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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 4, 2014

लोकसभा चुनाव में गढ़वाल में जनता की क्या राय है ?

हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
मीन लेख तयार करण छौ कि 2014 कु लोकसभा चुनाव मा गढ़वाळम जनता क्या सुचणि च।  मुंबई मा बैठिक फोन से सब सूचना मील जांद तो अब मुंबई से जनता की राय पता लगाण सरल ह्वे गे। 
मीन अपण गां मा भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान तैं फोन पर पूछ ," प्रधान काका समनिन ! मि भीषम बुलणु छौ। "
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- बोल ! क्वा पुंगड़ी बिचणाई ?"
मि -काका पुंगड़ि नि बिचणाई। "
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- हैं ? प्रवास्युंक फोन इ पुंगड़ि बिचणो आंदन।  अच्छा बोल क्या काम च ?
मि - वु लोकसभा चुनावुं क्या हाल छन ?
म्यार इन पुछ्ण छौ कि द्वी मिनट तक भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान काका इन इन गाळी दीणा रैन कि यदि बीसी खंडूरी अर हड़क सिंग रावत सुणदा तो ऊंन सद्यानौ कुण चुनाव लड़न छोड़ि दीण छौ।
अंत मा भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधानन ब्वाल - म्वाड मोरल ऊंक ,ऐंसू चुनाव मा उठ्यां ले छन भोळ नि रैन चुनाव लड़न लैक। 
मि -काका ह्वे क्या च ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- अरे सरा क्षेत्र मा नाक कटि गे। 
मि -नाक कटि गे ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- हाँ मुख दिखाण लैक नि छौं। 
मि - ह्वाइ क्या च ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान - अरे इन पूछ कि यूँ बदज़ातुं कारण क्या नि ह्वाइ। 
मि - क्या ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- बेटीक मांगण माघम  करण छे त मीन स्वाच जब बैशाखम चुनाव आणा इ छन तो मीन बेटीक मांगण बैशाखम रखी दे। 
मि - तो ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- तो क्या ? अब पैलाक तरां त छ ना कि मेमानो तैं पूड़ी परसाद खलाओ अर मांगण -सगाई करी द्यावो 
मि -हाँ अब त सगाई बि ब्यावो तरां हूंद।
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- अब  ब्वोलाक तर्फ़ान बारा आदिम पौण छा अर म्यार तरफ बिटेन बीसेक आदिम छा।  तो बतीस आदिम्युं कुण बारा बोतल व्हिस्की काफी छे। 
मि - तो कोटद्वार बिटेन मंगै होलि ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- सूण त सै यूँ हरामियूंन मि तैं कन धोका दे। 
मि -कौं हरामियूंन ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- और कु , कॉंग्रेसी अर भाजपा वाळुन  धोका कौर दे 
मि - सगाई मा भाजपा अर कॉंग्रेसी बि बुलायां छा क्या ?
भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- अरे नै भै।  कॉंग्रेसी एजेंटन बोलि छौ कि दस बोतल व्हिस्की सगाई दिन भेजी द्याल अर भाजपा का एजेंटन बि बोल छौ कि दस बोतल सगाई दिन पौंछ जाल। 
मि - तो ?
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान-तो क्या ! मेमान ऐ गे छा , बागदान ह्वे गे छौ , चखणा तयार छौ पर कै हरामीक शराब नि पौंछ।   
मि - अच्छा ?
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- रात नौ बजी गे पर व्हिस्की नि पौंछ।  मि द्वी पार्टी क एजेंटो तै फोन करद करद थकी ग्यों।  दुयुंक उत्तर छौ व्हिस्की बोतल पौंछण वाळ छन।
मि - त व्हिस्की पौंच च कि ना ?
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- कख दस बजी तक नि पौंछ त फिर उ उदय रामक नौनु नी च रिटायर्ड फौजी।  वैमाँगन पांच बोतल पांच पांच सौ रुपया मा खरीद तो इज्जत बची गे।  वैमा स्टॉक नि रौंद छौ त मी कखि जोग नि रौंद छौ।
मि - पर सगाई तो भली भाँती तरां से निभी गे ना ?
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- अरे पर क्षेत्र मा बेज्जती त ह्वे गे ना ?
मि - क्यांक बेज्जती ?
 भरोसा काका उर्फ़ ग्राम प्रधान- कि प्रधान ह्वेक अर चुनावुं बगत प्रधान तैं सगाई मा अपण पैसोंन शराब खरीदण पोड़। 
मि - हाँ या बात त बेज्जती की ही च कि प्रधान ह्वेक बि चुनावs  टाइम पर शराब खरीदण पोड। 
भौत  देर तलक काका भाजपा अर कॉंग्रेस तैं गाळी दीणु राइ।  कै तरां से मीन पिंड छुड़ाई। 
मीन गां मा भीम सिंग दादा तैं फोन लगाई कि असल बात क्या च। 
भीम सिंग - अरे बात क्या च बल  भरोसा काका हर चुनाव माँ कॉंग्रेस अर भाजपा दुयुंक  दारु घटकै जांद छौ अर वोट उक्रांद तैं दिलांदु छौ तो ये बगत कॉंग्रेसी एजेंट अर भाजपा एजेंटन भरोसा काका से बदला ले आल।


Copyright@  Bhishma Kukreti  5 /5//2014 

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनेताओं द्वारा अभद्र गाली पर हास्य -व्यंग्य    श्रृंखला जारी  

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