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आपको कौन सा रिंकल रिलीजर चाहिए ?
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चबोड़ , चखन्यौ , चचराट ::: भीष्म कुकरेती
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उन सब्युं तैं रिंकल रिलीजर का बाराम जणन जरूरी ह्वे गे।
सिलवट , सिकुड़न याने रिंकल्स मनुष्य कुण सद्यनि बिटेन एक समस्या , एक शिकवा एक प्रोबलम राई।
जख तलक कपड़ा , झुल्लौं पर सिलवटुं सवाल च म्यार ऐतिहासिक ज्ञानौ हिसाब से गुर्ख्याणी तक कपड़औँ पर सिलवट क्वी समस्या नि छे। तब झल्लौं पर सिलवट सभ्य लोगुं निसाणी छे। उ त अंग्रेजुंन हम तै जागृत कार बल कपड़ों पर सिलवट एक असभ्य मनिखौ निसाणी च तब जैका हमर चेतना जाग कि सिलवट चाहे कपडों कु ह्वावु या मुख कु द्वी असभ्यता का द्योतक छन। जब तलक प्रॉक्टर गैंबल, यूनी लीवर आदि कम्पनी नि ऐ छया तब तक कपड़ों पर सिलवट अर मुख पर झुर्री बड़ लोगुं निसाणि छे।
इख तलक कि अंग्रेजुं समौ पर बि थोकदार जी , भरदार जी अर कल्यो लिजाणो श्रमिकदार जी - सब्युंका कपड़ों मा सिलवट हूंदी छे अर तब सिलवट आर्थिक स्थिति भांपणो , मापणो , नापणो पैमाना नि छौ। अर तब त मूंजी , सिलवट , चुनवट जूं आदि का वास्ता निवासस्थान बि छौ। तब हम अधिक अहिंसावादी छा तो कपड़ों मा मूंजी रखे जांद छा कि जूं , मक्वड़ या उप्पन आदियुं तैं पाळणो जगा दिए जावो। अर मानेका गांधी तो आज बि बुलणि रौंदी कि हिमाचल -उत्तराखंड का गांवों मा सुंगर सुरक्षा का साथ साथ जूं पालन पर बि ध्यान दीण आवश्यक च। वैदिन मानेका गांधी अर स्वास्थ्य मंत्री नड्डा मा भयंकर वाक्युद्ध ह्वे गे। मानेका गांधीक बुलण छौ कि हिमाचल -उत्तराखंड का लोगुं तै केवल नडियादार सुलार पैरण चयेंद अर सात दिन तक एकी सुलार पैर्युं रखण चयेंद , जांसेकि जूं फलन -फूलन। जब कि नड्डा कु बुलण छौ कि रोज झुल्ला धुये जाण चयेंद जांसे कि प्रॉक्टर गैंबल, यूनी लीवर आदि कम्पनी लाभ कमावन अर भारत मा FDI अधिक आवो।
तब सब ठीक छौ जब सिलवट अर झुर्री समस्या नि छे। किन्तु अंग्रेजुं आण से गांवुं मा बि कोल आइरन -इस्तरी पौंछि गे वाया सिपै दादा। अर कपड़ों पर सिलवट -चिनवट असभ्यता कि निसाणी ह्वे गे। तब ब्यौ काजुं मा मूछुँ मा चौंळू टींड ना अपितु सिलवट विहीन कपड़ा मातवरै निसाणी बण गे।
बुल्दन बल बड़ा गौड़ घास खावन अर छुट बछर थुंथर चाटन। गांवुं मा क्या शहरूं मा बि जौमा इस्तरी छे सि सिलवट दूर करणो वास्ता इस्तरी चलांद छा अर बकै लुट्या पर अंगार धौरिक सिलवटुं छत्यानास करदा छा। जन आज पोलियो हटावो आंदोलन चलणु च तब दस बारा दशकों तक सिलवट हटावो आंदोलन चलणु राइ अर गांधी जी बि सिलवट विरोधी ह्वे गे छा। नेहरू जी का चकाचक सिलवट विहीन कपड़ा देखिक गांधी जी बि सिलवट विरोधी ह्वे गे छा। या मेरी मौलिक खोज च कि गांधी जी बि सिलवट विरोधी छा अर मीन देशहित मा ये आविष्कार पर अपण क्वी कॉपीराइट नि रखणाइ।
सिलवट अर कोयला की इस्तरी अर बाद मा इलेक्ट्रिक आइरन का मध्य भौत सालों तक गरमा गरम युद्ध चलणो राइ। इन मा जागतिक शीत युद्ध का दौरान , पॉलिस्टर की खोज ह्वे अर सिलवट विहीन कपड़ा बजार मा ऐ गेन। किन्तु फिर बि बार बार सिलवट हिम्म्त दिखैक कपड़ा धारक तैं दिखे ही जांदी छे।
अब जब बिटेन रिंकल रिलीजर आइ तब बिटेन रिंकल याने सिलवटुं महिमामंडन समाप्त हूण शुरू ह्वे गे। यू प्रॉमिस मि ना अपितु भौत सा कम्पनी करणा छन। बस कखिम बि कपड़ा पर सिलवट , चिनवट या रिंकल दिखे ना कि एक बूंद रिकल रिलीजर लगै द्यावो तो सेकंडों मा रिंकल गायब अर दगड़म सुगन्धित सुगंध बि आस पास छुड़द । सुणन मा आणु च बल एक कम्पनी रिंकल रिलीजर का साथ एक अपोजिट सेक्स अट्रैक्टर परफ्यूम बि मिलाण वळ च। फिर सिलवट विहीनता का साथ साथ अपोजिट सेक्स बि आकर्षित होलु। पर जब यदि कै मीटिंग या पार्टी मा एकी लिंग का मानव भाग ल्याल तो रिंकल रिलीजर विद अपोजिट सेक्स अट्रैक्टिंग परफ्यूम से क्या धमाल ह्वालु यांकी कल्पना से म्यार मुख पर सिलवट पड़ी जांदन।
इनि फेस रिंकल रिलीजर से बि झुर्री कुछ देरौ कुण या कुछ दिनौ कुण गायब ह्वे जांदन बल। मतबल विज्ञापन बथांदन कि फेस रिंकल रिलीजर का प्रयोग से दादी अर नातिण की आयु , एज का पता इ नि चलद। कुज्याण , कुज्याण क्या भंगुल जमणु च धौं !
खैर चाहे क्लॉथ रिंकल रिलीजर हो या फेस रिंकल रिलीजर हो मनुष्य तब बि सुखी नि ह्वे सकुद। मानव तै तो लाइफ का रिंकल रिलीजर चयेणु च अर ये विषय पर जैदिन बाबा रामदेव की नजर पोड़ली वैन लाइफ रिंकल रिलीजर बजार मा उतारी दीण। मि त जीवन मा सिलवट नि रावो की दवै की जग्वाळ मा छौं। अर आप क्योंकि प्रतीक्षा मा छंवां रिंकल रिलीजर या रिंकललेस लाइफ ? सिलवट विहीन जिंदगी ?
29 /6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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