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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 1, 2010

व्यंग बाण

जब चल्दा छन,
बिना चुब्याँ चुब्दा छन,
अर घायल भी करदा छन,
यीं धरती मा मन्ख्यौं सनै.

जब छोड़दु छ क्वी,
अपणा मुखारबिन्द बिटि,
कैका खातिर यनु सोचिक,
कनि बितलि वैका मन मा,
अर तब होलु खुश मैं,
छक्किक अपणा मन मा.

सुदि नि चैन्दा छोड़्यॅा,
कै फर "व्यंग बाण",
एक दिन यीं धरती बिटि,
सब्बि धाणी छोड़ी छाड़ी,
हम्न तुम्न चलि जाण.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"व्यंग बाण" ७.५.२०१०)
(यंग उत्तराखण्ड और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)

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