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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 1, 2010

फुंड़यानाथ 420

Dear All,
Till now, I, Dr Achla Nand Jakhmola, Dr Dhoundiyal and Purn Pant defined Fundyanath
Now, read the definition of Fundyanath in humrous way by renowend Garhwali language poet Harish Juyal 'Kutz'

Style of poem: The style is different and is mixure of Hindi and Garhwali . This style is not new for garhwali in our folk poetry. Rakhwalee is performed in the same manner i.e mixure of Hindi and Garhwali

फुंड़यानाथ 420
कवि : हरीश जुयाल 'कुटज'
ॐ नमो गुरु को आदेशा
माता पिता को जुहारा
मिस्टर फुंड़यानाथ कू नमस्कार
पीले हाथ में expired जूता लाऊं
फिर फुंड़यानाथ का इंट्रोद्क्स्न कराऊं
तू रै बाबा दुमुख्या गुरो
मुख मौल़ी पुछ्ड़ी बिसैली
गौन्छी को कीस छे
जौ कु झीस छे
चार सौ बीस छे
समाज कु खाज छे
ऑलरेडी बदमिजाज छे
तीन समाज को आपस में लड़ायो
पुब्लिक मा कच्यूळ करायो
अपणे आप छांटो हो जायो
गौं कु गलादार छे
ड़्यार कु फौंज्दार छे
मतलब से बोल्दू
मतलब से बच्यान्दू
तेरु रे फुंड़यानाथ
क्या -क्या खाणु
क्या क्या ल्ह़ाणु
खांदी रे घपरोळ का गुरमुल़ा
ल्ह़ाणु रे क्रिटिसाईंज कु कुर्ता
आंख्युं माँ सोर्स का चश्मा चम्कान्दी
कपल मा कूटनीती को तेल ,
जिकुड़ी मा जहर का ग्व़ाळआ
नजर माँ पालिटिक्स का फ़्वाळआ
रे बाबा--
क्या -क्या बूतदी
क्या क्या काटदी
तू ---
बुतदी रे जातिवाद का बीज, क्षेत्रवाद का म्याला
कटदी रे स्वार्थ की फसल
मन्ख्यात से तुझे खाजी हो जावै
गुंडों के फेस पे बोरोलीन लगावै
गरीबों को धमकाये , टुच्चों को चमकाए
फर्जी रिस्पेक्टेड छे बाबा
गढ़वाळ घाट को डौंडिया छे
कुमाओं घाट कु चौंडिया छे
पब्लिक तोड़ा , पब्लिक मोड़ा नरसिंघ छे
बोकसड़ी जाप कु मान जै
कांवर की विद्या कु मान जै
कुटज की भगती कु मान जै
चल - चल रे मेरे औफर पे चल
लाइन हाजिर हो जा
समाज का पिण्डा प्राणी को छोड़
पब्लिक को लड़ाना छोड़
जातिवाद करना छोड़
फ़ौरन कुकर सोसैटी मा जा
मेरे हुकम पे नी चली तो
तुझे संगाट प्याट के बिच्छी तडकाये
भैस्या मकडा तेरे फेस पे मूते
तुझे जूंक की हड्डी से मारूं
गंडेळ की सींग से मारूं
किदली की बैकबोन से मारूं
मछर की सीधी टांग से मारूं
करगंड में अक्सन का जुटा मारूं
बर्मंड में लखानी का चप्पल चलाऊँ
लगाऊँ दस गिनुं एक पडम पडम पडम
ॐ नमो गुरु का आदेशो

Copyright @ harish Juyal, pauri garhwal, Uk, India, 2010

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