Buddhists of Mayurgiri in Context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur
मौर्यकाल में भाभर , हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में बौद्धधर्मी
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part -112
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 112
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 112
गंगाद्वार [हरिद्वार ] के पास की जनता बौद्ध अवलम्बी थी। उत्तराखंड के दक्षिण भाग के निवासियों ने बौद्ध धर्म अपना लिया था. प्राचीनकाल में गंगा जी से रामगंगा तक के शिवालिक पर्वत श्रेणियों के तल वाले क्षेत्र को मयूरगिरी कहा जाता था। इसी श्रेणी पदतल पर गंगातट पर मयूरनगर बसा था कोटद्वार के पास बिजनौर में मोरध्वज स्तूप था.
साँची के स्तूपों प्राप्त धातु पात्रों में अहोगंग निवासी स्थविर मोग्गलिपुत तिस्स , हिमवंत आचार्य कस्सपगोत , मंझिम स्थविर , हारीतीपुत्र , तथा गोती (कौत्सी ) पुत्र की धातु (अस्थिअवशेस ) मिले हैं। इन धातुपात्रों के ढक्क्नो पर अशोककालीन लिपि में स्थविरों के नाम अंकित हैं। इससे विदित होता है कि उत्तराखंड , हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर में बौद्ध स्थविरों को समकालीन समाज में सम्मान प्राप्त था।
साँची के अभिलेखों से विदित होता है कि मोरगिरी के पार्श्व में बसे कुछ गाँव निवासियों ने साँची पंहुचकर स्तूपनिर्माण में सहयोग दिया व दान भी दिए थे।
मोरगिरी के निवासी अर्हदत्त , सिंघगिरी , भिक्षु देवरक्षित ने भी अपने दान को अंकित किया था
१- मोरसिहिकट अर्हदितस दानं
महामोरगम्हासिहगिरिनो दानं
देवरखतस मोरजहकटियस भिछनो दान
( उपरोक्त संदर्भ : भुल्लर , ऐपिग्राफिया इंडिका ,भाग २ , पृष्ठ १०५ , ११० , ३७१ , ३८५ )
डा डबराल ने निम्न ब्यौरा दिया है -
भारहुत अभिलेखों से ज्ञात होता है कि मोरगिरी के निवासी घाटिल की माता ने , जितमित्र ने , स्तूपदास पुष्पा ने उस पुनीत स्थान में सुपनिर्माण हेतु दान दिया।
भारहुत में नागरक्षित और उसकी माता चक्रमोचिका का दानलेख , मोरगिरी की नागिला भिक्षुणी का दानलेख , धनभूति की पत्नी नागरक्षिता दानलेख , और धनभूति के दो स्तम्भ लेख मिलते हैं। साँची में आर्य के अन्तेवासी नाजिल व भदंत नाजिल के संबंधियों के दानलेख मिलते हैं। इससे मौल्म होता है कि धनभूति कोई राजा या सामंत /क्षत्रप था।
साँची के अभिलेखों में मोग्गलिपुत के शिष्य गोतिपुत , तथा वाछिपुत के शिष्य गोतिपुत , गोतिपुत भंडुक, तथा गोतिपुत राजलिपिकार का उल्लेख है ।
भारहुत व मथुरा के अभिलेखों में गोतिपुत आगरज , बाछिपुत धनभूति तथा वात्सीपुत्र वाघपाल का उल्लेख है।
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन
अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत
अग्निहोत्री , पंतजलि कालीन भारत
अष्टाध्यायी
दत्त व बाजपेइ , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास
महाभारत
विभिन्न बौद्ध साहित्य
जोशी , खस फेमिली लौ
भरत सिंह उपाध्याय , बुद्धकालीन भारतीय भूगोल
रेज डेविड्स , बुद्धिष्ट इंडिया
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 29/4/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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