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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 26, 2014

प्रवासियों ! पहाड़ विकास की बकबास करना बंद कीजिये !

विचार -विमर्श    -भीष्म कुकरेती      
                     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

जैसे ही पहाड़ों से हम मैदान में उतरते हैं और छोटी -बड़ी नौकरी पाते हैं हम पर अपने गाँव विकास का रणभूत लग जाता है। 
 
क्या मुंबई , क्या दिल्ली अर क्या नार्थ अमेरिका सब जगह  पहाड़ी संस्था बनाने में और पहाड़ विकास का नाम पर सेमीनार , गोष्ठी ऊर्यांण में  व्यस्त  जाते हैं और बहुत से प्रवासी जैसे  डा रामप्रसाद जी , डा बलबीर रावत जी जैसे वौद्धिक लोग रोज इंटरनेट पोर्टलों या फेसबुक में  रोज हजारों शब्द पहाड़ विकास के  नाम पर खर्च करते रहते हैं ।
किन्तु मुझे लगता है प्रवासियों और गाँव में रहने वालों के मध्य पहाड़ विकास  बारे में सोच में गहरा अंतर है। 
मेरा गाँव जसपुर (ढांगू , पौड़ी गढ़वाल ) एक आम गाँव है जहां खेती बंद हो चुकी है , बच्चों को ऋषिकेश -कोटद्वार में पढ़ाया जाता है 
इस बार ग्राम सभा चुनाव में में प्रधान के प्रत्यासी ने एक पैम्फलेट छापा जिसमे प्रत्यासी ने निम्न  15 कामो  लिए वोट मांगे हैं -


 १-गाँवों में रास्तों का पुनर्निर्माण ,
२- हर परिवार को शुलभ शौचालय दिलवाना 
३- मंदिरों के आधे अधूरे कार्य पुरे करवाना 
४- वृद्ध -विकलांग लोगों के पेंसन लगवाना 
 ५-गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना 
६- शादी व्याह के लिए टेंट प्रबंध 
७- अधिक से अधिक स्ट्रीट लाइट लगवाना 
८- पानी की टंकियों की मरम्मत 
९- हर घर में पानी पंहुचाना 
१०- बरात घर निर्माण 
११- गाँव सुंदर व खुशहाल बनाना 
१२- बच्चो के लिए कोचिंग क्लास 
१३- कन्या धन व गौरी धन दिलवाना 
१४-चिकित्सा सेवा सही करवाना 
१५-जसपुर  सौंदर्यीकरण करना 


अधिकतर प्रवासी या संस्थाएं पहाड़ विकास गोष्ठी /लेखों निम्न बाते उठाते हैं -
१- गाव उजड़ रहे हैं कैसे खाली होते हुए गाँवों  से पलायन रोका जाय 
२- गाँव में रोजगार उपलब्ध किये जायँ 
 ३-खत्म होती कृषि के पुनर्स्थापना। बंजर धरती  को कृषि धरती में पुनः कृषि धरती में बदलना 
४- जल से /घराटों से  लघु स्तर पर विजली उत्पादन 
५- बागवानी व फूल उत्पादन 
६- वन उत्पादन को रोजगार व लाभ लेना 
७-सिंचाई के लिए साधन उपलब्धि 
 ८-शिक्षा में सुधार 
९- प्रवासियों को पहाड़ों में बसना 
१०- जड़ी बूटियों  को आर्थिक स्थिति सुधारने में योगदान  
११- चारा उत्पादन वृद्धि 
 १२-जंगली जानवरों से खेती रक्षा 
 १३-गाँवों में कम्प्यूटर प्रयोग , पुस्तकालय 
१४- ग्रामीण पर्यटन विकास 
आदि आदि 
उपरोक्त दो सोचों में अधिक अंतर क्या दर्शाता है ? निष्कर्ष  साफ़  कि गांवों में सिंचाई , कृषि , वैकल्पिक कृषि , रोजगार , पलायन पर रोक , उचित शिक्षा , विजली उत्पादन व वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की कोई सोच है ही   नही है।  तो फिर हम प्रवासी फोकट में बकबास क्यों करते रहते हैं ?




Copyright@  Bhishma Kukreti  24  /6/2014   

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