विचार -बिमर्श -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
चाहे व्याकरण -भाषा विद डा अचलानन्द जखमोला , स्वर सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी , लोक साहित्यौ जणगरु चन्द्र सिंह राही , गढ़वाली साहित्य तैं नई सोच दीण वाळ प्रेम लाल भट्ट , या आज का नामी गिरामी साहित्यकार सब्युं एकी राय च बल आज गढ़वाली भाषा मा अधिक छपेणु च किंतु वो साहित्य नि मिलणु च जांकि उम्मीद छे , आस छे। अधिकतर विश्लेषकुं बुलण च बल गढ़वाली साहित्य मा डिगचा ना तौल्युं -डेगुं हिसाब से साहित्य रच्याणु च पर बेसवादी साहित्य दिखणो मिलणु च। अधिकतर चिंतकुं चिंता च बल जादातर अचकालौ नवाड़ी साहित्यकार वुं ही विषयुं पर कलम घिसै करणा छन जौं विषयुं पर पुरण साहित्यकारों कलम घिसेक खुंडी ह्वे गे छे। याने अधिकाँशतः आजौ साहित्य शब्द, भावनौं , कवित्व , संवेदनशीलता , प्रभाव कु हिसाब से बिखळण्या साहित्य च। अधिकतर आजौ साहित्य मा बस्याण आदि। आजौ गढ़वाळि साहित्य मा तत्व -सार , उत्तेजना , ऊर्जा , उत्साह त सफाचट हर्ची गे। गढ़वळि साहित्य मा ठहराव आयुं च। रचनाकार जाम हुयां छन।
साहित्य शब्दों खेल च , कविता शब्दों जादू च , कविता प्रतीकों प्रयोग च , कथा शब्दों की हेराफेरी च, शैली की विभिन्नता -विशेषता साहित्यौ आधार च पर आज की कविता पढिल्या तो नया ढंग का प्रतीक मिलदा ही नि छन। बस सैकड़ों साल से घिस्यां -पिट्यां -पितयां प्रतीकों से हम काम चलाणा छंवां। आज ब्याळो समाज अर आजौ समाज मा 180 डिग्री को अंतर ऐ गे किन्तु गढ़वाळी कवितौं या गद्य मा इन लगद नया प्रतीकों को अकाळ पोड़ी गे हो धौं।
जख तक गद्य को सवाल च आज गढ़वाली मा सम्पादकीय , तथाकथित व्यंग्य , प्रशंसा युक्त आलोचना ही अधिक च अर कबि कब्यार कथा दिखेंदन , नाटकबाज बि कमि छन। याने गढ़वाळी गद्य कु त कुहाल च अर यु गद्य बि सुमरिण लैक कमि हूंद। कविता ही गढ़वळि मा अधिक रच्याणी छन।
आखिर किलै इन बुल्याणु च कि गढ़वळि साहित्य मा पौण बिंडी छन पर वा रौनक नी च जांक हम उम्मीद मा बैठ्याँ छंवां। गळयुं मा लैम्प पोस्ट बिंडी लग्यां छन किंतु लैम्प पोस्टों पर अधिकतर बल्ब ज़ीरो वाट का बल्ब छन।
साहित्य मा विबिधता विषय अर शब्द लांदन किन्तु हमर गढ़वळि साहित्य चार पांच विषयुं पर अटक्युं च -पलायन , उजड़दा कूड़ , विकास नि हूण , भ्रष्टाचार , गाउँ मा कृषि को खात्मा, गांव की याद ।
गढ़वळी साहित्य मा बिखळाण आणो एक कारण च हमारा शहरी (प्रवासी ) अर ग्रामीण द्वी तरां का साहित्यकार केवल ग्रामीण गढ़वाळ तै ही गढ़वाळ मानिक बैठ्याँ छन। जब कि असलियत या च कि 60 -70 प्रतिशत गढ़वाल प्रवास्युं गढ़वाळ च।
साहित्य मा विबिधता विषय अर शब्द लांदन किन्तु हमर गढ़वळि साहित्य चार पांच विषयुं पर अटक्युं च -पलायन , उजड़दा कूड़ , विकास नि हूण , भ्रष्टाचार , गाउँ मा कृषि को खात्मा, गांव की याद ।
