घुघती कविता की रिकॉर्ड प्रशंसा
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दो तीन दिन पहले मैंने जयपाल सिंह रावत 'छिपडु दा ' की कविता घुघती फेसबुक में पोस्ट की बहुत दिनों बाद किसी कविता को ऐसा प्रासाद व प्रशंसा मिली है। पाठकों ने पढ़ा है
इसका अर्थ है यदि कविता में कवित्व वाला दम है और कविता को बहुतायत पाठकों तक पंहुचाया जाय तो गढ़वाली को पाठक मिलेंगे , मिलेंगे अवश्य मिलेंगे।
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घुघुती : प्रतीकात्मक कविता
कवि- जय पाल सिंह रावत (1954 ग्राम मालई। चौंदकोट , पौड़ी गढ़वाल )
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एक डाळम
घघुती बैठीं छे
छिपडु दादा
छैलम बैठी ग्याई
बल !
हे घघुती !
भूलि ह्या
जरिस
गीत लगा दे
त्यारा बोल
मिठा छिंई
मि थक्युं छौं
मयारू मन
ब्यळमा दे I
घुघुती न ब्वाल
भैजी!
ओ ज़माना गाया
जब गीत लगदा छाया I
मित
अंगरेजी
स्कूलम पढयूँ छौं
सटुल्यूं कि स्कूलमा
टीचर लग्युं छौं
तुम खुणै मि
सुदि हुंयूं छौं ?
एक डाळम
घघुती बैठीं छे
छिपडु दादा
छैलम बैठी ग्याई
बल !
हे घघुती !
भूलि ह्या
जरिस
गीत लगा दे
त्यारा बोल
मिठा छिंई
मि थक्युं छौं
मयारू मन
ब्यळमा दे I
घुघुती न ब्वाल
भैजी!
ओ ज़माना गाया
जब गीत लगदा छाया I
मित
अंगरेजी
स्कूलम पढयूँ छौं
सटुल्यूं कि स्कूलमा
टीचर लग्युं छौं
तुम खुणै मि
सुदि हुंयूं छौं ?
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