लठग्युं छ बौडा खल्याण मा,
हबरि देखणु छ ढंग डौळ,
बल सैडि कुटम्बदारी का,
खेती पाती फर ध्यान निछ,
लगिं छ नया जमाना की बौळ,
भला लगणा छन सब्यौं तैं,
नया जमाना का रंग अर थौळ.
ब्वारी घास काटण कू,
नि छन मन सी राजि,
मोबाइल धरयां छन हाथ मा,
बणि छन बिल्कुल निकाजि.
नौना नि छन लगौणा मन,
खेती पाती अर धाण मा,
खुश छन गौं छोड़िक दूर,
घौर सी प्रदेश जाण मा.
ढंग डौळ देखिक परिवार का,
बौडा खल्याण मा पड़युं "लमतम",
सोचणु अपणा मन मा ख्वैक,
क्या होलु परमात्मा कसम.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"लमतम" २९.४.२०१०)
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments