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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, June 2, 2010

शहरूं मा मूल़ी को सुख्सा

भीष्म कुकरेती
आम गढ़वाली जो गौं मा रयां छन तैं पट च मूल़ा को सुख्सा कन बणये जान्द अर सुख्सा को स्वाद कनु होंद
सुख्सा को अर्थ होंद Dehydrated Vegetables . अब शहरूं मा मूल़ा त मिलदु नी च त मूली को सुख्सा बणये जै सक्यांद
बाजार बिटेन जिन्नी बड़ी मूल़ी ल्ह़ाण चयांद
मूल़ी तैं ध्वे धाई क सूखे द्याव . फिर मूली तैं तिर्छां अर म्वाटो काटी द्याव जन भुज्जी का बान कटदन . कटीं मूल़ी फर ज़रा सि हल्दी अर लूण
लगे द्याव . फिर चों मा अर घाम मा चार पाँच दिनूँ तलक सुखाणद जाओ जब तक सुखी नि जाओ जब मूल़ी को पाणी सुखी जाओ त समजी जाओ सुख्सा तैयार ह्व़े गे द्वी चार मैना तक सुख्सा ठीक ही रौंद
सुख्सा की भुज्जी बणाणो बान सुख्सा तैं एकाद घंटा पाणी मा भिजाओ फिर जन चायणो च तन भुज्जी बणाओ
सिल्वट मा थींची क सुख्सा की तरीदार भुजी बि बणी सकद
सूखी भुजी बणाणाई त सूखी भुजी बणावो . पिण्डाल़ो ( अरबी ) का दगड बि सुखी या थिन्चौणी / भुजी बणदी
मैणु मसाला कथगा डाळण यू आप पर निर्भर च . हाँ भ्न्गुल का बीज ह्वाओ त मजा कुछ हौरी होंद

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