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बुड़ाकोटी जी ! प्रवासी बकवास नहीं करते , घड़ियाली आंसू नहीं बहाते
घपरोळ ::: भीष्म कुकरेती
संजय बुड़ाकोटी जीन फेसबुक मा पोस्ट्याई -बस बहुत हो चुका सोशल मीडिया पर पहाड़ के लिये आंसू बहाना, पलायन पर रोना धोना।
या तो खुद पहाड़ पर जाओ बसो और पलायन को रोको या फिर चुपचाप अपने बिलों में दुबके रहो।"
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म्यार बुलण च-
1/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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जरा प्रवास्युं तिसरी पीढ़ी तैं मुंबई मा पूछो - औ लम्बी छुट्टि पड़ीं छन तो ड्यार जाणा ह्वेला हैं ?
तिसर पीढ़ीक प्रवासी का जबाब हूंद - नै नै यार इथगा पैसा कखन लाण जु घौर जये जावो।
या यीं तिसरी पीढ़ीक पचास सालौ बुड्याक जबाब हूंद - अरे ड्यार जाणो ज्यु तो बुल्याणु त च , छुट्टि बि बचीं छन अर एलटीसी बि मिलदी पर उख ड्यारम रौण कख च ? सब टुटि -टटी गेन कूड़। एलटीसी अर छुट्टि लैप्स नि हो तो मि पंद्रा दिनों कुण रूरल साउथ जाणु छौं।
जी हाँ प्रवासी की तिसर क्या चौथी पीढ़ी अबि बि गढ़वाळी गांव तै घौर मानिक चलदी अर तब बि गांवुं मा कूड़ खंद्वार हूणा छन। मजबूरी च तो क्या करे जावो। जी एक मजबूरी हो तो बताए जाव।
मुनिवर बी. मोहन नेगी जीन एक कविता ल्याख बल गांवुं मा मजदूरी वास्ता नेपाली अर बिहारी ऐ गेन अर प्रवासी दिल्ली -मुंबई मा टैक्सी चलाणा छन। पर यदि प्रवासी दिल्ली मुंबई मा टैक्सी चलाणु च तो वो अपण बच्चों का भविष्य का खातिर टैक्सी चलाणु च ना कि अपण पुटुक भरणो वास्ता। वै प्रवासी तैं बी. मोहन नेगी जन गढ़वऴयूं आप बीती पता च। प्रवासी तैं पता च बल बी. मोहन नेगी जीन ताजिंदगी गढ़वाळम पोस्ट ऑफिसम नौकरी कार अर अंत मा अपण बच्चों तैं नौकरी करणो दिल्ली भिजण पोड़। प्रवासी जणदु च बल जब आखिरैं दिल्ली -मुंबई मा इ नौकरी मिलण त फिर भोळ किलै आजि दिल्ली -मुंबई चले जावो। उख से आस नी च अर मुंबई से आस च। तबि त बिचारो इख हडक तुडणु च। प्रवासी बि जणदु च बल उख मनरेगा से फोकट मा खये सक्यांद च किन्तु उ तो भविष्य का खातिर आज अधिक कठिन परिश्रम करणु च। ठीक च दिल्ली मुंबई मा आज अन्ध्यरु च पर इख भोळ अज्यळो चिट्टी पूर्णमासी की उम्मेद च। पर गढ़वाळ मा आज बि कृष्ण पक्ष की दसमी स च अर बाकबुल्या बाक बुलणु च बल भोळ औंसन आण।
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जख मीडिया या ऑफ़लाइन माध्यमुं सवाल च जांक जिकर संजय बुड़ाकोटी जीन कार तो बुड़ाकोटी जी जरा अपण आस पास हेरन त सै तो पाला कि गढ़वाळ का शिक्षा विकास या अन्य आर्थिक विकास मा प्रवास्युं को 80 % हाथ मीलल। अधिसंख्य स्कूल तो प्रवास्युं की सोच अर कर्मों से ही खुलिन। मन्योडर इकोनॉमी तो आज बि गढ़वाळ की रीढ़ की हड्डी च। छ कि ना बुड़ाकोटी जी ?
