Chandragupta and Chanakya Consolidating Armed Forces
गुरु शिष्य की ख्याति में फैलाव
चन्द्रगुप्त -चाणक्य द्वारा सैन्य संग्रह
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 8/4/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में चन्द्रगुप्त -चाणक्य का सैन्यसंग्रह व मगध विजय
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 96
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 96
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 96
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 96
यूनानी सेना को भगाने से पंजाब आदि क्षेत्र में चाणक्य व चन्द्रगुप्त की गुर शिष्य में ख्याति फ़ैल गयी। युवक उनके संकेत पर कार्य करने को तत्पर थे। नन्द वंश से घृणा का लाभ उठाकर दोनों ने नन्द राज्य को जितनी की योजना बनाई।
नन्द सेना से जीतना टेढ़ी खीर थी अतः चाणक्य ने एक सुरक्षित व शिक्षित सेना तैयार करने की योजना बनाई।
पर्वताश्रयी आयुधजीवी सैनिक
मुद्राराक्षस नाटक से पता चलता है कि चाणक्य -चन्द्रगुप्त ने पर्वताश्रयी सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती किया और पश्चिम हिमालय के म्लेच्छ , किरात , दस्युदल , आटविक पुरुषों से सेना को सुसज्जित किया और फिर खश , शक , हूण , कौलूत , चेदि व मगध के सैनिक भी इनकी सेना में लिए गए।
मगध विजय
सेना संग्रह के बाद चन्द्रगुप्त -चाणक्य ने छै लाख सैनिकों को लेकर विभिन्न क्षेत्रों को मिलते हुए पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया और फिर मगध को जीतकर नन्द वंश का खात्मा किया जिसमे मगध के राजद्रोहियों ने भी चाणक्य का साथ दिया।
साम्राज्य विस्तार
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तराखंड , पांचाल [रुहेलखण्ड ], कौशल , मगध, शूरसेन , रुहेलखण्ड आदि से लेकर पूर्वी सागर से लेकर पश्चमी सागर , सिंधुस्तान , कंधार तक फैला था।
इसका अर्थ है कि उत्तराखंड , हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर के स्थानीय क्षत्रपों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की आधीनता स्वीकार कर ली थी। उस समय क्षत्रप आधीनता स्वीकार थे और वास्तविक राज्याधिकार क्षत्रपों के पास रहता था ।
मौर्य साम्राज्य का व्यापारिक मार्गों पर भी अधिकार हो गया था। याने गोविषाण (काशीपुर ) बिजनौर , हरिद्वार -कालसी , मथुरा व्यापारिक मार्ग पर मौर्य साम्राज्य का अधिकार था।
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन
अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत
अग्निहोत्री , पंतजलि कालीन भारत
अष्टाध्यायी
दत्त व बाजपेइ , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास
महाभारत
विभिन्न बौद्ध साहित्य
जोशी , खस फेमिली लौ
भरत सिंह उपाध्याय , बुद्धकालीन भारतीय भूगोल
रेज डेविड्स , बुद्धिष्ट इंडिया
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 8/4/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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