उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, June 15, 2015

गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी का गद्य -3

 Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal
                               गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  का गद्य -

                    जसपुर के बहुगुणाओं का संस्कृत से गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान -3 
                       

                                प्रस्तुति  -भीष्म कुकरेती      
(आभार ------------जसपुर के समस्त बहुगुणा परिवार विशेषतः  श्री शत्रुघ्न प्रसाद पुत्र स्व पंडित खिमानन्द बहुगुणा ) 

यह लेखक हिंदी टीकाओं से गढ़वाली शब्दों की खोज कर रहा था कि उसे कुछ पंक्तियों के बाद कुछ गढ़वाली पक्तियों की टीका भी मिली।  याने की पहले हिंदी में टीका फिर गढ़वाली और फिर हिंदी में। इस भाग में भी ग्रहों की गणना करने की विधि और फलादेश की टीका है। गढ़वाली टीका का भाग इस प्रकार है - 
II भाषालिख्यते II प्रथम भूजबोल्याजांद II पैले २१२९  अंशतौ भुज होयु होयो जषते ३ राश होया तव ६ राशिमा घटाणो याने ६। ०। ०। ० ।  मा घटाणो ५ राश २९ अंश तक जषते फिर ६। ७।  ८ राश होयातो ६। ०। ०। ० ।  मा उलटा घटाणो ९ राश उप्र १२। ०। ०।  ० मा घटाणो  . सो भुज होयो ना सूर्य को मन्दो च्च ७८ अंश को होयो तो सो ३० न चढ़णो।। अथ सूर्य स्फष्ट ।। पैलो सूर्य मध्य माउ को २।  १८।  ०।  ० मा घटाणो. तव तैको नामकेंद्र होयो २ राशसे केंद्र अधिक होवूत भुज करनो तव भुजकी राश ३० न गुणनि तलांक जीउणा तव ९ न भाग लीणो ३ अंक पौणा . तव सो तीन अंक। २०। ०। ० ०।  मा घटाणो 
*** तव इन तरह से गोमूत्री करणी तव जो ९ उन मौगपाय सो दुई जगा रखणा सो गो मूत्री  काका उपर रखणो  विष। २० मा घटायूं जो छ सो नीचे रखणो तव आपस मा गुणी देणा.सो ६० से उपर चंद्रांद जाण आखीरमा ३ तीन पौणा सो तीन ३ अंक ५७ मा घटाण तव ऊं अंक को लिप्तापिंड गणणो सो भाजक होयो. तव जो ९ से भाग पायुं जो दूसरी रख्युं छ तैकोभी लिप्तापिंड वनांणो सोभाज्य होयो भाज्य मा भाजक को भाग पाणो. सो ३ अंक पाणा तव जो भागपाय सो सूर्य को मध्यमामा मेषादौ धन तुलादौ ऋण देखिक दिणो सो प्रातः काल स्फष्ट होयो. ऋण घटाणो समझणो धन जोड़णो होयो .. ८ 
इसके बाद हिंदी टीका शुरू हो जाती है 
                    इस टीका और पहले की टीकाओं में कुछ अंतर 
यह टीका शायद १९०० ईश्वी के करीब है। 
पहली दो टीकाओं में श्रीनगरया गढ़वाली का प्रभाव है जैसे लेणो , देणो किन्तु इस टीका में ढांगू में प्रचलित लीणो शब्द आया है। 


Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal; Garhwali Prose of Nineteenth Century from village Jaspur, Garhwal; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Dhangu Patti , Garhwal; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Gangasalan, Garhwal; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Lansdowne Tehsil Garhwal; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal, Uttarakhand; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal, Himalaya ; Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal, North India 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments