फुंड़यानाथ
कवि: पूरण पन्त पथिक
तुम
मेरी
जै-जैकार कारा
मि
तुमारी वा-वा करलू
हर जगम
हर कामम
मेरो नाम ल्यावा भै
जो कुछ छौं
मी छौं
जो कुछ काम
मीन काय
हौरी कैन ना
मीतैं ऐथर राखा
तुम पैथर रावा
साहित्य मि छौं
संगीत
राजनीती
धर्म मी छौं
सब-संथा -सभा - परिषद्
म्यार बगैर
बेकार छन
सब जगा मी छौं
मी तैं पछ्याणा
मी तैं इनाम द्यावा
लोगुम इनाम दिलावा
देर नि कारा
खूब रूप्या जमा कारा
मी तैं द्यावा
दीन्दी रावा
काम त सौब मीन ही करण न्ह़ा
सुणी कै ऊंकी छ्वीं
म्यार ब्वाडा न बवाल
बुबा ए जो कुछ बोलणा छन
तन कुछ नि छन
ये ही ह्वाई फुंड़यानाथ
Copyright@ Puran Pant Pathik, Dehradun, India, 2010
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