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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, May 1, 2014

कामगार दिवस या श्रमिक दिवस याने शरमाणो दिन

विचार विमर्श -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
                   एक मई , सन 1923 जब भारत मा चेनाइ हाई कोर्टक समिण हिन्दुस्तान लेबर किसान पार्टीक नेता सिंगरावेलु चेटियारन लाल झंडा फ़ैरो छौ तो भारत मा सही माने मा श्रमिकों तैं एक पहचान दीणो कोशिस ह्वे छे।  मई दिवस भारत मा श्रमिकों की भागीदारी की तरफदारी  कु    दिवस छौ।  कबि भारत मा मई दिवस पूंजीवादी सिस्टम समर्थित साम्रज्यवादी व्यवस्था तैं खतम करणो बान कसम खाणो दिन छौ।  अब मई दिवस छुट्टी मनाणो दिन च। 
            कबि श्रमिक दिवस का दिन श्रमिक सूपिन दिखद छा कि एक दिन इन आल कि व्यवस्था मा श्रमिकुं भागीदारी होलि।  आज श्रमिकुं नेता सुपिन दिखुद भाड़ मा जाउ  श्रमिकुं भागीदारी, म्यार त सुपिन च कब मि तैं कुर्सी मीलली। 
                     कबि श्रमिकुं नेता श्रमिकुं मादे उपज्यां नेता हूंद छा , अचकाल त नेताओं का बेटा  अपण अर अपण बुबाकी राजनैतिक साम्राज्य रक्षा हेतु भौत सा श्रमिक यूनियनुं नेता बण्या छन।  मुंबई अर कोंकण मा महाराष्ट्रॉ मंत्री नारायण राणे कु बेटा रिक्शा यूनियन अर अन्य यूनियनुं नेता बण्यु च तो समजे सक्यांद कि श्रमिक आंदोलन की क्या कुगति हूणि होलि। 
                 भारत मा श्रमिक आंदोलन तैं श्रमिक लाभ का वास्ता प्रयोग नि ह्वे अपितु अपड़ी विचारधारा या अपड़ी धौंस , अपणी सरकार बचाणो बान ही श्रमिक आंदोलन करे गेन।  एक उदाहरण च।  मुंबई मा कम्युनिस्ट पार्टीक यूनियनुं तै नेस्ताबूद करणो बान कॉंग्रेसी नेता एसके पाटिल या वसंत दादा पाटिलन  शिव सेना तैं परिश्रय दे।  अर फिर शिवसेना श्रमिक यूनियनुं तैं खतम करणो बान दत्ता सावंत सरीखा नेताओं तैं परिश्रय मील।  याने कि श्रमिक आंदोलन श्रमिकुं कमर तोड़णो बान प्रयोग ह्वेन। 
कम्युनिस्ट पार्टयूंक त बिचौलियापन ही श्रमिक आंदोलन खतम करणो माध्यम बौण। 
                   श्रमिक अर प्रोडक्सन यि द्वी एक दुसरो पूरक छन।  एक बि खतम ह्वे तो दुसर अपणे आप खतम ह्वे जांद। 
                   पश्चिम बंगाल या केरल मा कम्युनिस्टुं शासन राइ   अर कम्युनिस्ट सरकार श्रमिक आंदोलन कु ढोल पिटणि राइ किन्तु उख  उद्योग खतम हूंद गेन अर श्रमिकुं मा केवल लाल झंडा रै गे। 
श्रमिक आंदोलन पर द्वी तरफा मार पोड़।  कम्युनिस्ट असल मा प्रोडक्सन या फैक्ट्री विरोधी ह्वे गेन अर कॉंग्रेस पार्टी कम्यनिस्ट श्रमिक युनिअनु विरुद्ध ह्वे गे।  याने कि श्रमिक आंदोलन तथाकथित विचारधाराओं बीच पिसे गे। 
प्रोडक्सन बढांण अर श्रमिक आंदोलन जब तलक दगड़ी नि हिटल तब तक रोज मई दिवस मनै ल्यावो कुछ बि नि ह्वे सकुद। 
                  यूनियन लीडर केवल लीडरी मा व्यस्त रैन ऊंन उत्पादन वृद्धि  अर व्यापार वृद्धि तैं अपण दुसमन मान।  इन मा जब उद्यम ही चौपट ह्वे जावन तो वो श्रमिक आंदोलन।  मध्य मार्ग ही श्रमिक आंदोलन तै संबल दे सकुद छौ पर जै देस मा श्रमिक आंदोलन कुर्सी पाणो  माध्यम  माने जाउ त श्रमिक आंदोलनन खड्डा मा नि जाण त कख जाण ?
                 अति -पूँजीवाद व्यवस्था पर लगाम लगाणो साधन बि च श्रमिक आंदोलन।  किन्तु अति -श्रमिक आंदोलन बि खतरनाक च।  याने कि मध्यमार्ग ही सही मार्ग च।
                श्रमिक लाभ अर उत्पादन वृद्धि ही श्रमिक आंदोलन की धुरी च।  आज ग्लोबलाइजेसन का बगत श्रमिक आंदोलन की अधिक आवश्यकता च किलैकि ग्लोबलिाजेसन कु नियम च द रिच विल बी रिचर ऐंड पुअर विल बि पुअरर।. याने कि आज राष्ट्रीय संसाधनु पर केवल आठ दस लोगुं अधिकार तै रुकणो वास्ता श्रमिक आंदोलन आवश्यक च , किन्तु जब श्रमिक आंदोलन भटिक जाव तो फिर मई दिवस पर केवल झंडा ही फैराये जालु। झंडा महत्वपूर्ण ह्वे गे अर श्रमिक पैथर ह्वे गेन। 


Copyright@  Bhishma Kukreti  1/5//2014 

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनेताओं द्वारा अभद्र गाली पर हास्य -व्यंग्य    श्रृंखला जारी  

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