(1)
"तपदा पहाड़"
मिजाज भला निछन,
ऐन्सु अपणा पहाड़ का,
भक्कु लगणु छ,
अर छुटणु छ पसिन्या,
पहाड़ की राणी मसूरी,
भभसेणी छ भक्कान,
मैदान का मनखी छन,
मुश्किल मा जीण्या.
जंगळ फुकेणा छन,
ऐंसु नि ह्वै बरखा पाणी,
हिंवाळि कांठ्यौं ह्यूं कम,
परेशान छन पहाड़ का पराणी.
सोचा यन मा क्या?
पहाड़ आला पर्यटक,
कनुकै होलि आय,
घंघतोळ मा छ,
कवि "जिग्यांसु",
कब अपणा मुल्क जाय.
(2)
"पर्वतों की वादियाँ"
बुला रही हैं,
लेकिन! उनका ताप ,
बढ़ता हुआ पारा,
ऐसा बता रहा है,
"उन्हें बुखार है".
सैलानी सोच रहे हैं,
कब कम हो तापमान,
चलें फिर,
पर्वतों की वादिओं में,
घूमनें के लिए.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०.४.२००४ )
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