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एक स्तम्भकारौ रोजनामचा !
मयळ ह्वेकि अपण छ्वीं ::: भीष्म कुकरेती
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रोजौ स्तम्भ , डेली कॉलम ! दैनिक स्तम्भ अर वी बि गढ़वळि मा ? जी हाँ मि गढ़वळि मा दैनिक स्तम्भ लिखणो बात करणु छौं। जी टाइम्स ऑफ इण्डिया मा डेली कॉलम लिखणो छ्वीं त सबि लगांदन किलैकि लिख्वार तैं लाखों पाठक मिल्दन , दुनिया भर से प्रशंसा मिल्दि अर बैंक बैलेंस अलग से बढ़द। किन्तु जैं भाषा मा माध्यम -0 , पाठक -0 , भाषा से प्रेम का पता नी हो तो उख दैनिक स्तम्भ की छ्वीं लगाण याने बिरळो औंरु या बेडु -तिमलौ फूल खुज्याण जन बात च। अर लिखण बी ? अपण बाड़ी पळयो खैक ही लिख्वार गढ़वळि लिख्दु। हरेक गढ़वळि लिख्वार , रचनाकार , साहित्यकार अपण बच्चों दूध को बजट काटिक लिखुद।
पर यु सत्य च कि जनि देहरादून से दैनिक गढ़ ऐना प्रकाशन शुरू ह्वे अर मि तै पता चौल तो मीन रोजाना स्तम्भ लिखण शुरू कौर अर रोज एक लेख भिजण शुरू कौर दे। जी भाषा विकास को जजबा इ च कि गढ़वळि लिखाड़ अपण गेड़िन किताब छपवांद अर फिर मुफ्त मा बाँटदा बि छन। मि वैइ जजबा से 1989 -1991 तक गढ़वळि मा दैनिक स्तम्भ लिखुद छौ अर अपण गेड़ीक पैसा से लिफाफा खरीदिक लेख देहरादून भिजद छौ। जथगा बि गढ़वळि साहित्यकार छन इनि जजबा लेकि अपण गढ़वळि भाषा विकास का प्रति उत्तरदायित्व , निभाणम लग्यां छन। सब का सब !
डेली कॉलम अर गढ़वळि मा ? जी हाँ गढ़वळि मा दैनिक स्तंम्भ अर मीन तकरीबन रोज व्यंग्य चित्र बि 'गढ़ ऐना ' मा छपवैन। यु बि एक डेली कॉलम ही तो छौ। नि छौ ?
जन कि उम्मीद छै 'गढ़ ऐना ' बंद ह्वे गे अर मेरु दैनिक स्तंभ लिखण बि बंद ह्वे गे। हम गढ़वळि लिख्वारुं तै पता च कि गढ़वळिम पत्र -पत्रिका प्रकाशन याने अपण बच्चों पेट काटिक या दोस्तुं जेब से पैसा लाण !
जनि इंटरनेट शुरू ह्वे , मीन मैनेजमेंट सोशल मीडिया छोड़िक गढ़वळि सोसल मीडिया मा कदम धार , मि तै देवनागरी टाइप करण क्या आइ कि मीन फिर से गढ़वळि मा डेली स्तम्भ लिखण शुरू कर दे।
जी गढ़वळि मा लिखण कठण च, औसंदौ काज च , पर हम गढ़वळि साहित्यकारों जजबा , भावना अर राड़ का समिण क्वी बि कठिनाई मुख नि उठै सकदी। कठिनाई दम तोड़ी दींदि।
रोजाना स्तम्भ या कविता विशेषकर गढ़वळिम लिखण मा सबसे बड़ी रुकौट विषय की च। समाज छुटु च , हमर सामाजिक ढांचा मा क्वी इथगा बड़ो रोमांचकारी व्यवस्था बि नी च तो प्रत्येक विषय पर लिखण अनावश्यक सि ह्वे जांद।
फिर गढ़वळि गढ़वाल से लेकि अमेरिका , ओस्ट्रेलिया , ब्रिटेन तक सब जगा फुळयां छन तो हरेक विषय सबि पाठकों तै रास नि आंद। यदि मि मुंबई की ख़ुशी -नाखुशी गढ़वळि मा लेखुं तो ह्वे सकद च म्यार गांवक रूप चंद जखमोला भुला बि आकर्षित नि हो।
एक हैंकि समस्या च बल मानकीकृत भाषा की। भौत दैं मि तै बि दुसर मुल्को ठेट गढ़वळि गद्य पढ्न मा औसंद आंद पर यदि अभ्यास करें जावो तो हम भोटिया भाषा बि पढ़ सकदां।
जख तक फेसबुक जन सोशल मीडिया का प्रश्न च -दसियों कवि , द्वी -चार गद्यकार जबरदस्त ढंग से योगदान दीणा छन अर यी साहित्यकार छन जु हम वरिष्ठ गढ़वळि साहित्यकारों तै भरवस दिलाणा छन बल कुछ बी हो गढ़वळि साहित्य रचणो जजबा अमर रालो।
बस एक जजबा पाठकों से बि चयेंद बल चाहे एक लाइन /पंगत ही सै गढ़वळि रोज सोसल मीडिया मा पढ़दा जावो।
13/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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