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जरा देहरादून का गुरुराम राय स्कूलों इतिहास बाँचो तो सै। गढ़वाळ की उच्च शिक्षा मा गुरु राम ऐज्युकेसन ट्रस्ट कु भौत बड़ो हाथ च। बुड़ाकोटी जी ! पता च ? आप तै ? कि ये ट्रस्ट का संचालक कु छया ? खमण (डबरालस्यूं ) का श्री श्रीधर कुकरेती याने महंत इंदिरेश चरण दास जी। श्रीधर कुकरेती एक प्रवासी ही छौ (तब देहरादून सहारनपुर खण्ड मा आंद छौ ) । तो प्रवासी की भावना तै आप यूं शब्दुं से " फिर चुपचाप अपने बिलों में दुबके रहो" दुत्कारणा छा ?
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कै बि कार्य करणो वास्ता पैल भावना पैदा हूंद या भावना चएंदि , फिर वैचारिक विश्लेषण चएंदी अर अंत मा कार्य सम्पादन की योजना अर फिर कार्य की पौ धरे जांद। तो कार्य से सफल हूण पैल वैचारिक विमर्श आवश्यक च। यदि प्रवासी वैचारिक मंथन करणा छन तो कौन सा गुनाह ह्वे गे भै ?
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उत्तराखंड आंदोलन मा क्या प्रवास्युं भूमिका कम महत्वपूर्ण छे ? यदि प्रवासी वैचारिक स्तर पर लेख आदि नि छपांदा या घौर का लोगुं से विचार विमर्श नि करदा तो क्या उत्तराखंड आंदोलन चलदो क्या ? 'हिलांस' मासिक पत्रिका का उत्तराखंड आंदोलन अर स्थानीय भाषा आंदोलन मां महत्वपूर्ण योगदान च। अर हिलांस मुंबई से प्रकाशित हूंदी छे अर हिलांस का करता धर्ता एक प्रवासी ही छ्या - स्व अर्जुन सिंह गुसाईं जी ।
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भाषा की बात आई तो मि बतै द्यूं कि शुरवात से इ गढ़वाली साहित्य विकास मा सर्वाधिक योगदान प्रवास्युं कु इ च। पंजाब का सुशील बुड़ाकोटी जी से पूछी ल्यावो।
हाँ आप तै लगल कि प्रवासी खाली उपदेस दिंदेर बण्या छन। क्वी बि प्रवासी बेबस , परबसी नि हूण चांदो अर उ मजबूर्युं बस गांव म नि बसि सकणु च तो क्या वै परबसी, बेबस प्रवासी तै अधिकार बि नी च कि वु पलायन आदि समस्याओं की छ्वीं लगावो ? यू मानवीय अधिकार त बिचारा प्रवासी से नी लूंठो जी !
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अर वैचारिक विमर्श का वास्ता क्वी हद्द या सीमा नि होंदी। विचार अच्छा ह्वावन तो टिपे ही जांदन। प्रवासी वास्तव मा गढ़वाल का , अपण पट्टी का , अपण गांवका सचमुच मा विकास चांदु अर उखमा वैकी गाणी -स्याणी पर अविश्वास कतै नि करे सक्यांद।
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फिर एक विचार का नाम आपन सूणि होलु - क्रॉस फर्टिलाइजेशन। याने दुसर जाति का साथ मिलण अर विचारूं मा बि क्रॉस फर्टिलाजेसन हूंद। यदि बेबस, परबसि , परभक्षी प्रवासी विचार दीणु च तो ऊँ विचारूं पर मनन कर ल्यावो , विचार सही छन तो अपणै ल्यावो , नि छन तो रण द्यावो। कैंपणि बोल च बल -बुढ़िया भीख नि दीणाइ त नि दे पण अपण कुत्ता तै त संभाळ। आप प्रवास्युं सलाह नि मानो किन्तु इन त नि ब्वालो - अच्छा ! अब हम तै दिल्ली -मुंबई वाळ समझाल !
1/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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