बरसात में इस तरह ध्वस्त कभी नही हुए जिस तरह आज हुए हैं। इसका अर्थ है कि पुनर्वसन और पुन:निर्माण से पहले यह निर्णय हो ही जाना चाहिए कि हमे कौन सा विकास मॉडेल चाहिए? तकनीक को जब तक पहाड़ों के अनुकूल अनुकूलित ना किया जाय तो वह तकनीक लाभकारी सिद्ध नही होने वाली है। अत: निकटतम भविष्य में प्रथमिकता है कि जाना जाय कि पहाड़ों को किस तरह का विकास मॉडेल चाहिए?
उत्तराखंड ब्रिटिश काल के पश्चात दो विचारों से जूझ रहा है। मैदान जैसा विकास और पर्यावरण। अब तक मैदान जैसा विकास ने बाजी मारी हुयी थी किन्तु अब पर्यावरणवादिओं की अधिक चलेगी और फिर पहाड़ एक अनिश्चतता के भंवर में फंसेगा। वास्तव में उत्तराखंड के बन जाने के पश्चात भी भी उत्तराखंड के सर्वेसर्वा पहाड़ अनुसार विकास और पर्यावरण के मध्य सामंजस्य बिठाने में नाकमयाब सिद्ध हुए हैं .
पहाड़ों की त्रासदी रही है कि वहां स्वतन्त्रता से पहले और स्वतंत्रता के पश्चात भी उधार की सोच व उधार की रचनाधर्मिता का प्रादुर्भाव हे रहा है। पहाड़ों में पहाड़ अनुकूलित नई रचनाधर्मिता और नई फाड़ अनुकूलित सोच ने कभी जन्म ही नही लिया। यदि हमारे पुरखे भी ऐसे ही उधारचंद और नकलची होते तो शायद आज पहाड़ बचते ही नही। हमारे पुरखों ने पहाड़ों में रहने के लिए नई व पहाड़ लायक तकनीक अपनाई थी किन्तु हम नकलची होकर केवल तकनीक को पहाड़ों पर थोप रहे हैं। एक उदहारण है की सभी को पता है कि पहाड़ों में बिजली के खम्बो और तारों से बिजली में हर समय व्यवधान होगा किन्तु आज तक पहाड़ों के लायक बिजली के खम्बों व तारों के नये ढंग से इस्तेमाल व्यवस्था के बार में कुछ नही किया गया है। अब सही समय है जब पहाड़ अनुकूलित सोच को बढावा दिया जाय ना की आयातित सोच को। विपदा के बाद पुनर्वसन और पुनर्निर्माण में पहाड़ों के लायक पहाड़ी सोच का उपयोग हो।
आज से ही प्रत्येक उत्तराखंडी चाहे वह उत्तराखंड में में है अथवा प्रवास में है उत्तराखंड छवि सुधारने व नई सकारत्मक छवि निर्माण में भागीदार होना पड़ेगा।
एकता - उत्तराखंड ब्रैंडिंग के सभी भागीदारों को , समाज को, अधिकारियों व नेतृत्व को एकता में बंधना आवश्यक है। दिल्ली में बैठे सुषमा स्वराज, मनीष तिवारी जैसे राजनीति की रोटियाँ सकने वालों से हर भागीदार को बचना होगा। हमें अभी कोंग्रेस या भारतीय जनता पार्टी के झगड़े पचड़े में नही पड़ना है बल्कि उत्तराखंड को आगे लाने वाले सही रास्तों को देखना है । हमे सामाजिक दबाब बढ़ा कर सुषमा स्वराजों या मनीष तिवारियों को बयानबाजी से रोकना होगा। आज सभी स्टार पर उत्त्रखंदियों में एकता आवश्यक है और राजनैतिक बयानबाजी उत्तराखंड की छवि को और भी धूमिल करेगी। सुषमा स्वराजों या मनीष तिवारियों को बयानबाजी का विरोध किया जाय। इनके लिए मुर्दे राजनैतिक पैतरेबाजी के माध्यम हैं।
सभी भागीदारों को एकता की आवश्यकता ही नही अपितु एकता प्रदर्शन भी आवश्यक है।
विवधता को अंगीकार करना - हमें आज विविधता को शीघ्र ही स्वीकार करने में लाभ है। विविधता हमारी पहचान बननी चाहिए। विविधता को एकता का सूत्र बनाने से उत्तराखंड की छवि सुधरेगी
पहल करने में आगे आना - हमे अब कदम उठाने में आगे आने की शिरकत करनी होगी तभी उत्तराखंड की छवि में बढ़ोतरी होगी।
प्रयोग करने में आगे आना - पुननिर्माण में कई नये प्रयोग करने होंगे और हमे नये प्रयोग करने वालों के साथ देना ही होगा।
भागीदारों में उत्तरदायित्व व कर्तव्य वोध - उत्तराखंड छवि विकास के सभी भागीदारों व प्रत्येक स्तर की नेतृत्व वर्ग को अपने उत्तरदायित्व का अहसास होना आवश्यक है। उत्तराखंड का पुनर्निर्माण केवल सरकार का उत्तरदायित्व नही है अपितु उत्तराखंड से जुड़े हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है। कर्तव्य वोध आज एक अहम् आवश्यकता है।
दूरदृष्टि एवं रणनीति - आज प्रत्येक भागीदार को दूरगामी परिणामो को मद्येनजर अपनी रणनीति बनानी होगी तभी पुननिर्माण भविष्य हेतु लाभदायी होगा। उत्तराखंडियों को आज एक दूसरे के विचारों को सुनना, उन विचारों को सम्मान देना और फिर सही विचार का चुनाव करना प्रथमिकता है।
अन्तर्विरोध और एकता में सामजस्य - अब उत्तराखंड को अन्तर्विरोध की समस्या से पहले से अधिक अधिकजूझना पड़ेगा। किन्तु सभी को ध्यान रखना होगा की अन्तर्विरोध एकता में रोड़े ना अटकाए। इसके लिए सामाजिक दबाब अधिक कारगर सिद्ध होता है।
जटिलता और सरलता - पुननिर्माण और छवि सुधारण कई जटिलताओं जैसे जटिल प्रश्न को लाता है। सभी भागीदारों को सरलता की और ध्यान देना ही होगा।
सूचनाओं का आदान प्रदान - छवि पुनर्निर्माण व पुनर्विकास में सरकार , सार्वजनिक संस्थाओं और समाज के मध्य सूचनाओं के आदान प्रदान में गति वृद्धि एक परम आवश्यकता है।
आज आवश्यकता है कि उत्तराखंड से जुडा हर व्यक्ति अपना उत्तरदायित्व समझे और केवल वह कार्य करे जो उत्तराखंड पुनर्निर्माण व छवि सुधारण में सहायक सिद्ध हो। आज समय आ गया है कि उन तत्वों का विरोध किया जाय जो श्मशान में मुर्दों को वोट मांगने का माध्यम समझ रहे हैं। आज एकता की सबसे अधिक आवश्यकता है और दूर दृष्टी, सामंजस्य , सूचनाओं का तेजी से आदान प्रदान जैसे महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिया जाय।
Copyright@ Bhishma Kukreti 2/7/2013
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments