Life of Kuninda Kings & Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur
अग्रराज ( Agraraj a Kuninda King )
यवन आक्रमण
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 26/6/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर संदर्भ में कुणिंद शासकों का जीवन चरित्र
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part -128 हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 128
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
कुणिंद राज्य संस्थापक
स्रुघ्न राज्य के प्रथम संस्थापक नरेश का नाम किसी अभिलेख या मुद्रा में नही मिलता है। संस्थापक नरेश की पत्नी का नाम गार्गी था व द्वितीय नरेश विश्वदेव था।
विश्वदेव (Vishwdev a Kuninda King )
अभिलेख में विश्वदेव की माता का नाम दिया है किन्तु पिता का नाम नही दिया गया है। संभवतया विश्वदेव ने संगठित कर गणराज्य को सुदृढ़ किया हो।
उन दिनों राजा या पुरुषों में बहुपत्नीवाद प्रचलित था और इसलिए माता के नाम से पहचानना सामन्य बात थी। महाभारत में भी कुंती पुत्र, माद्री पुत्र , गांधारी पुत्र आदि वाक्य जोड़े जाते थे।
विश्वदेव की माता का नाम गोती (कौत्सी ) था।
विश्वदेव और कौत्सी पुत्र अग्रराज की पत्नीबाछी (वात्सी ) थी। अग्रराज की मुद्राएं स्रुघ्न व कौशंबी में मिले हैं। अग्र्राज के मुद्राओं के प्रसार से लगता हैं कि उसने राज्य विस्तार किया होगा। अग्रराज का युग उथल -पुथल का समय था।
वृहद्रथ के शासन काल में दिमित्र व उसके सेनानयक मेनान्द्र ने मथुरा व साकेत पर अधिकार कर लिया था और पश्चिम में फंसे होने के कारण उनका पूर्व में राज्य हथियाओ आंदोलन रुक गया था। 167 के करीब दिमित्र युद्ध में मारा गया था। मानेंद्र का अधिकार मथुरा , कुरु और यमुना से पश्चिम में बना रहा।
संभवतया पुष्यमित्र (184 BC ) ने मेनान्द्र का शासन पांचाल , कुरु , मथुरा और पंचनद को समाप्त किया होगा।
कुलिन्द्राइन
ताल्मी ने उल्लेख किया है कि यवनसाम्राज्य अंतर्गत पाताल , सौराष्ट्र , आभीर गंधार , कस्पीरिया (कश्मीर ) व कुलिन्द्राइन जनपद थे। कुलिन्द्राइन की पहचान कुलिंद जनपद से की जाती है। (अग्रवाल , पाणनि कालीन भारत ).
इससे अर्थ निकलता है कि कुणिंद पर कुछ समय तक यवन अधिकार था।
पुष्यमित्र ने ही कुरु , पांचाल , मथुरा और स्रुघ्न को यवनों की दासता से स्वतंत्र किया।
ऐसा लगता है कि कुणिंद राजाओं ने कुछ समय तक शुंग की अधीनता भी स्वीकार की होगी।
देहरादून से एक शुंग कर्मचारी भद्रमित्र की मुद्रा मिली है जिसमे शुंगकालीन लिपि में 'भद्रमित्रस्य द्रोणघाटे ' उल्लेख है (चन्द्रगुप्त विद्यालंकार ) . इसका अर्थ है कि शुंग राजा कुणिंद प्रांत में चुंगी आदि एकत्रतित किया करते थे।
अनुमान लगाया जाता है कि अगराराज राज्य के प्रारम्भिक वर्षों में यवन शासन शुरू हुआ और अंतिम वर्षों में समाप्त भी हो गया था।
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