भग्तु बोडा फर बिल्कि बाग,
ब्याखुनि बग्त ब्याळि,
हबरि बोलि बल वैन,
डुकरी-डुकरिक माटु खैणिक,
क्या त्वैन बिंग्यालि?
बिंगण मा त यनु औणु छ,
मन्ख्यौंन वैकु ठिकाणु जंगळ,
काटी काटिक बर्बाद करियालि,
बाग रलु बण बूट बचलु,
होलि खूब खाणी बाणी,
छकि छक्किक मिललु सब्ब्यौं,
छोया ढुंग्यौं कू पाणी.
बाग बोन्ना छन हम बचावा,
मिललु तुम सनै सब्बि धाणी,
किलै बिल्कणा छौं हम,
तुम्न अजौं यनु नि जाणी.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"बाग बिल्कि" ६.५.२०१०)
(यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
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