गढ़वळी साहित्य मा बिखळाण आणो एक कारण च हमारा शहरी (प्रवासी ) अर ग्रामीण द्वी तरां का साहित्यकार केवल ग्रामीण गढ़वाळ तै ही गढ़वाळ मानिक बैठ्याँ छन। जब कि असलियत या च कि 60 -70 प्रतिशत गढ़वाल प्रवास्युं गढ़वाळ च।
आज का गढ़वळि साहित्यकार ये 60 -70 प्रतिशत गढ़वाल की सफाचट अवहेलना करणु च। असली गढ़वाळ तै हम तिराणा छंवां। गढ़वाळि साहित्यकार अधिसंख्यक गढ़वळयुं विषय नि उठाणु च।
एक समौ छौ जब कन्हयालाल डंडरियाल , जयानंद खुकसाल 'बौळया', ललित मोहन थपलियाल, अबोध बंधु बहुगुणा सरीखा साहित्यकारोंन प्रवासी गढ़वाळयुं विषय बड़ा संवेदनशीलता से उठाई अर गढ़वाली साहित्य मा ताजगी लाइ। किंतु अब जब प्रवासस्युं संख्या रहवास्युं से अधिक ह्वे गे तो गढ़वाळि साहित्य मा बि प्रवास्युं विषय उथगा ही जोरों से आण चयेणु छौ। प्रवास्युं रहन सहन , प्रवास्युं दिक्क्त ,प्रवास्युं आनंद , प्रवास्युं सामजिक स्थिति , प्रवास्युं स्थानीय राजनीती मा पैठ की सफलता बिफलता , शादी -ब्यौ की बात , नौकरी को टेंसन , प्रवास्युं संस्था, भाषा समस्या , विदेश मा बसण से प्रवास्युं स्थिति मा बदलाव आदि हजारों विषय छन जो सामयिक त छैं इ छन वांक अलावा साहित्य तैं ताजगी बि दीण मा सफल छन। प्रवास्युं विषय उठैक साहित्यकार गढ़वळी साहित्य मा ताजगी तो लाला ही दगड़ मा नया नया प्रतीक अफिक आल। चंडीगढ़ का प्रवास्युं विषय मुंबई का प्रवास्युं से अलग हूण से विषय भिन्नता अर विषय विशेषता तो अफिक ऐ जालि कि ना।
मि एक उदाहरण दीण चांदु। पाराशर गौड़ जी कनाडा प्रवासी छन। गौड़ जीका भाई बंद का परिवार बि कनाडा मा छन अर ऊनि उत्तरी अमेरिका मा सैकड़ों उत्तराखंडी परिवार छन किन्तु मि तैं आज तक पराशर जीक एक बि कविता , लघु व्यंग्य -कथा उत्तरी अमेरिका प्रवासी विषयक बांचणो नि मील। यदि पराशर जी उत्तरी अमेरिकी प्रवास्युं विषय अपण साहित्य मा लाणो कोशिश करदा तो अवश्य ही वो साहित्य ताजा विषयी हूंद , वे साहित्य मा कनाडा आदि को नया प्रतीक अफिक आंद तो अवश्य ही पाठकों की रूचि गढवळि साहित्य पढ़ण मा बढ़दी। यदि जापान मा रौण वाळ प्रभात सेमवाल जापान मा प्रवास्युं स्थिति पर कलम चलांद तो एक अलग ही स्वाद आंद या जिठुड़ी मिडल ईस्ट का प्रवास्युं पर कविता गंठ्यांदा तो गढवळि तैं नया आभूषण मिलदा।
इनि दिल्ली का दिनेश ध्यानी , बालकृष्ण भट्ट, जगमोहन जयाड़ा कु च। मीन आज तक युंक कै बि साहित्य मा दिल्ली का प्रवास्युं संबंधित साहित्य नि देखि। हर समय तू होली बीरा उची निसि डाँड्यूं मा घसियार्युं भेष जन खदेड़ कविता से काम नि चल सकद। दिल्ली का प्रवास्युं अलग परिवेश , अलग आकांक्षाएं बि त छन किलै दिल्ली का साहित्यकार दिल्ली प्रवासी केंद्रित साहित्य रचना नि करणा छन ?
म्यार मानण च कि जब तक हम लिख्वार प्रवास्युं तैं केंद्रित विषय नि लौला गढवळि साहित्य मा एक तरां को ठहराव रालो। आज गढ़वळि साहित्य तैं फ्रेशनेस की आवश्यकता च तो प्रवासी विषय अवश्य ही ताजगी द्यालो।
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /6/2014
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