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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, April 7, 2015

संस्कृति बचाओ ?

सुनील थपल्याल 'घंजीर'
भै एकबार संस्कृति बचाओ वला मि लत्यांण बैठ गीं कि तुमुल संस्कृति बचांणा वास्ता क्य योगदान दे ?
मिल ब्वाल भै मिल अंपुणू नौं खराब कै दयाई कि संस्कृति की  किशरांण आवा म्यारा नौं से!
अच्छा भला सुनील शर्मा बटै मि
"सुनील थपल्याल घंजीर " ह्वे ग्यों ।
ये से ज्यादा मि कुछ नि कैर सकदु जी !
संस्कृति बचाओ वला संतुष्ट नि ह्वाया जन कि वो आसानी से हूंदा भि नि छिन । बल हौरि कुछ कारा ।
मि :  जी पैली मिल संस्कृति बचांण खुंणै अपुंणु नौ खराब कार अब वै थै डुबा दींदु गढवाल जै कि कैं ढंढी मा । म्यार बसौ इतगै च जी ।
अब वो संतुष्ट ह्वे गीं ऊं थै लग जन यु घंजीर कखि हमरी संस्कृति थै नि डुबा द्यावा ।
वो हाथ जोडकै चल गीं कि ये से ज्यादा आप संस्कृति बचांणा खुंणै कर्यां भि ना ।
"संस्कृति बचाओ " लोखु का जांणा बाद मीथै इतगा समझ त ऐ हि ग्या कि "शर्मा " से दुबरा " थपल्याल " अपंणा नौ दगड़ जोड़िकि संस्कृति बचि ह्वेली च नि बची ह्वेली म्यारु ददौ " थपल्याल " जरूर बच ग्या ।
जुगराज रैंया यो "संस्कृति बचाओ" वला ।
जय उत्तराखंड !

7/4/15

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