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पचास साल से खोये दाहिने हाथ की खोज ! सहायता कीजिये ना !
चटकताळ, चमकताळ, लाचार ::: भीष्म कुकरेती
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स्यु -ये क्या छे अजीब सि भौण मा रुणु ? या भौण मैदानी मनिखों भौण त नी च। इख रूण बि हो त सलीका से रूण चयेंद - वीप विद ऐन एटिकेट।
वु -हूँ ! त्यार बि दै हाथ हर्चि जा तब दिखुल मि कि कन एटिकेट फैटिकेट हूंद धौं।
स्यु -च -चु-चु ! ए ! हे कथगा दिन हुयां हाथ हरच्याँ ?
वु -पचास साल।
स्यु -पचास साल ?
वु -हाँ पचास साल ह्वे गेन म्यार दैं हाथ हरच्याँ।
स्यु - तो कामधाम ?
वु -ख़ाक हूण कामधाम। द्वी हाथ जरूरी हूंदन जिमदारो करणो कुण। पुंगड़ी बांजि -कूड़ उजाड़।
स्यु - तो खर्च पाणी ?
वु - मनरेगा फनरेगा जन फोकटिया स्किमुं से कुछ तो मिलि जांद कि ना ? कबि कबि त एक पव्वा दारु इंतजाम बि।
स्यु -अर तू अब खुज्याणि छे हरच्युं दैं हाथ ?
वु - ढूंढ मा त मि पचास साल से ही छौं।
स्यु -पटवारी मा बि गे ?
वु -हाँ अर उख जैकी मेरी एक पुंगड़ी गे। बुरळ पड़ी जैन इन नीतियों पर।
स्यु -कानूनगो ?
वु -उख द्वी पुंगड़ी खेत ह्वेन। भसम बि नी हूणि या कुव्यवस्था।
स्यु - तो त्वै तै और मथि जाण चयेणु छौ।
वु -तीन पुंगड़ी जाणो बाद हिम्मत नि ह्वे। आग लग जैनि यीं करड़ी लालफीताशाही पर ,आजक बिखोत द्याख भोळक मकरैनि देखि भैरों या लालफीताशाही !
स्यु -तो कै डॉन मा जांदी। अजकाल पुलिस फुलिस कि जगा डॉन भाई सस्ता इ नि हूंदन बलकणम प्रमाणिक बि हूंदन।
वु -मि गढ़वळि छौं। अबि बि हम तै न्याय दिबता ग्विल्ल -गोरिल पर विश्वास च कि कै दिन त रात खूलली।
स्यु -गढ़वाळी छे तो त्वे तै त देहरादून जाण छौ ?
वु -ड्यारा डूण बि कांड लगै छौ पर उक बि गुर्रा लग्यां छन। बज्जर पड्युं च वै डेराडूण मा।
स्यु -कनो ?
वु -बारा पंद्रा साल से उख द्वी मदमस्त , पागल सांडूं भयंकर, बिकराल , , अनन्त समौ तक चलण वळि लड़ै चलणि च त क्वी सुणन वळ इ नि छन उख। कीड़ पोड्यां छन तख।
स्यु -राजधानी च तो भी ?
वु -हाँ सरा उत्तराखंडs अधिकारी , लोक साडुंक मलयुद्ध मा मग्न छन तो क्वी सुणवाइ नी।
स्यु -फिर तीन फरियाद तो लगाण छे ?
वु -लगाई छे ना।
स्यु -क्या जबाब मील ?
वु -क्या मिलण छौ जन पटवरिन जबाब दे छौ ऊनि जबाब मील कि बल - अपण बै हथ बि कटै दे जांसे कि समीकरण बरोबर ह्वे जाल। बदखोर , हरामी साल्ले !
स्यु - हैं ? देरादूण वळुन ब्वाल बल दैं हाथ खुजणो जगा समीकरण ठीक करणो कुण बैं हाथ बि कटै दे ?
वु -हाँ। वु बुना छन कि किलै छे पचास साल बिटेन हरच्युं हाथ तै खुज्याणो ?
स्यु -फिर ?
वु -फिर मि दिल्ली औं।
स्यु -तो ?
वु -त ऊंन बोली बल जब तक आर्थिक सुधार पूरा नि ह्वाल हम इन छुट -मुट समस्यावों मा समय बर्बाद नि कौर सकदां। काणा मादा !
स्यु -तो ?
वु -मि अपण दैं हाथ जु काम की तलाश मा कखि हर्चि गे छौ वै दैं हाथ की तलास मा मुंबई औं।
स्यु -त इखाक लोग बड़ा सहकारिता वळ छन। ऊंन त त्यार दैं हथ तलासणम मुक़्क़मल सहायता कौर होली ?
वु -केक सहायता ? कैमा बि एक छटांग भरौ समौ नी च , सब भगणा छन बस अपण सुपिन पूर करणो हबस मा भागणा छन।
स्यु -तो फिर ?
वु -त मि ब्याळि अमेरिकन काउंसिलिएट तै मीलु। भौत मयळ छन , बड़ा मददगार छन। सचमुच मा।
स्यु -अमेरिकीन क्या ब्वाल ?
वु -वैन ब्वाल बल तू अपण ब्रेन हम तै दे दी तो हम सौ प्रतिशत त्यार दैं हथ खोजीक दे द्यूंला। दगड़म प्रीमियम इन्स्युरेंस कम्पनी का बॉन्ड बि दे ऊन।
स्यु -अच्छा तो अब क्यांकण रूणी छे ? इथगा जोर से।
वु -वैन ब्वाल बल तू अपण ब्रेन हम तै दे दे अर हम त्यार दैं हथ खोजीक दे द्योला।
स्यु -तो तीन ब्रेन ड्रेन कौर च कि ना ?
वु -हाँ स्यु भितर जैक मि ब्रेन देकि त आणु छौं ।
स्यु - तो अब रुणैं बात क्या च ?
वु - जब बिटेन म्यार ब्रेन ड्रेन ह्वे मि तै लगणु इ नी कि म्यार सरैल जीवित बि च। बस केवल आवाज आणि च अर बकै सरैल सुन्न पड्युं च।
स्यु - यांकुणि बुदन बल - मरज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की ।
13/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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