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इन मा त रुण आंण इ च
चबोड़्या स्किट संकलन ::: भीष्म कुकरेती
[स्थल - गढ़वाल सभा देहरादून कु वार्षिकोत्सव कु स्टेज। स्टेज मा बैनर लग्युं च -गढ़वाली लघु नाटिकाएं ]
गीतकार नाटककार ओ पी बधाणी [रुणु च ] ये मेरी ब्वे क्या कौरु ?
नाटककार ओ पी सेमवाल - बधाणी जी ! क्या ह्वे ?
[बधाणी जी सेमवाल जीक कंदुड़म कुछ बुल्दन ]
ओमप्रकाश सेमवाल - ये मेरी ब्वे ? [जोर रुण मिसे जांदन ]
नाटककार कुलानन्द घनशाला -ये तुम द्वी किलै रूणा छंवां ?
[द्वी घनशाला जीक कंदुड़म कुछ बुल्दन ]
कुलानन्द घनशाला -ये मेरी ब्वे ? ये मेरा बाबाजी ? [और जोर रुण मिसे जांदन ] अब क्या ह्वालु ?
[गढ़वाल सभाका प्रधान असवाल जी आंदन ]
प्रधान - ये तुम सबि नाटककार किलै रुणा छंवां ? शुरू करा नाटक।
[सबी प्रधान जीक जीक कंदुड़म कुछ बुल्दन ]
प्रधान असवाल - ये क्या बुलणा छंवां ? जरा जोर से ब्वालो।
सबि -हमम नाटिका का वास्ता क्वी नई पटकथा इ नी च।
असवाल [जोर जोर से रुंदन ] ये निर्भाग्युं क्या बुलणा छंवां ? सि मंत्री जी अपण लाब लश्कर लेकि ऐ गेन अर तुम बुलणा छंवां कि नाटिका तयार इ नी च ?
सबि -जी क्वी नया विषय इ नि मील।
असवाल - ठीक च तुम इकै करिक गढ़वाल मा पलायन का रोग पर दु दु लाइन ब्वालो। गढ़वाल से पलायन हमेशा नया इ विषय हूंद।
21/4/15 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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