जब तक रौलु यीं धरती मा,
बग्दि छन जख नदियों की धारा,
हरा भरा बण बाँज बुरांश का,
मनमोहक अर लगदा प्यारा.
हैंस्दु हिमालय हिंवाळि काँठी,
बास्दा छन जख पोथलु प्यारा,
कुळैं देवदारू का लम्बा डाळा,
हरा भरा अर लगदा न्यारा.
फूल बुरांश कू मुल मुल हैंस्दु,
बगदा छन जख गाड गदना,
रंग मत रन्दु मन सदानि,
दिखेंदा छन सुखमय सुपिना.
रंगीला बसंत मा खिल्दा जख,
फ्योंलि, गुर्याळ, पय्याँ, आरू,
पहाड़ कू रंग मन हरि देन्दु,
कथगा सुन्दर पहाड़ हमारू.
मैकु त मन सी लगदा सदानि,
परदेश मा भि ऊ पहाड़ प्यारा,
स्वर्ग सी सुन्दर जन्भूमि छ वा,
जख बद्रीविशाल जी रन्दा हमारा.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"पहाड़ मैकु प्यारा छन" २९.४.२०१०)
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